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Delhi Air Pollution: पराली की समस्या को दूर करेगा पूसा डिकंपोजर, अरविंद केजरीवाल ने भी सराहा

Delhi Air Pollution पूसा डिकंपोजर की सराहना करते हुए अरविंद केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली में ठंड के मौसम में प्रदूषण का प्रमुख स्त्रोत धान की पराली और फसल के अन्य अवशेष हैं। मैं आइएआरआइ के वैज्ञानिकों को प्रभावी तकनीक विकसित करने के लिए बधाई देता हूं।

By JP YadavEdited By: Updated: Thu, 24 Sep 2020 12:10 PM (IST)
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पंजाब और हरियाणा में पराली जलाए जाने की फाइल फोटो।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। Delhi Air Pollution:  भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आइएआरआइ) पूसा के निदेशक डॉ. ए के सिंह और कई वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने ठंड में वायु प्रदूषण को लेकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के समक्ष फसल के अवशेष जलाने की समस्या से निपटने के लिए नई तकनीक पूसा डिकंपोजर की प्रस्तुति दी। इसकी सराहना करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि 'दिल्ली में ठंड के मौसम में प्रदूषण का प्रमुख स्त्रोत धान की पराली और फसल के अन्य अवशेष हैं। मैं आइएआरआइ के वैज्ञानिकों को इस समस्या से निपटने के लिए कम लागत वाली प्रभावी तकनीक विकसित करने के लिए बधाई देता हूं। सरकारों को फसल के अवशेष को जलाने की समस्या का समाधान करने के लिए वैज्ञानिकों के साथ मिलकर काम करने की जरूरत है।' इस बैठक में पर्यावरण एवं विकास मंत्री गोपाल राय, विकास विभाग के अधिकारी भी मौजूद रहे। यह तकनीक पूसा डिकंपोजर कही जाती है, जिसमें आसानी से उपलब्ध इनपुट को मिलाया जा सकता है। इसका फसल वाली खेतों में छिड़काव किया जाता है। कैप्सूल की लागत केवल 20 रुपये प्रति एकड़ है और प्रभावी रूप से प्रति एकड़ 4-5 टन कच्चे भूसे का निस्तारण किया जा सकता है।

नई तकनीक को जानने पूसा परिसर जाएंगे

मुख्यमंत्री पंजाब और हरियाणा के कृषि क्षेत्रों में पिछले 4 वर्षो में आइएआरआइ द्वारा किए गए शोध में बहुत उत्साहजनक परिणाम सामने आए हैं, जिससे पराली जलाने की जरूरतों को कम करने और साथ ही उर्वरक की खपत कम करने और कृषि उत्पादन बढ़ाने के नजरिये से इसका उपयोग करने से लाभ मिला है। इसकी प्रभावी क्षमता और आसानी से इस्तेमाल की जा सकने वाली इस तकनीक से प्रभावित होकर केजरीवाल ने पूसा जाने का फैसला किया है। उन्होंने विकास विभाग के अधिकारियों को लागत व लाभ का विस्तृत विश्लेषण करने और बाहरी दिल्ली के सभी खेतों में इस तकनीक के कार्यान्वयन का पता लगाने के निर्देश भी दिए हैं, जो फसल के अवशेष की समस्या का सामना करते हैं।

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