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Delhi Metro में सीट 'रिजर्वेशन' को लेकर लोग ट्वीट के जरिये कस रहे तंज

कोरोना के चलते आरक्षित सीट पर बैठने के दो नुकसान हैं। एक तो जुर्माना भरना पड़ सकता है और अगर जुर्माने से बच भी गए तो कोरोना वायरस अपना शिकार बना सकता है।

By JP YadavEdited By: Updated: Mon, 21 Sep 2020 01:27 PM (IST)
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नई दिल्ली [रणविजय सिंह]। मेट्रो में महिला यात्रियों के लिए एक पूरा कोच आरक्षित है। अन्य कोचों में भी उनके लिए सीट आरक्षित है। बुजुर्ग व दिव्यांगों का भी मेट्रो ने खयाल रखा है, इसलिए उनके लिए भी सीट आरक्षित की गई है। हालांकि पहले भी महिलाओं की सीट पर पुरुष यात्री सफर करते दिख जाते थे। अब एक सीट छोड़कर बैठने का स्टीकर लगने के बाद कई यात्रियों ने चुटकी लेते हुए दिल्ली मेट्रो रेल निगम (डीएमआरसी) के ट्विटर हैंडल पर ट्वीट किया कि अब ऐसा समय आ गया कि मेट्रो में कोरोना के लिए भी सीट आरक्षित करनी पड़ी। उस सीट पर बैठने के दो नुकसान हैं। एक तो जुर्माना भरना पड़ सकता है और अगर जुर्माने से बच भी गए तो कोरोना वायरस अपना शिकार बना सकता है, इसलिए कोरोना के लिए आरक्षित सीट से दूर रहें और खुद का बचाव करें।

एम्स के नारे 'ये भाई जरा बच के चलो'

'ये भाई जरा बच के चलो ये भाई जरा बच के चलो। कोई किसी से सटने न पाए।' ये बातें एम्स में एक खास जगह पर लोगों के द्वारा सुनने को मिलती हैं। यहां मौजूद लोग उस रास्ते से गुजर रहे दूसरे लोगों को कोरोना से बचाव के लिए सतर्क कर रहे होते हैं। दरअसल, एम्स के ओल्ड ओपीडी ब्लॉक के पास कोरोना की सैंपल जांच के लिए चार काउंटर बने हैं। काउंटर के अंदर से ही पैरामेडिकल कर्मी मरीजों की नाक से स्वैब का सैंपल लेते हैं। बाहर मरीज थोड़ी दूरी बनाकर खड़े होते हैं। वैसे तो उस सड़क को दोनों तरफ बैरिकेड लगाकर घेरा गया है, फिर भी किनारे से पैदल जाने का रास्ता है। अब जिन्हें नहीं मालूम कि वह कतार कोरोना की जांच के लिए है, वे उस कतार के बीच से ही आने-जाने का प्रयास करते हैं। एम्स के सुरक्षा कर्मी तो मना नहीं करते, लेकिन जांच के लिए प्रतीक्षा में खड़े मरीज ही आगाह कर देते हैं।

सवालों के थर्मामीटर से पता कर रहे तापमान

एम्स की ओपीडी में ठीक-ठाक मरीज पहुंचने लगे हैं। वार्ड में शारीरिक दूरी के नियम के पालन की पूरी व्यवस्था है। डॉक्टर, कर्मचारी भी वार्ड में मास्क व गाउन पहने नजर आते हैं। ओपीडी में प्रवेश करते ही हर मरीज की स्क्रीनिंग के लिए काउंटर बना है। वहां कर्मचारी अनोखे अंदाज में स्क्रीनिंग करते दिखते हैं। कर्मचारी हर मरीज से पहला सवाल यह पूछते हैं कि बुखार है या नहीं? मरीज का जवाब आता है नहीं। न थर्मल स्क्रीनिंग, न थर्मामीटर से जांच। मरीज के जवाब को ही कर्मचारी सही मानकर दूसरे सवाल की तरफ आगे बढ़ जाते हैं। किसी कोरोना संक्रमित के संपर्क में आने या न आने का सवाल तो वाजिब है, लेकिन शरीर का तापमान भी सवालों के थर्मामीटर से नापने पर यह प्रश्न उठाए जा रहे हैं कि जब मेट्रो स्टेशन, एयरपोर्ट यहां तक कि हर निजी अस्पताल में थर्मल स्क्रीन हो सकती है तो एम्स में क्यों नहीं?

सुपर पावर का पीछा

कोरोना से जंग को छह माह बीत रहे हैं। इस जंग में कभी कोरोना पस्त तो कभी हावी होता दिखा। एक समय इस पर अंकुश लगाकर रखने में देश को मिली सफलता को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भी सराहा, लेकिन एक बार जब कोरोना ने रफ्तार पकड़ी तो इसने हमें संक्रमण के मामले में दुनिया में दूसरे नंबर पर ला खड़ा किया। जिस तरह लोग नियमों के पालन से परहेज कर रहे हैं, उससे किसी दिन सुपर पावर अमेरिका भी पीछे छूट जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। पिछले दिनों एम्स निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने बातों ही बातों में इस तरफ इशारा भी किया। मौका एम्स नेशनल ग्रैंड राउंड-7 का था। अमेरिका से क्रिटिकल केयर की विशेषज्ञ डॉ. मंगला नरसिम्हन भी ऑनलाइन जुड़ी थीं। डॉ. रणदीप गुलेरिया ने उनका परिचय कराने के बाद उनसे कहा कि एक समय न्यूयॉर्क में संक्रमण चरम पर था और अब हम भी अमेरिका का पीछा कर रहे हैं।

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