National Doctor's Day 2020: कोरोना से जंग में घर को भी भूले डॉक्टर, जवानों सा जज्बा लेकर कर रहे इलाज
सफदरजंग अस्पताल में गायनी के कोविड वार्ड की नोडल अधिकारी व सहायक प्रोफेसर डॉ. शिबा मारवाह कोराना मरीजों का इलाज करते-करते खुद उसकी चपेट में आ गईं।
नई दिल्ली, जेएनएन। डॉक्टर अपने जीवन को जोखिम में डालकर कोरोना मरीजों के इलाज में जुटे हैं। कोई एक महीने से परिवार से नहीं मिला तो कोई दिल्ली में रहकर भी घर नहीं जा पा रहे। इस दौरान कई डॉक्टर कोरोना की चपेट में भी आ गए। हैरानी की बात यह है कि कोरोना से इस संघर्ष के बीच डॉक्टरों को किराये के घर से निकालने की कोशिश करने की घटनाएं भी हुईं। फिर भी वे मरीजों के इलाज से पीछे नहीं हटे।
दिल्ली में अकेली रहकर किया कोरोना से संघर्ष
सफदरजंग अस्पताल में गायनी के कोविड वार्ड की नोडल अधिकारी व सहायक प्रोफेसर डॉ. शिबा मारवाह कोराना मरीजों का इलाज करते-करते खुद उसकी चपेट में आ गईं। उन्होंने कोरोना संक्रमित कई गर्भवती महिलाओं का सिजेरियन भी किया। जब उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई तब उन्हें खास लक्षण नहीं था।
इसलिए उन्होंने होम आइसोलेशन का विकल्प चुना। वह दिल्ली में अकेली किराये के घर में रहती हैं। कोरोना होने पर मकान मालिक द्वारा उन्हें तंग किया जाने लगा। यह उनके लिए अधिक पीड़ादायक था। लेकिन अस्पताल प्रशासन, पुलिस, पड़ोसियों व रेजिडेंट डॉक्टर्स एएसोसिएशन (आरडीए) का उन्हें भरपूर सहयोग मिला। वह तीन माह से अपने परिवार से मिलने चंडीगढ़ नहीं गई हैं।
जवानों सा जज्बा लेकर उपचार कर रहीं डॉक्टर रितु
लोकनायक अस्पताल की इमरजेंसी की प्रभारी डॉ. रितु सक्सेना 17 मार्च से लगातार अपनी ड्यूटी निभा रही हैं। उनका कहना है कि जब देश की सीमाओं पर तैनात जवान सर्दी और गर्मी में अपना फर्ज निभा सकते हैं तो हम क्यों नहीं। उन्होंने कहा कि पीपीइ किट पहनकर ड्यूटी करना बहुत ही मुश्किल काम हैं, लेकिन मरीजों की जान बचाना उससे भी जरूरी है। डॉ रितु ने बताया कि वह लगातार अपने साथी डॉक्टर, नर्स और अन्य कर्मचारियों का हौसला बढ़ाने के लिए भी काम कर रही हैं। साथ ही मरीजों को भी कोरोना से लड़ने के लिए जज्बा देती हैं, ताकि वह आसानी से जीत जंग जीत सकें। वहीं, परिवार से भी दूरी बनाकर घर में रह रही हैं।
नए वायरस से पुराने अनुभव के साथ लड़ रहे डॉ. पवन
आरएमएल अस्पताल के नोडल अधिकारी डॉक्टर पवन कुमार ने बताया कि कोरोना वायरस बिल्कुल नया वायरस हैं, जिससे वह अपने पुराने अनुभव के साथ लड़ाई लड़ रहे हैं। जब तक इस वायरस की दवा नहीं आ जाती है तब तक सतर्कता के साथ ही इससे बचा जा सकता है। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन डॉक्टर्स के लिए बड़ा लाभदायक रहा, जिससे कोरोना संक्रमितों की संख्या कंट्रोल में रही है, नहीं तो देश के अंदर हालात बेकाबू हो सकते थे। उन्होंने कहा दूसरे देशों में तापमान कम होने के कारण पीपीइ किट पहनना आसान है, लेकिन भारत में दो घंटे पीपीई किट पहनकर काम करना बहुत मुश्किल है।
कोरोना से जंग के लिए घर को भूले डॉ. अजीत जैन
मार्च के पहले हफ्ते में राजीव गांधी सुपरस्पेशियलिटी अस्पताल में कोरोना से जंग की तैयारी शुरू हो गई थी। इस अस्पताल में नोडल अधिकारी बनाए गए वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. अजीत जैन की देखरेख में 17 मार्च को पहली बार दस मरीज भर्ती हुए थे। इस दिन के बाद से डॉ. अजीत जैन यहां से 14 किलोमीटर दूर स्थित अपने घर नहीं गए। अस्पताल में ही एक कमरे में रहने लगे। अस्पताल के अधिकारी बताते हैं कि डॉ. अजीत जैन की मेहनत ही थी कि 65 बेड से शुरू हुए कोरोना वार्ड की क्षमता आज 500 पहुंच गई है। डॉ. अजीत के परिवार में पत्नी डॉ. प्रेरणा, दो बेटी और एक बेटे हैं। डॉ. प्रेरणा कमला नगर में ही मोहल्ला क्लीनिक में तैनात हैं।
हर पल मदद के लिए तैयार डॉ. रजनी खेडवाल
स्वामी दयानंद अस्पताल की चिकित्सा अधीक्षक डॉ. रजनी खेडवाल को इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब तारीफ मिल रही है। दरअसल, डॉ. रजनी के व्यवहार का सभी लोग गुणगान कर रहे हैं। पार्षद श्याम सुंदर अग्रवाल ने फेसबुक पर लिखा कि इनकी जितनी तारीफ की जाए कम है। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन के दौरान ऐसी आठ गर्भवती महिलाओं का मामला सामने आया है जिन्हें कोई भर्ती करने को तैयार नहीं था। इन सभी को उन्होंने स्वामी दयानंद अस्पताल भेजा। इन सभी का प्रसव बिना ऑपरेशन के हुआ।
कोरोना से जंग में आयुर्वेद के डॉक्टर भी शामिल
कोरोना से जंग में आयुर्वेद के डॉक्टर भी शामिल हैं। खैरा डाबर स्थित चौ. ब्रह्म प्रकाश आयुर्वेदिक चरक अस्पताल के अतिरिक्त निदेशक डॉ. एनआर सिंह ने कहा कि यदि कोई पूरे मन से कार्य करते हैं तो नतीजे शानदार आते हैं। संस्थान में अभी तक करीब 600 कोरोना के मरीज भर्ती हो चुके हैं। इनमें से ज्यादातर मरीज ठीक होकर घर जा चुके हैं। मरीजों को स्वस्थ होकर लौटते देखना एक असीम आनंद देता है। पहले कोरोना को लेकर स्वास्थ्यकर्मियों में डर अधिक था। उन्होंने उनके अंदर के डर को दूर किया, उन्हें हिम्मत दी, उनकी शंकाओं को दूर किया। उन्होंने कहा कि अब हमें कोरोना के साथ जीना होगा
जब तक टीका नहीं आ जाता तब तक शारीरिक दूरी के नियम का पालन ही सोशल वैक्सीन है: डॉ. नीरज निश्चल
एम्स के मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. नीरज निश्चल की भी कोरोना मरीजों के इलाज में ड्यूटी लगी हुई है। वह कहते हैं कि डॉक्टर को संक्रमण होने का खतरा तो अक्सर रहता ही है, लेकिन डॉक्टर होने के नाते उन्हें इस बीमारी से डर नहीं लगा। उन्होंने बताया कि पीपीई किट पहनने के बाद अंदर गर्मी, पसीना व मास्क के अंदर कार्बन डाईऑक्साइड बढ़ने से सिरदर्द जैसी समस्या होती है।
इसलिए पांच से छह घंटे से अधिक पीपीई किट में काम करना मुश्किल होता है। उन्होंने कहा कि लोग किसी भी दवा का नाम सुनकर उसके पीछे भागने लगते हैं। यह ठीक नहीं है। कोई भी दवा डॉक्टर की सलाह के बगैर न लें। ऐसा करना खतरनाक हो सकता है। जब तक टीका नहीं आ जाता तब तक शारीरिक दूरी के नियम का पालन ही सोशल वैक्सीन है। समय समय पर डॉक्टर द्वारा दिए जा रहे दिशा निर्देशों का पालन करते रहना चाहिए और घर से बाहर निकलने पर मास्क का प्रयोग करना चाहिए।