यासिर ने तीन तलाक के खिलाफ महिलाओं को किया जागरुक, कानूनी मदद भी दी
यासिर जिलानी उन लोगों में से हैं जिन्होंने तीन तलाक के खिलाफ महिलाओं को जागरुक करने के साथ उन्हें कानूनी मदद भी दी।
By Kamal VermaEdited By: Updated: Mon, 20 Jan 2020 05:36 PM (IST)
नई दिल्ली [नेमिष हेमंत]। पिछले वर्ष अगस्त में जब संसद से पारित कराने के बाद केंद्र सरकार ने पूरे देश में तीन तलाक कानून लागू किया तो यह खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए ऐतिहासिक क्षण था, उन्होंने कहा था ‘तीन तलाक बिल का पास होना महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है। तुष्टीकरण के नाम पर देश की करोड़ों माताओं-बहनों को उनके अधिकार से वंचित रखने का पाप किया गया। मुङो इस बात का गर्व है कि मुस्लिम महिलाओं को उनका हक देने का गौरव हमारी सरकार को प्राप्त हुआ है।’ लेकिन इतने भर से महिलाओं का शोषण नहीं रुकना था। जरूरत थी कि इसके लिए रूढ़ीवादी परंपराओं और मान्यताओं में पले-बढ़े समाज को जागरूक किया जाए।
यह काम आसान नहीं था, पर दिल्ली के अधिवक्ता यासिर जिलानी जैसे प्रगतिशील लोग इसके लिए आगे आए। उन्होंने न केवल मुस्लिम समाज की महिलाओं को जागरूक करने का बीड़ा उठाया, बल्कि पीड़ित बहनों को कानूनी मदद भी पहुंचाने लगे। उन्होंने दिल्ली समेत देश के कई भागों में ऐसे अधिवक्ताओं की टीम तैयार की जो इस अभियान को जमीन तक ले जाएं और माहौल बदले।
मुस्लिम राष्ट्रीय मंच से जुड़े यासिर उन लोगों में शामिल हैं, जिन्होंने महिलाओं के शोषण के खिलाफ कानून बनने से पहले एक सकारात्मक माहौल तैयार किया, बल्कि प्रगतिशील मुस्लिम युवाओं को इस अभियान में जोड़ा। वह कहते हैं कि इस राह में कई रोड़े थे, क्योंकि उन्हें ही काफिर बोला जा रहा था। उन्हें समाज से बाहर करने की चेतावनी दी जा रही थी। पर वह डिगे नहीं। उन्होंने एनएंडवाइ लीगल सर्विसेज नाम की संस्था खड़ी की, जिसमें देशभर के सक्रिय 25 से अधिक अधिवक्ता शामिल हैं। संस्था से और भी अधिवक्ताओं को जोड़ा जा रहा है।
टीम के सदस्य उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, जम्मू-कश्मीर समेत अन्य राज्यों में है। जहां वह इस तरह के मामलों को अपने हाथों में लेते हुए पीड़ित परिवार को बचाने की कोशिश करते हैं। उन्हें बताते हैं कि यह किस तरह अपराध है। यह किस तरह से धर्म के विरूद्ध है। इस टीम ने अब तक 250 से अधिक तीन तलाक के मामले अपने हाथ में लिए। सोशल मीडिया के माध्यम से हेल्पलाइन नंबर सार्वजनिक किया है। उनपर पीड़ित महिलाओं या उनके जानकारों के फोन आते हैं।
जिलानी बताते हैं कि उन लोगों का प्रयास होता है कि मामला सुलझ जाए। इसके लिए पति और उसके परिवार के सदस्यों से बात की जाती है। उन्हें इसके दुष्परिणामों की जानकारी दी जाती है। इसके लिए टीम के सदस्य एक राज्य से दूसरे राज्य और गांवों तक का सफर तय करते हैं। 65 फीसद मामलों में पति अपनी गलती मान लेता है। नहीं तो आगे पीड़ित महिला को मुफ्त कानून सहायता मुहैया कराई जाती है। इसी तरह विभिन्न राज्यों में तीन तलाक पर गोष्ठियों का भी आयोजन करते हैं। इस तरह के अब तक 15 से अधिक सफल गोष्ठियां हो चुकी हैं। जो मुस्लिम समाज के लोगों को कानून और तीन तलाक को लेकर जागरूक करने में सफल रही हैं।