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जानें- कंटेनमेंट जोन को लेकर दिल्ली और मुंबई में अंतर, जल्द देखने को मिलेगा बड़ा बदलाव

मौजूदा समय में दिल्ली में माइक्रो कंटेनमेंट जोन बनाने की नीति पर काम किया जा रहा है। इसके तहत छोटे-छोटे इलाकों को कंटेनमेंट जोन बनाया जा रहा है। इसी वजह से दिल्ली में सक्रिय कंटेनमेंट जोन की संख्या भी 2500 तक पहुंच चुकी है।

By JP YadavEdited By: Updated: Fri, 02 Oct 2020 02:08 PM (IST)
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दिल्ली में बने कंटेनमेंट जोन की फाइल फोटो।

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। दिल्ली में कंटेनमेंट जोन बनाने और उनका दायरा निर्धारित करने को लेकर दिल्ली सरकार जल्द ही नई संशोधित नीति लाने जा रही है। माना जा रहा है कि दिल्ली में इस बार मुंबई की तर्ज पर कंटेनमेंट जोन बनाए जा सकते हैं। मालूम हो कि मौजूदा समय में दिल्ली में माइक्रो कंटेनमेंट जोन बनाने की नीति पर काम किया जा रहा है। इसके तहत छोटे-छोटे इलाकों को कंटेनमेंट जोन बनाया जा रहा है। इसी वजह से दिल्ली में सक्रिय कंटेनमेंट जोन की संख्या भी 2500 तक पहुंच चुकी है। वहीं, इसके विपरीत मुंबई में कंटेनमेंट जोन का दायरा दिल्ली के मुकाबले बड़ा है, जिसके चलते वहां कई घनी आबादी वाले इलाकों में कोरोना के बढ़ते मामलों पर लगाम लगाने में प्रशासन को कामयाबी मिली है।

क्या है दोनों शहरों की नीति

दिल्ली में किसी स्थान पर तीन या तीन से अधिक कोरोना के मामले मिलने पर उसके कंटेनमेंट जोन घोषित कर दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर अगर एक इमारत में चार फ्लैट हैं और एक फ्लैट में कोरोना के अधिक मामले पाए गए हैं तो दिल्ली में सिर्फ संबंधित फ्लैट को ही कंटेनमेंट जोन बनाया जाता है, जबकि पूरी इमारत में लोगों की आवाजाही बदस्तूर जारी रहती है। इसके उलट मुंबई में इस प्रकार के मामलों में पूरी इमारत को कंटेनमेंट जोन घोषित कर सील कर दिया जाता है। इससे इमारत में आवाजाही पर रोक लग जाती है और कोरोना के नए मामले आने से भी काफी हद तक रुक जाते हैं।

जल्द जारी होगी नई नीति

दिल्ली सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सप्ताह के अंत में संशोधित नीति बनाई जाएगी। नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल की अध्यक्षता वाली उच्च-स्तरीय समिति द्वारा फिलहाल जोन के लिए दिशानिर्देश तैयार किए जा रहे हैं। दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) की एक बैठक में एलजी ने कंटेनमेंट जोन के लिए नीति को संशोधित करने का निर्देश दिया था। हालांकि 18 सितंबर की बैठक में कोई स्पष्ट समय सीमा तय नहीं की गई थी, स्वास्थ्य विभाग को एक सप्ताह में नई रणनीति प्रस्तुत करनी थी। हालांकि, अब उसी की समीक्षा की जा रही है और उच्च स्तरीय समिति द्वारा संशोधित की जा रही है, जिसके कारण देरी हुई।

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