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शिक्षक और छात्रों का 'प्रयास' पक्षियों का कर रहा संरक्षण

प्रोजेक्ट प्रयास के तहत घोंडा राजकीय उच्चतर बाल विद्यालय के शिक्षक परविंदर कुमार पक्षियों को सरंक्षित करने का काम कर रहे हैं। इस प्रोजेक्ट के लिए परविंदर 2019 में डेल व 2017 में शिक्षा निदेशालय की तरफ से राज्य शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित हो चुके हैं।

By Neel RajputEdited By: Updated: Sun, 01 Nov 2020 08:03 AM (IST)
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राज्य स्तरीय साइंस एग्जीबिशन 2017-18 में बेस्ट प्रोजेक्ट का अवॉर्ड मिला

नई दिल्ली [रितु राणा]। शिक्षक अपने विद्यार्थी के साथ साथ पूरे समाज को शिक्षित बनाने में अहम भूमिका निभाते हैं। ऐसे ही एक शिक्षक परविंदर कुमार हैं, जो बच्चों को किताबों से इतर पर्यावरण के संरक्षण के लिए काफी ज्ञानवर्धक सीख दे रहे हैं। ताकि बच्चों के माध्यम से पूरा समाज जागरूक हो सके। परविंदर कुमार पर्यावरण संरक्षण को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए बच्चों को जागरूक कर रहे हैं। उनका यूट्यूब चैनल (परविंदर कुमार) भी है, जिसमें वह पर्यावरण से संबंधित कई ज्ञानवर्धक व महत्वपूर्ण बातें लोगों के साथ साझा करते हैं ताकि लोग भी जागरूक हो सकें।

भारत में पहली बार डेल द्वारा डेल पॉलिसी हैक फॉर टीचर्स कार्यक्रम का आयोजन पिछले वर्ष 18 जनवरी 2019 को किया गया। इस कार्यक्रम में 86 विद्यालयों भाग लिया जिनमें से 20 विद्यालयों ने चुना गया। इनमें 17 निजी विद्यालय व तीन सरकारी विद्यालय शामिल थे। लेकिन इन सभी विद्यालयों में से घोंडा राजकीय उच्चतर बाल विद्यालय के शिक्षक परविंदर कुमार के प्रोजेक्ट 'प्रयास' को सबसे बेहतर चुना गया। पक्षियों के सरंक्षण के लिए उन्होंने यह प्रोजेक्ट शुरू किया जिसका नाम उन्होंने 'प्रयास' रखा। उनके इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य लुप्त होते जा रहे पक्षियों को संरक्षित करना है। स्टेट काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एससीईआरटी) की कक्षा आठवीं की सामाजिक विज्ञान की किताब में भी उनके इस प्रयास विषय जोड़ा गया है। इसी प्रोजेक्ट के लिए 2017 में दिल्ली शिक्षा निदेशालय की ओर से राज्य पुरस्कार भी प्राप्त हो चुका है।

2017 में ओखला बर्ड सेनच्यूरी में एक सेमिनार में भाग लेने के दौरान परविंदर ने देखा कि किस तरह यहां पर उल्लुओं को सरंक्षित किया हुआ है। बस वहीं से उन्हें अन्य पक्षियों को भी संरक्षित करने की प्रेरणा मिली। उन्होंने सोच लिया कि दिल्ली से लुप्त हो रहे पक्षियों को कैसे भी करके उन्हें संरक्षित करना है। उनके प्रयास से विद्यालय के परिसर में जगह जगह लगे पक्षी घर में ओरिएंटल मैगपाई रोबिन, टेलर बर्ड, रेड वेटिंग बुलबुल, वाइट थ्रोटिड किंग फिशर, मैना, डव इनके अलावा 2017 में इस पहली बार इस क्षेत्र में रीयूफस ट्रीपि पक्षी भी देखी गई। वहीं, 2018 में बाज की पहली प्रजाति भी इस विद्यालय में देखी गई। लेकिन गौरय्या पक्षी अभी तक यहां नहीं आई है।

बच्चों ने कबाड़ से बनाया पक्षियों का घोंसला

परविंदर ने बताया कि जो काम आज रसायनिक उर्वरक कर रहे हैं वह पक्षी करते थे। लेकिन पक्षियों के लुप्त होने से हमारा पारितंत्र बिगड़ रहा है। विकास के नाम पर पेड़ों की कटाई से हमने पक्षियों से उनका जीवन संकट में डाल दिया है। विद्यालय के कुछ बच्चों की टीम बनाकर उन्होंने 11-12 बर्ड हाउस, पक्षियों के दाने, पानी के लिए बर्ड फोल्डर व नहाने के लिए बर्ड बाथ भी अपने हाथों से बनाकर तैयार किए हैं। विद्यालय में ही बच्चों से वेस्ट चीजों से घोंसला बनवाया गया है, जिसमें कोई पैसा खर्च नहीं हुआ और कबाड़ इस्तेमाल में भी आ गया। उन्होंने बताया कि मार्च से पहले पक्षी विद्यालय में बने बर्ड हाउस में घोंसला बना लेते हैं क्योंकि मई जून में उनके अंडे देने का समय हो जाता है। परविंदर ने बताया कि सभी बच्चे पढ़ाई के साथ साथ पक्षियों की भी पूरी देखरेख करते हैं।

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