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Republic Day 2020: पहले गणतंत्र दिवस की परेड में विशेष आकर्षण था 'फ्लाई पास्ट'

Republic Day 2020 उल्लेखनीय है कि भारत में कस्बों और शहरों के ऊपर आकाश में विमानों के समूह (फार्मेशन) में उड़ान पर प्रतिबंध था।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Sat, 25 Jan 2020 01:49 PM (IST)
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Republic Day 2020: पहले गणतंत्र दिवस की परेड में विशेष आकर्षण था 'फ्लाई पास्ट'
नई दिल्ली, नलिन चौहान। Republic Day 2020: देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद (1884- 1963) ने 26 जनवरी 1950 के दिन सुबह राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी। उल्लेखनीय है कि उनका कार्यकाल 26 जनवरी, 1950 से 13 मई, 1962 तक रहा और वे दो बार राष्ट्रपति रहे। राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के उपरांत 26 जनवरी 1950 के दिन वे प्रिंस एडवर्ड प्लेस (अब राष्ट्रपति भवन) से इर्विन स्टेडियम (अब नेशनल स्टेडियम) के लिए दोपहर 230 बजे से राजकीय बग्घी में बैठकर निकले थे।

मेजर बर सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रगान की धुन बजाई थी

उनका राजकीय काफिला राष्ट्रपति भवन से निकलकर बारास्ता संसद भवन से होकर पार्लियामेंट स्ट्रीट, आउटर कनॉट सर्किस, बाराखंभा रोड, भगवान दास रोड, हार्डिंग एवेन्यू से होते हुए करीब 345 बजे इर्विन स्टेडियम पहुंचा था। तब राष्ट्रपति के स्टेडियम में पहुंचने पर रक्षामंत्री बलदेव सिंह ने उनकी अगवानी की और तीनों सेनाओं के प्रमुखों से परिचय करवाया। फिर राष्ट्रपति ने स्टेडियम में तिरंगा फहराया, जिसके बाद वहां मौजूद सशस्त्र सेना के बैंड समूहों ने नौसेना के ड्रम मेजर बर सिंह के नेतृत्व में राष्ट्रगान की धुन बजाई थी। इन सभी बैंड समूहों के लिए संगीत का संयोजन नौसेना के संगीत निदेशक लेफ्टिनेंट एसई हिल ने किया था। उसके बाद, राष्ट्रपति को तोप के 31 गोले दागकर सलामी दी गई।

सैनिकों की टुकड़ी का नेतृत्व लेफ्टिनेंट कमांडर इंदर सिंह ने किया था

राष्ट्रपति ने जीप पर चढ़कर परेड का निरीक्षण किया और फिर सलामी स्थल की ओर लौट गए। इस परेड में तीनों सेनाओं और पुलिस के करीब तीन हजार अफसरों और जवानों ने भाग लिया था। इस समारोह की मुख्य परेड के कमांडर ब्रिगेडियर जेएस ढिल्लन थे। जबकि सुनहले बैज के साथ नीली वर्दी पहने नौसेना के 120 सैनिकों की टुकड़ी का नेतृत्व लेफ्टिनेंट कमांडर इंदर सिंह ने किया था। थल सेना के जवानों ने हरे जैतून रंग की वर्दी और सिर पर टोपी पहनी थी। जबकि विभिन्न इकाइयों के सैनिकों ने अपनी-अपनी रेजिमेंटों के अनुरूप रंगों वाली पोशाकें पहनी थीं। जबकि वायुसेना के दो दस्तों में 240 वायुसैनिक थे, जिनकी कमान स्काड्रन लीडर वीएम राधाकृष्णन और स्काड्रन लीडर जेएफ शुक्ला के हाथ में थी। इसके अलावा, दूसरी पंजाब बॉयज बटालियन की भी एक कंपनी थी।

दिल्ली पुलिस के पुलिस अधीक्षक अजब सिंह की कमान वाली खाकी वर्दी पहने 120 जवानों की भी एक टुकड़ी थी। इरविन स्टेडियम में परेड समारोह की समाप्ति के बाद राष्ट्रपति किंग्सवे (राजपथ) से होते हुए वापिस गवर्नमेंट हाउस लौट गए। राष्ट्रपति के काफिले के पूरे रास्ते पर सेना, नौसेना और वायुसेना के सैनिक तैनात किए थे। इतना ही नहीं, राजधानी के पूरे तयशुदा रास्ते में जगह-जगह पर स्वागत के लिए तोरण द्वार बनाए गए थे। दिल्ली में समाज के सभी वर्गों की तिरंगे को फहराने और परेड समारोह में भागीदारी को निश्चित करने के लिए विशेष व्यवस्थाएं की गई थीं।

इर्विन स्टेडियम के ऊपर आकाश में विमानों का ‘फ्लाई पास्ट’ था

इर्विन स्टेडियम में होने वाले समारोह के लिए आस-पड़ोस के गांवों के निवासियों के आने के लिए प्रबंध किए गए थे। इस कार्यक्रम के लिए खास आमंत्रण भी भेजे गए थे। यहां आने वाले गणमान्य व्यक्तियों से लेकर जनसाधारण के वाहनों जैसे बस, कार, तांगा और साइकिलों की पार्किंग के लिए भी प्रबंध किया गया था। स्टेडियम के भीतर होने वाले कार्यक्रम के लिए आमंत्रित व्यक्तियों को विशेष कार पार्क दिए गए थे। इस परेड का मुख्य आकर्षण इर्विन स्टेडियम के ऊपर आकाश में विमानों का ‘फ्लाई पास्ट’ था। जिसमें रॉयल इंडियन एयरफोर्स के चार इंजन वाले लिबरेटर विमानों सहित एक बम वर्षक विमान की संयुक्त उड़ान प्रमुख थी।

‘लिबरेटर’ नामक विमानों के बेड़े का नेतृत्व विंग कंमाडर एचएस आर गुहेल ने किया था। इस फ्लाई पास्ट में भाग लेने वाले विमानों से समारोह स्थल पर होने वाले कार्यक्रम के समय के अनुरूप तालमेल बनाए रखने के लिए स्टेडियम में एक नियंत्रण कक्ष वाली कार तैनात की गई थी। जिससे राष्ट्रपति के झंडारोहण के ठीक बाद होने वाले फ्लाई पास्ट में विमान स्टेडियम के ठीक ऊपर से सही समय पर उड़ान भर सकें।

उल्लेखनीय है कि भारत में कस्बों और शहरों के ऊपर आकाश में विमानों के समूह (फार्मेशन) में उड़ान पर प्रतिबंध था। पर चीफ ऑफ एयर स्टाफ एयर मार्शल सर थॉमस एलमर्हिस्ट ने ऐतिहासिक गणतंत्र दिवस परेड के महत्व को देखते हुए इसकी अनुमति दी थी। एक तरह से, आजाद हिंदुस्तान के मुक्त आकाश में, इन विमानों की उड़ान इतिहास के एक नए अध्याय के आरंभ का प्रतीक थी।