87 वर्ष की आयु में वरिष्ठ साहित्यकार विष्णुचंद्र शर्मा का निधन
पूर्वी दिल्ली के सादतपुर पुर में रहने वाले वरिष्ठ साहित्यकार विष्णुचंद्र शर्मा का कोरोना संक्रमण के चलते आज सेंट स्टीफन अस्तपाल में देहांत हो गया है। वो काफी समय से बीमार भी चल रहे थे। उनके परिवार में कोई नहीं है।
नई दिल्ली [रितू राणा]। पूर्वी दिल्ली के सादतपुर पुर में रहने वाले वरिष्ठ साहित्यकार विष्णुचंद्र शर्मा का कोरोना संक्रमण के चलते आज सेंट स्टीफन अस्तपाल में देहांत हो गया है। वह काफी लंबे समय से बीमार चल रहे थे। वर्तमान में लेखक महेश दर्पण ही उनकी देख रेख कर रहे थे। विष्णुचंद्र शर्मा के परिवार में कोई नहीं है।
काशी में एक अप्रैल 1933 को जन्मे वरिष्ठ साहित्यकार विष्णुचंद्र शर्मा राजनीतिज्ञ व साहित्यकार के साथ ही घुमक्कड़ प्रवृत्ति के भी रहे। विष्णुचंद्र को कवि, कहानीकार व आलोचक के रूप में जाना जाता है। 1957 में चर्चित कवि पत्रिका भी निकाली। हजारी प्रसाद द्विवेदी, रामदरश मिश्र, नामवर सिंह व विश्वनाथ त्रिपाठी के साथ लेखन की शुरुआत की। काशी विद्यापीठ से एमएएस (पूर्वार्द्ध) और काशी हिंदू विश्वविद्यालय से एमए (हिंदी) की पढ़ाई पूरी करने के बाद वो 1960 में दिल्ली आ गए थे।
राजनीतिक परिवार से थे विष्णुचंद्र शर्मा
काशी के प्रसिद्ध वैद्द परिवार से थे विष्णु जी। नाना पंडित राम नारायण मिश्र नागरी प्रचारिणी सभा के संस्थापक थे। पिता कृष्णाचंद्र शर्मा सक्रिय स्वतंत्रता सेनानी, प्रसिद्ध चिकित्सक, तत्कालीन प्रांतीय कांग्रेस कमेटी में मंत्री और कांग्रेस की केंद्रीय काउंसिल के सदस्य थे। इसके अलावा वह काशी विद्यापीठ के संस्थापक सदस्यों में से भी रहे। वह लाल बहादुर शास्त्री व संपूर्णानंद आदि के घनिष्ठ मित्र भी थे। बहन सत्यवती शर्मा भी स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय थी। लेखनी के क्षेत्र में भी उनकी अपनी अलग पहचान थी। उनकी तुलना बड़े-बड़े लेखकों के साथ की जाती थी।
जेएनयू के नए लेखक केदारनाथ सिंह व नामवर सिंह उनकी हर रचना खरीदकर पढ़ते थे। 1975 में जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया था तब उन्होंने तत्काल नाम से एक कविता संग्रह लिखा था। उस समय नामवर सिंह जेएनयू में हिंदी विभाग और भाषा विभाग के प्रमुख थे। वह उन्हें अपनी कविताएं पढ़ाने गए थे उनकी कविताएं सुनने से पहले उन्होंने दो कप कॉफी मंगवाई और 32 पेज पढ़ने के बाद कहा कि विष्णु इस समय जेल में बड़ा दबाव चल रहा है। न जाने तुम्हारी यह कविताएं छपने से क्या बवाल हो जाए। जब वह किताब छपी तो मेरे पीछे सीआइडी वाले पड़ गए थे। मेरी इस किताब की 14 प्रतियां सीआइडी ने भी खरीदी थी। दिल्ली में कांति मोहन, रामदीप गुप्ता, भगवान सिंह व रमा सिंह भी मेरे करीबी मित्र थे।
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