Move to Jagran APP

2020 Delhi Riots Case: 'तलवार हाथ में लेकर नहीं मिलती अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' आरोपितों पर कोर्ट की सख्त टिप्पणी

आरोपितों की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि तलवार हाथ में लेकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं मिलती है। कोर्ट ने कहा आरोपितों ने दंगों के दौरान जो किया वह माफी के लायक नहीं है।

By JP YadavEdited By: Updated: Tue, 22 Sep 2020 02:46 PM (IST)
Hero Image
पूर्वी दिल्ली स्थित कड़कड़डूमा कोर्ट की सांकेतिक फोटो।
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। स्पेशल सेल द्वारा दिल्ली दंगों के 15 आरोपितों के खिलाफ दायर आरोप पत्र पर कड़कड़डूमा कोर्ट में सोमवार को वीडियो कान्फ्रेंसिंग से सुनवाई हुई। कड़कड़डूमा कोर्ट ने दंगा आरोपित बदरुल हसन और मुहम्मद इब्राहीम की जमानत याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि तलवार हाथ में लेकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं मिलती है। कोर्ट ने कहा आरोपितों ने दंगों के दौरान जो किया वह माफी के लायक नहीं है। पुलिस की ओर से पेश वकील ने कहा कि दोनों आरोपितों के खिलाफ पुख्ता सबूत हैं।   

 वहीं, अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत की कोर्ट में आम आदमी पार्टी के निलंबित पार्षद ताहिर हुसैन, पिंजरा तोड़ संगठन के सदस्यों व अन्य सभी की पेशी हुई। कोर्ट ने पुलिस को आदेश दिया कि सभी आरोपितों को आरोप पत्र की कॉपी दी जाए। गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत गिरफ्तार छात्रा गुलफिशा फातिमा ने कोर्ट से कहा जेल में उसके साथ धार्मिक भेदभाव किया जा रहा है। मानसिक तौर पर प्रताड़ित करने का आरोप लगाते हुए कहा कि जेल के अधिकारी और कर्मचारी उसे शिक्षित आतंकवादी कहते हैं, उसपर सामूहिक रूप से कत्लेआम कराने का आरोप लगाया जाता है। इन सबसे आहत होकर अगर जेल में खुद को हानि पहुंचाती है तो इसका जिम्मेदारी जेल प्रशासन होगा। कोर्ट ने गुलफिशा का पक्ष सुनने के बाद कहा वह अपने वकील के जरिये निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार कोर्ट में याचिका दायर करे। कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 3 अक्टूबर तय की है।

वहीं, दंगों के मामले में गिरफ्तार आरोपित शादाब अहमद की उस याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया, जिसमें उसने कहा गया था पुलिस ने हिरासत के दौरान उसे मजबूर करके धोखे से विभिन्न दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करवाएं हैं। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि आरोपित हिरासत के दौरान अपने वकील से शारीरिक रूप से मिला था। अगर ऐसा था तो वह उस वक्त अपने वकील को यह बात क्यों नहीं बताई, आरोपित की सच्चाई पर हैरानी भी हो रही है। आरोपित के वकील ने कोर्ट में कहा कि 24 से 26 अगस्त तक आरोपित पुलिस हिरासत में रहा था, उसी वक्त पुलिस ने उससे विभिन्न कागजातों पर हस्ताक्षर करवाए थे। पुलिस के वकील ने आरोपों को खारिज कर दिया।

Coronavirus: निश्चिंत रहें पूरी तरह सुरक्षित है आपका अखबार, पढ़ें- विशेषज्ञों की राय व देखें- वीडियो

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।