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आइसीयू बेड से जुड़ी दिल्ली सरकार की याचिका पर हाई कोर्ट ने मांगा याचिकाकर्ता से जवाब

याचिका में कहा गया था कि आदेश जारी करने के दौरान गैर कोरोना मरीजों के मामलों को ध्यान में नहीं रखा गया। इतना ही नहीं इस फैसले को लेने से पहले निजी अस्पतालों से इस संबंध में चर्चा भी नहीं की गई।

By Mangal YadavEdited By: Updated: Mon, 28 Sep 2020 03:39 PM (IST)
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दिल्ली हाई कोर्ट ने मांगा सभी पक्षों से जवाब

नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। दिल्ली के 33 बड़े निजी अस्पतालों में 80 फीसद आइसीयू बेड कोविड-19 मरीजों के लिए आरक्षित करने के आदेश पर रोक लगाने के एकल पीठ के फैसले को दिल्ली सरकार ने हाई कोर्ट में चुनौती दी है। दिल्ली सरकार की चुनौती याचिका पर सोमवार को मुख्य न्यायमूर्ति डीएन पटेल व न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ ने मुख्य याचिकाकर्ता एसोसिएशन आफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स समेत अन्य को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। हाई कोर्ट ने एसोसिएशन आफ हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार के 13 सितंबर के आदेश पर रोक लगा दी थी।

दिल्ली सरकार की तरफ से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल संजय जैन ने कहा कि सबसे खराब महामारी के बीच में हैं। कोविड-19 एक चतुर वायरस है और इसके साथ हर दिन शतरंज के खेल की तरह है। उन्होंने कहा कि खेल अभी जारी है और हम तत्काल, साहसी और वास्तविक जरूरत के हिसाब से फैसला ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि कम गंभीर मरीज को गंभीर रूप लेने में ज्यादा वक्त नहीं लगता और इसी के लिए हमें ज्यादा आइसीयू बेड की जरूरत है। उन्होंने दलील दी कि जब दिल्ली सरकार कोविड-19 मरीज के लिए बेड की बात करती है तो उसका मतलब होता है कि मरीज को हार्ट केयर या लंग-केयर की जरूरत है और इसके लिए आइसीयू बेड की संख्या बढ़ाने की जरूरत है।

22 सितंबर को न्यायमूर्ति नवीन चावला की एकल पीठ ने सरकार के आदेश को अवैध, मनमाना व अनुचित करार देते हुए कहा कि यह लोगों के मौलिक अधिकार का हनन है। पीठ ने याचिका पर कहा था कि प्राथमिक तौर पर देखें तो यह आदेश अनुचित है और अगली सुनवाई तक इस पर रोक लगाई जाती है। वहीं, मुख्य याचिकाकर्ता हेल्थकेयर एसोसिएशन ने दलील दी थी कि 33 अस्पताल उनके सदस्य हैं और दिल्ली सरकार के आदेश को खारिज किया जाना चाहिए।

याचिका में कहा गया था कि आदेश जारी करने के दौरान गैर कोरोना मरीजों के मामलों को ध्यान में नहीं रखा गया। इतना ही नहीं इस फैसले को लेने से पहले निजी अस्पतालों से इस संबंध में चर्चा भी नहीं की गई। इस फैसले के कारण गैर कोराेना मरीजों को कोरोना संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाएगा। याचिका में कहा गया कि फैसले में इस पहलू को भी नहीं देखा गया कि गंभीर रूप से बीमार गैर कोरोना मरीजों को आइसीयू में कैसे सुविधा दी जा सकेगी, अगर 80 फीसद कोविड-19 के लिए आरक्षित रखे जाएंगे।

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