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Deendayal Upadhyaya: दीनदयाल उपाध्याय की समाधि पर पूजा नहीं, होता है अंतिम संस्कार

Deendayal Upadhyaya उत्तरी दिल्ली नगर निगम के अंतर्गत निगम बोध श्मशान घाट पर 12 फरवरी 1968 को दीनदयाल उपाध्याय का अंतिम संस्कार हुआ था। उनके अंतिम संस्कार का स्थल आज भी लोगों के लिए उपयोग हो रहा है।

By JP YadavEdited By: Updated: Fri, 25 Sep 2020 11:57 AM (IST)
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जनसंघ के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की फाइल फोटो।
नई दिल्ली [निहाल सिंह]। Deen dayal Upadhyaya: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक और जनसंघ के संस्थापक पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर 1916 को उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले में हुआ था। शुक्रवार को उनकी 104वीं जयंती है। उनका अंतिम स्थल आज भी लोगों के लिए प्रेरणा बना हुआ है। उत्तरी दिल्ली नगर निगम के निगम बोध श्मशान घाट पर 12 फरवरी 1968 को उनका अंतिम संस्कार हुआ था। उनके अंतिम संस्कार का स्थल आज भी लोगों के लिए उपयोग हो रहा है। उनके विचारों पर चलकर श्मशान घाट में उस स्थल पर उनकी समाधि तो नहीं बनाई गई, लेकिन इस स्थल का उपयोग समाज के लिए अच्छा कार्य करने वाले लोगों का निधन होने पर अंतिम संस्कार के लिए किया जा रहा है। इस स्थान को दीनदयाल उपाध्याय चिर स्मृति स्थल के रूप में जाना जाता है। वहां बोर्ड पर उनकी जीवनी भी लिखी है। यहां पूर्व मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना से लेकर विश्व हिंदू परिषद (विहिप) के नेता अशोक सिंघल और भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली समेत एक हजार से ज्यादा समाज के प्रतिष्ठित लोगों के अंतिम संस्कार हो चुके हैं।

अंतिम यात्रा पर उमड़ा था हुजूम

पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मृत्यु पर फिल्म लिखने वाले अतुल गंगवार बताते हैं कि 11 फरवरी 1968 को दीनदयाल उपाध्याय का पार्थिव शरीर मुगलसराय रेलवे स्टेशन के यार्ड में (वर्तमान में दीनदयाल उपाध्याय) संदिग्ध अवस्था में मिला था। इसके बाद उनका पोस्टमार्टम हुआ और अटल बिहारी वाजपेयी के सरकारी आवास 30, राजेंद्र प्रसाद रोड पर अंतिम दर्शन के लिए रखा गया। यहां पर अंतिम दर्शन के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था। जब उनकी अंतिम यात्रा निगम बोध श्मशान घाट के लिए निकली तो उनके पीछे बड़ी संख्या में लोग चल रहे थे। 12 फरवरी की शाम 7.15 बजे हजारों लोगों की उपस्थिति में उनका अंतिम संस्कार किया गया।

...तो इसलिए नहीं बनाई समाधि

निगम बोध संचालन समिति बड़ी पंचायत वैश्य बीसे अग्रवाल के महासचिव सुमन कुमार गुप्ता ने बताया कि वे 12 वर्ष के थे जब वह उनकी अंतिम यात्रा के गवाह बने थे। नई सड़क से होकर जब उनकी अंतिम यात्रा जा रही थी वे छत पर खड़े थे। वे वाकई हैरान थे और उनके मन में सवाल था कि यह कौन व्यक्ति हैं जिसके अंतिम यात्रा में इतनी संख्या में लोग जा रहे हैं। गुप्ता ने बताया कि दीनदयाल उपाध्याय जी का सपना वंचितों और गरीबों का विकास था, इसलिए उनके अंतिम संस्कार के स्थल को समाधि में तब्दील नहीं किया गया। दीनदयाल उपाध्याय चिर स्मृति स्थल पर आज भी समाज के लिए कार्य करने वाले लोगों का अंतिम संस्कार किया जाता है। उन्होंने बताया कि जब वर्ष 2011 में निगम से उनकी समिति को इसकी देखरेख का कार्य मिला तो उनके समाधि स्थल पर बड़ा चबूतरा बनाया गया है, वहीं आस-पास लाइटिंग के साथ लोगों के लिए बैठने की व्यवस्था की है।

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