अकाली दल से गठबंधन टूटने के बाद भाजपा के लिए सिखों के बीच जनाधार बढ़ाने की चुनौती
दिल्ली सिख प्रकोष्ठ के पदाधिकारियों सहित कई नेता अकाली दल को साथ लिए बगैर चुनाव मैदान में उतरने की वकालत करते रहे हैं। उनका कहना है कि आंतरिक लड़ाई की वजह से दिल्ली में शिअद बादल की स्थिति अब पहले जैसी मजबूत नहीं है।
नई दिल्ली [संतोष कुमार सिंह]। शिरोमणि अकाली दल (शिअद बादल) से सियासी रिश्ता खत्म होने के बाद भाजपा के लिए दिल्ली में सिखों के बीच अपना जनाधार बढ़ाने की चुनौती है। सिख मतों के लिए भाजपा अब तक शिअद बादल पर आश्रित रही है। अब बदले हुए राजनीतिक समीकरण में पार्टी के सिख नेताओं और सिख प्रकोष्ठ की जिम्मेदारी बढ़ गई है।
सिख प्रकोष्ठ के प्रदेश सह-संयोजक जसप्रीत सिंह माटा का कहना है कि भाजपा सबका साथ सबका विकास के मंत्र पर चलती है। सरकार हो या संगठन या चुनाव, भाजपा में सिखों को उचित प्रतिनिधित्व मिलता है। 1984 के सिख विरोधी दंगों के दोषियों को सजा दिलाने सहित सिखों के हित में नरेंद्र मोदी सरकार ने कई कदम उठाए हैं। शिअद बादल के अलग होने से भाजपा को कोई नुकसान नहीं होगा।
इस बार विधानसभा चुनाव में नहीं हुआ था समझौता
2013 और 2015 के विधानसभा चुनावों में शिअद बादल के हिस्से में राजौरी गार्डन, हरि नगर, कालकाजी और शाहदरा विधानसभा क्षेत्र आए थे। 2013 में हरि नगर को छोड़कर तीन सीटों पर इसके उम्मीदवार जीते थे, लेकिन 2015 में सभी सीटों पर हार का सामना करना पड़ा था। वहीं, नागरिकता संशोधन कानून का विरोध करते हुए इस बार विधानसभा चुनाव में अकालियों ने भाजपा से समझौता नहीं करने का एलान किया था। हालांकि, अपने कई नेताओं के बगावती सुर को देखते हुए पार्टी नेतृत्व को आखिर में भाजपा उम्मीदवारों के समर्थन की घोषणा करनी पड़ी थी।
कई मुद्दों पर दोनों पार्टियों में रहा है मतभेद
कई मुद्दों पर दिल्ली में भी भाजपा व अकाली नेताओं के बीच खुलकर मतभेद सामने आते रहे हैं। करीब तीन वर्ष पहले दिल्ली में हुए सिख संगत के कार्यक्रम का अकालियों ने विरोध किया था। इसके साथ ही महाराष्ट्र की पूर्व भाजपा सरकार पर गुरुद्वारा प्रबंधन में हस्तक्षेप करने का आरोप लगाते हुए अकाली नेताओं ने भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (डीएसजीपीसी) अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा और भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता आरपी सिंह के बीच भी कई बार वाकयुद्ध हो चुका है।
सिख प्रकोष्ठ करता रहा है समझौते का विरोध
दिल्ली सिख प्रकोष्ठ के पदाधिकारियों सहित कई नेता अकाली दल को साथ लिए बगैर चुनाव मैदान में उतरने की वकालत करते रहे हैं। उनका कहना है कि आंतरिक लड़ाई की वजह से दिल्ली में शिअद बादल की स्थिति अब पहले जैसी मजबूत नहीं है।
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