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Mahashivratri 2020 : उज्जैन के राजा महादेव की काशी में निकाली जाती है अनूठी शिव बरात

महाशिवरात्रि पर काशी में निकाली जाती है अनूठी शिव बरात तैयारियां जोरों पर काशी- महाकाल एक्सप्रेस में महाकाल के लिए बर्थ रिजर्व करने पर बवाल क्यों...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Wed, 19 Feb 2020 09:37 AM (IST)
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Mahashivratri 2020 : उज्जैन के राजा महादेव की काशी में निकाली जाती है अनूठी शिव बरात
जागरण टीम, नई दिल्ली। आइये पहले बनारस चलते हैं, फिर उज्जैन चलेंगे...। काशी में हाजी बदरुद्दीन महाशिवरात्रि की तैयारियों को लेकर व्यस्त हैं। इस दिन उन्हें शिव बरात में दुल्हन बनना है। पेशे से चश्मा व्यापारी हैं, लेकिन पूरे शहर में ऐसा कपड़ा खोज रहे हैं जो दुल्हन पर फबे। 65 साल के इस दुल्हन के दूल्हा बनेंगे 83 साल के सुदामा तिवारी उर्फ सांड बनारसी।

यह आयोजन लोक आस्था का जीवंत उदाहरण है। यह दिखाता है कि जाति-धर्म से ऊपर उठ कर हर बनारसी अपने राजा के लिए दी गई जिम्मेदारी को तत्परता से निभाता है। लोक आस्था का ऐसा ही उदाहरण उच्जैन में भी दिखता है। यहां विराजमान महाकाल को अवंतिकाराज के रूप में सदियों से पूजा जाता आया है। स्टेट के समय तत्कालीन सिंधिया राजवंश के सदस्य महाकाल की अंवतिकानाथ के रूप में पूजा किया करते थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इस परंपरा का निर्वहन जिला कलेक्टर करने लगे।

हर साल श्रावण-भादौ मास की सवारी में जिलाधिकारी भगवान महाकाल की पूजा-अर्चना कर पालकी को नगर भ्रमण के लिए रवाना करते हैं। मंदिर के मुख्यद्वार पर मध्यप्रदेश पुलिस की सशस्त्र बल की टुकड़ी राजाधिराज को सलामी देती है। हर साल श्रावण-भादौ और कार्तिक-अगहन मास में उच्जयिनी के राजा महाकाल प्रजा का हाल जानने के लिए चांदी की पालकी में सवार होकर नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं। सवारी का स्वरूप भी राजा-महाराजाओं के लाव-लश्कर की तरह होता है।

महाशिवरात्रि पर भी कलेक्टर करेंगे पूजा : महाशिवरात्रि पर भगवान महाकाल के शासकीय पूजन की परंपरा है। इस बार भी 21 फरवरी को दोपहर 12 बजे शासन की ओर से डीएम महाकाल की पूजा अर्चना करेंगे। शाम 4 बजे सिंधिया व होलकर राजवंश की ओर से भगवान की पूजा अर्चना की जाएगी।

थाने की कुर्सी पर काशी के कोतवाल : देवाधिदेव महादेव भोले बाबा काशी के पुराधिपति तो बाबा कालभैरव उनकी नगरी के कोतवाल। उनकी महिमा का प्रताप शहर के पहले थाने कोतवाली में नजर आता है जिसमें मुख्य कुर्सी पर बाबा खुद विराजते हैं और थानेदार समीप दूसरी कुर्सी से थाना चलाता है। कोतवाली प्रभारी महेश पांडेय ने बताया कि बीते साल सावन के आखिरी सोमवार को कुर्सी संभालने आया तो हैरान रह गया जो नजारा सामने पाया। कुर्सी पर विराजमान बाबा कालभैरव की छवि जिन्हें पुलिसकर्मियों ने काशी कोतवाल बताया, उनका दर्शन पूजन कर जिम्मेदारी संभाली। अब तो इससे ही दिन की शुरुआत होती है।

बाबा महाकाल के नाम बर्थ : बाबा भोले शंकर लोक आस्था के राजा ठहरे तो भला उनसे जुड़े दो नगरों को जोड़ने वाली ट्रेन उन्हें क्यों न मुदित कर जाए। काशी विश्वनाथ की नगरी से जब यात्रियों का पहला जत्था महाकाल की नगरी के लिए निकला तो भक्तों ने बड़ी ही श्रद्धा और विश्वास के साथ अपने बाबा को कोच बी-5 की 64 नंबर बर्थ पर विराजमान कराया। साथ में शिव परिवार और देव मंडल की झांकी सजाई और पूजा आरती कर वातावरण को शिवमय बनाया। आइआरसीटीसी ने भी इसके पीछे की मंशा से पर्दा हटाया और बताया कि कारपोरेट ट्रेन के उद्घाटन सफर में माहौल पूरी तरह आध्यात्मिक बनाने के लिए यह कवायद की गई। ट्रेन के अंदर ध्वनि विस्तारक यंत्रों से भजन गूंजे और रेल अफसरों व उनके स्वजनों के अलावा विशेष अतिथियों ने भी भजन-कीर्तन करते रास्ता बिताया।

(इनपुट-उच्जैन से नई दुनिया के राजेश वर्मा और वाराणसी से शाश्वत मिश्रा)

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