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Nirbhaya Case: मुकेश को फांसी का रास्ता साफ, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका

Nirbhaya Case मुकेश के वकील ने राष्ट्रपति के दया याचिका खारिज करने के आदेश पर सवाल उठाते हुए कहा था कि इसमें प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ लेकिन कोर्ट ने इस तर्क को नहीं माना।

By JP YadavEdited By: Updated: Wed, 29 Jan 2020 11:02 AM (IST)
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Nirbhaya Case: मुकेश को फांसी का रास्ता साफ, सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की याचिका

नई दिल्ली [माला दीक्षित]। Nirbhaya Case : निर्भया मामले के एक दोषी मुकेश की उस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को खारिज कर दिया, जिसमें उसने राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका खारिज करने के आदेश को कोर्ट में चुनौती दी थी। याचिका खारिज होने के साथ ही निर्भया के दोषी मुकेश के पास फांसी से बचने के सभी विकल्प खत्म हो गए हैं। बुधवार को याचिका खारिज करने के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि इस याचिका में कोई मेरिट नहीं है। 

सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज करने के दौरान कहा कि दिल्ली सरकार ने दोषी से जुड़ा सारा रिकॉर्ड राष्ट्रपति को भेजा था। राष्ट्रपति ने रिकॉर्ड देखने के बाद दया याचिका खारिज की है। कोर्ट ने कहा जेल में हुआ शोषण दया याचिका को चुनौती देने का आधार नहीं हो सकता। 

वहीं, केंद्र सरकार ने याचिका का विरोध करते हुए मंगलवार को कहा कि यह याचिका स्वीकार करने लायक नहीं है। राष्ट्रपति द्वारा दोषी को माफी देने के अधिकार की समीक्षा का कोर्ट के पास सीमित अधिकार है। कोर्ट ने मुकेश और सरकार की दलीलें सुनकर बुधवार तक के लिए फैसला सुरक्षित रख लिया। उधर, निर्भया का एक अन्य गुनहगार अक्षय बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में क्यूरेटिव याचिका दाखिल करेगा।

न्यायमूर्ति आर भानुमति, अशोक भूषण और एस बोपन्ना की पीठ ने याचिका पर करीब ढाई घंटे तक दोनों पक्षों की बहस सुनी। मुकेश की ओर से वरिष्ठ वकील अंजना प्रकाश ने राष्ट्रपति के दया याचिका खारिज करने के आदेश पर सवाल उठाते हुए कहा कि इसमें प्रक्रिया का पालन नहीं हुआ है। बिना सोच-विचार के जल्दबाजी में आदेश पारित किया गया है। उन्होंने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति को माफी देने का अधिकार एक संवैधानिक जिम्मेदारी है। सुप्रीम कोर्ट कुछ आधारों पर उसकी समीक्षा कर सकता है। अंजना प्रकाश ने कहा कि जेल अथॉरिटी से सूचना के अधिकार (आरटीआइ) के तहत मिली जानकारी के मुताबिक राष्ट्रपति के समक्ष मुकेश की डीएनए रिपोर्ट पेश नहीं की गई, जिससे साबित होता है कि वह दुष्कर्म में शामिल नहीं था।

जेल में मुकेश के साथ अप्राकृतिक यौनाचार का आरोप

मुकेश के वकील ने कहा कि दुष्कर्म पीड़िता के शरीर में उसके डीएनए नहीं पाए गए। मुकेश उस दिन बस चला रहा था, लेकिन उसने न तो दुष्कर्म किया और न ही पीड़िता को मारने में उसका कोई हाथ था। उसे एकांत कारावास में रखा गया और जेल में उसके साथ अप्राकृतिक यौनाचार किया गया। इन चीजों पर विचार होना चाहिए था।

सॉलिसिटर जनरल ने कहा, याचिका स्वीकार करने लायक नहीं

केंद्र सरकार की ओर से शीर्ष अदालत में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अनुच्छेद 32 के तहत दाखिल की गई मुकेश की यह याचिका स्वीकार किए जाने लायक नहीं है। विडंबना देखिए कि आज कौन जीवन के मूल्यों की बात कर रहा है, जिसने सह अभियुक्तों के साथ मिलकर एक निर्दोष छात्र से न सिर्फ सामूहिक दुष्कर्म किया, बल्कि उसके आंतरिक अंगों को भी खींचकर बाहर निकाल दिया। राष्ट्रपति को दया याचिका भेजने में पूरी प्रक्रिया का पालन किया गया है। खुद सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक दया याचिका निपटाने में देरी करना अमानवीय होता है। मेहता ने यह भी कहा कि मुकेश को कभी भी तिहाड़ में एकांत कारावास में नहीं रखा गया।

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