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Coronavirus: संकट की इस घड़ी में काम आ सकने वाले कारगर उपकरण बनाने में जुटे युवा

COVID-19 कोरोना वायरस से बचाव को कवच हाईकैपेसिटी सैनिटाइजर जैसे संसाधन कर रहे विकसित ताकि न करना पड़ें आयात।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Wed, 01 Apr 2020 10:16 AM (IST)
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Coronavirus: संकट की इस घड़ी में काम आ सकने वाले कारगर उपकरण बनाने में जुटे युवा

जेएनएन, नई दिल्ली। COVID-19: एक ओर जहां पूरा तंत्र कोरोना से लड़ने में दिन-रात एक किए हुए है, कुछ युवा नवोन्मेषी भी ऐसे कारगर उपकरण बनाने में जुटे हुए हैं जो संकट की इस घड़ी में काम आ सकें। ऐसे ही एक कोरोना फाइटर हैं जबलपुर, मप्र निवासी अभिनव ठाकुर।

इस युवा इंजीनियर ने लॉक डाउन के बीच घर में रहकर ही कोरोना से बचाव के लिए ऐसे उपकरण बनाए जो बाजार में इन दिनों मुश्किल से मिल रहे हैं। वो भी बेहद मामूली कीमत पर। हालांकि इन उपकरणों को अब सरकार से अनुमति मिलने का इंतजार है। वह कहते हैं कि यदि उनके उपकरणों को मेडिकल से प्रमाणित किया जाता है तो इसे लागत मूल्य पर उपलब्ध कराएंगे।

उनके द्वारा तैयार सैनिटाइजिंग गेट कोरोना की जांच और इलाज में लगे डाक्टरों, पुलिस कर्मियों और जनता के संपर्क में आने वाले वॉलंटियर्स को वायरस से बचाने में कारगर है। इसकी ऊंचाई 7 फीट और चौड़ाई 5 फीट है। यह पूरी तरह फोल्डेबल है और आसानी से इसे कहीं भी इंस्टाल किया जा सकता है। इसमें 6 नोजेल लगे हुए हैं जो हाईप्रेशर पंप से कनेक्ट हैं। मोबाइल के द्वारा दूर से भी इसे कंट्रोल किया जा सकता है। इसमें किसी भी तरह के तरल सैनिटाइजर का इस्तेमाल किया का सकता है। इसकी लागत करीब 5 हजार रुपये के आसपास है। कोरोना महामारी के बीच इंफ्रारेड सेंसरयुक्त तापमापी की मांग तेजी से बढ़ी है। बाजार में जरूरत के मुताबिक उपलब्धता नहीं है। इस उपकरण की मदद से बिना छुए ही दूर से व्यक्ति का तापमान मापा जा सकता है। इसे थ्रीडी प्रिंटर की मदद से तैयार किया गया है। लागत करीब एक हजार रुपए की आई है।

इसके अलावा उन्होंने फेस शील्ड भी बनाई है। इसे थ्रीडी प्रिंटर के जरिये पाली लैक्टिक एसिड से बनाया गया है और इसकी शील्ड पॉलीएथेलीन की है, जो की आम स्टेशनेरी पर उपलब्ध होती है, जिसे आसानी सैनिटाइज किया जा सकता है, बदला जा सकता है। यह शील्ड उन लोगों के खास काम आएगी जो सीधे तौर पर जांच आदि का काम कर रहे हैं। शील्ड उनके चेहरे खासकर आंख, मुंह, नाक और उनके मास्क को सीधे संपर्क में आने से बचाएगी। शील्ड की कीमत एक से दो रुपये आती है। 2 दिन के भीतर इसे डिजाइन किया गया है।

मोबाइल विषाणुनाशक चैंबर : वहीं, आइआइटी कानपुर के पूर्व छात्र पंकज मित्तल ने मोबाइल विषाणुनाशक चैंबर तैयार किया है। इसका निर्माण भारत में स्वच्छ भारत अभियान के तहत इस्तेमाल होने वाले पोर्टेबल शौचालय के केबिन पर किया गया है। पंकज बताते हैं कि अभी तक मोबाइल विषाणुनाशक चैंबर का प्रयोग चीन के वुहान और हांगकांग सहित कई देशों में हुआ है। एक चैंबर बनाने में अधिक कीमत आती है, हमने पोर्टेबल शौचालय के केबिन का प्रयोग किया है। इसे तैयार करने में दो लाख रुपये की कीमत आई है। विदेश में जो मोबाइल विषाणुनाशक चैंबर लगे हैं उनकी कीमत चार लाख तक है। सोमवार को दिल्ली के रोहिणी स्थित आंबेडकर अस्पताल में इसका मेडिकल प्रशिक्षण भी हो गया है। जिसके सुखद परिणाम रहे।

इस एक मोबाइल चैंबर के माध्यम से एक दिन में एक हजार लोगों को सैनिटाइज किया जा सकता है। इसकी विशेषता है कि सिर्फ 5 एमएल यानी जितना सैनिटाइजर हम हाथों पर लगाते हैं उतना ही सैनिटाइजर पूरी बॉडी के लिए पर्याप्त है। हम जिस तरह से किसी भी कार्यालय में जाने से पहले सुरक्षा जांच के लिए स्कैनर से होकर गुजरते हैं उसी तरह इस मशीन को गेट पर रखकर व्यक्ति को 20 सेकंड के लिए इसमें खड़ा करने से वो पूरी तरह से सुरक्षित हो जाएगा।

(जबलपुर से पंकज तिवारी और नई दिल्ली से मनु त्यागी की रिपोर्ट।)