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Kachre Se Azadi: जैविक अपशिष्ट का बेहतर निस्तारण बेहद जरुरीः डॉ. टीके जोशी

दिल्ली-एनसीआर में दिन ब दिन बढ़ रहे कूड़े के पहाड़ से लोग पहले ही परेशान हैं अब कोरोना के कारण जैविक कचरा पहले की तुलना में अधिक उत्पन्न हो रहा है।

By Mangal YadavEdited By: Updated: Wed, 12 Aug 2020 01:59 PM (IST)
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Kachre Se Azadi: जैविक अपशिष्ट का बेहतर निस्तारण बेहद जरुरीः डॉ. टीके जोशी
नई दिल्ली। चिकित्सा संस्थानों से निकलने वाले जैविक अपशिष्ट का बेहतर व समय पर निस्तारण नहीं होना, पर्यावरण और स्वास्थ्य दोनों के लिए हानिकारक हो सकता है। यही वजह है कि अस्पतालों से निकाले वाले ठोस व द्रव युक्त अपशिष्ट के प्रबंधन के लिए अलग-अलग प्रावधान हैं। यदि अस्पतालों से निकलने वाला रक्त, रसायन व दवाओं के अंश युक्त पानी को शोधित किए बगैर नालों में बहा दिया जाए तो उससे नदी में प्रदूषण बढ़ सकता है।

ठोस चिकित्सीय जैविक अपशिष्ट का उचित निस्तारण न होने से भी कई गंभीर बीमारियों की आशंका रहती है। हालांकि अब तक कोई ऐसी घटना नहीं हुई है जिससे यह साबित हो सके कि जैविक कचरे से बीमारी फैल सकती है।

प्रबंधन में बरती जा रही लापरवाही

दिल्ली-एनसीआर में दिन ब दिन बढ़ रहे कूड़े के पहाड़ से लोग पहले ही परेशान हैं अब कोरोना के कारण जैविक कचरा पहले की तुलना में अधिक उत्पन्न हो रहा है। यदि इसके सही प्रबंधन को लेकर जागरूकता नहीं बढ़ी तो परेशानी बढ़ सकती है। इस अपशिष्ट की निगरानी भी बेहद जरूरी है लेकिन मानव संसाधन की कमी इसमें आड़े आ रही है। मौजूदा परिस्थिति को देखते हुए कोरोना के इलाज के दौरान निकलने वाले अपशिष्ट के निस्तारण के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने दिशा-निर्देश बनाए हैं।

इसके तहत कोरोना मरीजों के इलाज के दौरान निकलने वाले अपशिष्ट को पीले बैग में एकत्रित करने का प्रावधान है ताकि उसे इंसीनरेटर में जलाया जा सके। सामान्य अपशिष्ट को दूसरे बैग में रखा जाना चाहिए। लेकिन डॉक्टर व स्वास्थ्य कर्मचारी संक्रमण को लेकर इतने डरे हुए हैं कि वे नियमों का ठीक से पालन नहीं कर रहे हैं। यही वजह है कि जैव चिकित्सीय अपशिष्ट इतना बढ़ गया है कि उसका निस्तारण मुश्किल हो रहा है।

अपशिष्ट को समझने की जरूरत

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने ए व बी श्रेणी में जैव चिकित्सीय अपशिष्ट का वर्गीकरण किया है। ए श्रेणी का अपशिष्ट बेहद खतरनाक होता है। इबोला, एचआइवी व हेपेटाइटिस बी जैसी बीमारियों के इलाज के दौरान निकलने वाले अपशिष्ट को इस श्रेणी में रखा गया है, क्योंकि हेपेटाइटिस बी का संक्रमण होने पर वह जीवन भर खत्म नहीं होता। कोरोना से संबंधित अपशिष्ट को बी श्रेणी में रखा गया है।

इसलिए चिकित्सा संस्थानों, डॉक्टरों व लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। उन्हें यह समझाने की जरूरत है कि अपशिष्ट का निस्तरण उसी तरह से करें जैसे कोरोना से पहले कर रहे थे। खासकर कर्मियों द्वारा इस्तेमाल होने वाली पीपीई किट का विधिवत निस्तारण जरूरी है। पीपीई किट यदि खुले में या सामान्य कचरे के साथ फेंक दी गई, तो उससे दूसरे को संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है।

(व्यावसायिक व पर्यावरणीय स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. टीके जोशी से संवाददाता रणविजय सिंह से बातचीत पर आधारित)

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