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2012 Nirbhaya Case: चारों को अलग-अलग फांसी देने का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, आज होगी सुनवाई

2012 Nirbhaya Case निर्भया के चारों दोषियों को अलग-अलग फांसी देने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। इस पर आज सुनवाई होगी।

By JP YadavEdited By: Updated: Fri, 07 Feb 2020 07:08 AM (IST)
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2012 Nirbhaya Case: चारों को अलग-अलग फांसी देने का मामला पहुंचा सुप्रीम कोर्ट, आज होगी सुनवाई
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता/एएनआइ। निर्भया के चारों दोषियों को अलग-अलग फांसी देने का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। इस पर शुक्रवार को सुनवाई होगी। गौरतलब है कि निर्भया के दोषियों की फांसी पर रोक के खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा दायर याचिका को दिल्ली हाई कोर्ट ने ठुकरा दिया। न्यायमूर्ति सुरेश कैट की पीठ ने निचली अदालत के फैसले को रद करने से इन्कार करते हुए कहा कि दोषियों को फांसी अलग-अलग देने के बजाय एक साथ ही दी जाएगी। पीठ ने सभी दोषियों को निर्देश दिया कि वे एक सप्ताह के अंदर सभी कानूनी उपाय पूरे करें। पीठ ने कहा कि इस समयावधि के बाद प्राधिकारी कानून के हिसाब से कार्रवाई कर सकते हैं।

पीठ ने कहा कि निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक यह मामला एक समान आदेश से तय हुआ है। ऐसे में पीठ इस विचार से सहमत है कि सभी दोषियों के खिलाफ डेथ वारंट एक साथ जारी होना चाहिए, न कि अलग-अलग। पीठ ने कहा कि निचली अदालत के आदेश पर रोक लगाने का कोई उचित आधार नहीं है।

2017 में एसएलपी खारिज होने के बाद प्राधिकारी सोते रहे

हाई कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए प्राधिकारियों को भी आड़े हाथ लिया। पीठ ने कहा कि 2017 में सुप्रीम कोर्ट से विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) खारिज होने के बाद डेथ वारंट जारी करने के संबंध में प्राधिकारी सोते रहे और इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया।

न्यायमूर्ति सुरेश कैट की पीठ ने कहा कि सभी जिम्मेदार प्राधिकारी नौ दिसंबर, 2019 तक दोषी अक्षय द्वारा सुप्रीम कोर्ट के फैसले को चुनौती देने का इन्तजार करते रहे। पीठ ने कहा कि अक्षय की पुनर्विचार याचिका 18 दिसंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट से खारिज हुई। पीठ ने कहा कि इसमें कोई विवाद नहीं है कि निर्भया के साथ दोषियों ने युवती के साथ जो कुछ किया वह बेहद अमानवीय, बर्बर, क्रूर और संगीन अपराध था। इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर कर रख दिया था। पीठ ने कहा कि हमें ये कहने में कोई झिझक नहीं है कि दोषियों ने मामले को लंबा खींचा और अपील व पुनर्विचार याचिका दाखिल करने में भी देरी की। पीठ ने कहा दोषी लगातार जीने के अधिकार का हवाला देकर बचते रहने की कोशिश करते रहे हैं।