Year Ender 2019: पूरे साल चलता रहा शह और मात का खेल, दिल्ली ने 2 पूर्व सीएम को खोया
कांग्रेस 15 वर्षों तक मुख्यमंत्री रहने वाली शीला दीक्षित के कार्यकाल की उपलब्धियों को आधार बनाकर अपनी खोई हुई सियासी जमीन हासिल करने के लिए जद्दोजहद कर रही है।
नई दिल्ली [संतोष कुमार सिंह]। लोकसभा चुनाव की आहट के साथ शुरू हुआ यह वर्ष दिल्ली विधानसभा चुनावी गहमागहमी के बीच हम सभी से विदा लेने वाला है। चुनावों की वजह से पूरे साल सियासी उठापटक चलता रहा। पार्टियों के साथ ही नेताओं के बीच शह व मात का खेल चलता है। इस साल जहां लोकसभा चुनाव में भाजपा फिर से केसरिया परचम फहराने में कामयाब रही वहीं, आम आदमी पार्टी (आप) आशातीत प्रदर्शन करने से चूक गई।
कांग्रेस की सियासी जमीन कुछ जरूर मजबूत हुई है, लेकिन वह पूरे वर्ष आंतरिक गुटबाजी से जूझती रही। लोकसभा के बाद एक बार फिर से दिल्ली की तीनों प्रमुख पार्टियां विधानसभा चुनाव की तैयारी में व्यस्त हैं।
साल भर में दिल्ली ने दो पूर्व सीएम को खोया
दुखद यह रहा कि दिल्ली ने एक वर्ष के भीतर ही अपने दो पूर्व मुख्यमंत्रियों को खो दिया। इस वर्ष 20 जुलाई को शीला दीक्षित की मृत्यु हो गई। इसके कुछ दिनों बात सात अगस्त को पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा नेता सुषमा स्वराज का भी निधन हो गया।
वहीं लंबे समय से बीमार चल रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली का 24 अगस्त को निधन हो गया। उनका निधन भाजपा के लिए बड़ी क्षति है। डीयू से सियासत शुरू करने वाले भाजपा नेता अरुण जेटली की दिल्ली की सियासत में भी अच्छी पकड़ थी। प्रत्येक विधानसभा चुनाव में पार्टी की रणनीति बनाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती थी।
शीला दीक्षित के निधन से कांग्रेस को बड़ी क्षति
पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का निधन कांग्रेस के लिए बड़ी क्षति है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। चुनावों में मिल रही हार और नेताओं की गुटबाजी से हताश व निराश कार्यकर्ताओं में जान फूंकने के लिए पार्टी हाई कमान ने शीला दीक्षित पर विश्वास जताया।
लोकसभा चुनाव से पहले उनके हाथों में दिल्ली की कमान दे दी गई। बीमार होने के बावजूद उन्होंने पार्टी नेतृत्व के निर्देश का पालन किया। पार्टी को किसी भी सीट पर जीत तो नहीं मिली, लेकिन मत फीसद में बढ़ोतरी जरूर हुई। इस विधानसभा चुनाव में उनकी कमी पार्टी को खलेगी।
लोक लुभावन फैसलों के भरोसे आप
आप सरकार मुफ्त बिजली, पानी और महिला बस यात्र, बुजुर्गों के लिए मुफ्त तीर्थ यात्रा जैसी लोक लुभावन फैसलों के सहारे अपनी सत्ता बचाने में लगी हुई है। वह मतदाताओं से अरविंद केजरीवाल सरकार के काम के आधार पर समर्थन मांग रही है। चुनावी रणनीति तैयार करने में पार्टी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के नेता प्रशांत किशोर की मदद ले रही है।
अनधिकृत कॉलोनियों के नियमितीरण से भाजपा को उम्मीद
दूसरी ओर भाजपा अनधिकृत कॉलोनियों के नियमितीरण, जहां झुग्गी वहीं मकान को मुद्दा बना रही है। 22 दिसंबर को रामलीला मैदान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली के साथ ही पार्टी ने चुनाव प्रचार का आगाज कर दिया है। केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर को चुनाव प्रभारी बनाया गया है। केंद्रीय राज्य मंत्री हरदीप सिंह पुरी व नित्यानंद राय सह प्रभारी हैं।
शीला के विकास कार्य को आधार बना रही कांग्रेस
वहीं, कांग्रेस 15 वर्षों तक मुख्यमंत्री रहने वाली शीला दीक्षित के कार्यकाल की उपलब्धियों को आधार बनाकर अपनी खोई हुई सियासी जमीन हासिल करने के लिए जद्दोजहद कर रही है। रामलीला मैदान में कांग्रेस ने भारत बचाओ रैली के साथ चुनावी तैयारी को गति दी। रैली को सोनिया व राहुल गांधी ने संबोधित किया था।
त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा को मिली जीत
लोकसभा चुनाव में लगातार दूसरी बार भाजपा दिल्ली की सातों सीटों पर जीत दोहराने में सफल रही। न सिर्फ पार्टी के सभी उम्मीदवार विजयी रहे बल्कि जीत का अंतर भी बढ़ गया। भाजपा को मात देने के लिए आप व कांग्रेस के कई नेता मिलकर चुनाव लड़ना चाहते थे। दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन को लेकर लंबे समय तक कयास लगते रहे और पर्दे के पीछे नेताओं के बीच बातचीत भी होती रही, लेकिन यह कवायद असफल रही। आखिरकार पिछली बार की तरह इस बार भी त्रिकोणीय मुकाबला हुआ जिसमें भाजपा को भारी समर्थन मिला। चांदनी चौक के सांसद डॉ. हर्षवर्धन को एक बार फिर से नरेंद्र मोदी सरकार में जगह दी गई। उन्हें केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया है।
भाजपा भी जूझ रही है गुटबाजी से
दिल्ली में भाजपा भी अंदरूनी गुटबाजी से जूझ रही है। प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी और राज्यसभा सदस्य व पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री विजय गोयल के बीच वर्चस्व की लड़ाई इस साल सुर्खियों में बनी रही।
कांग्रेस में नेताओं के बीच वर्चस्व की लड़ाई
पूरे वर्ष कांग्रेस में नेताओं के बीच वर्चस्व की लड़ाई चलती रही। अजय माकन के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए कई पुराने नेता या तो नजरअंदाज कर दिए गए या फिर उन्होंने खुद संगठन से दूरी बना ली। दीक्षित के हाथ में कमान आने के बाद भी गुटबाजी जारी रही। उनके व प्रदेश प्रभारी पीसी चाको के बीच मतभेद चरम पर पहुंच गया था। गुटबाजी की वजह से उनके निधन के बाद काफी समय तक अध्यक्ष की कुर्सी खाली रही। कई माह बाद इस कुर्सी पर सुभाष चोपड़ा को बैठाया गया। वहीं, पूर्वांचल के वोटरों को साधने के लिए पार्टी ने कीर्ति आजाद को चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया है। अभी भी पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं है।
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