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Nishtha: आइएएस की ट्रेनिंग छोड़कर निष्ठा कर रही महिला सशक्तीकरण के लिए काम

निष्ठा बताती हैं कि जब वे छोटी थीं तो एक बार उनके पिता उन्हें न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र के भवन के सामने ले गए और कहा कि क्या एक दिन यहां काम करोगी तो उन्होंने अपने पिता से कहा कि वह जरूर एक दिन यहां पर काम करेंगी।

By JP YadavEdited By: Updated: Wed, 04 Nov 2020 10:44 AM (IST)
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महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता जैसे विषयों पर गंभीरता से काम कर रहीं निष्ठा।
नई दिल्ली [रीतिका मिश्रा]। निष्ठा सत्यम आज उन तमाम युवतियों और महिलाओं के लिए प्रेरणा बनकर उभरी हैं जो अपने जीवन को खास मुकाम पर ले जाना चाहती हैं। 36 वर्षीय निष्ठा 2018 से यूएन वुमेन के लिए भारत में उपप्रतिनिधि के तौर पर कार्य कर रही हैं। उन्होंने महिला सशक्तीकरण और लैंगिक समानता जैसे विषयों पर गंभीरता से काम करने के लिए भारतीय प्रशासनिक सेवा के प्रशिक्षण को बीच में छोड़ दिया था।

पत्रकार बनना चाहती थीं

निष्ठा ने अपनी स्कूली शिक्षा करोलबाग स्थित फेथ अकादमी और माउंट कॉर्मल से पूरी की है। 2005 में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातक किया। अंतरराष्ट्रीय व्यापार में स्नातकोत्तर लंदन स्थित प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय से पूरा किया। इसके बाद एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में बतौर अर्थशास्त्री सेवाएं दीं। इसके बाद उन्होंने पत्रकार बनना चाहा, लेकिन पिता के कहने पर उन्होंने सिविल सेवा परीक्षा दी और कामयाब हुईं।

आखिरकार पूरा किया पिता का सपना

निष्ठा बताती हैं कि जब वे छोटी थीं तो एक बार उनके पिता उन्हें न्यूयार्क स्थित संयुक्त राष्ट्र के भवन के सामने ले गए और कहा कि क्या एक दिन यहां काम करोगी, तो उन्होंने अपने पिता से कहा कि वह जरूर एक दिन यहां पर काम करेंगी। पिता के इस सपने को पूरा करने में भले ही उन्हें 22 साल लग गए, लेकिन उन्होंने पिता के इस सपने  को पूरा किया।

महिलाओं को मुख्यधारा से जोड़ने की हैं पैरोकार

निष्ठा साल 2014 से संयुक्त राष्ट्र महिला संगठन में भारत, भूटान, मालदीव और श्रीलंका के लिए रणनीतिक प्रबंधन का कार्य करने लगीं। यहां उन्होंने अपनी एक अधिकारी से यूएन वीमेन की उप प्रतिनिधि बनने की इच्छा जाहिर की। वे महिलाओं को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए सबसे बड़ी पैरोकार हैं। वे बताती हैं कि उन्हें इस बात की बहुत खुशी है कि वे बहुत कम उम्र में ही संयुक्त राष्ट्र में एक बड़ी अधिकारी के तौर पर कार्य करने लगीं। उन्हें लगता है कि अगर वे इस मुकाम पर पहुंच सकती हैं तो बाकि महिलाएं भी आगे बढ़कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना परचम लहरा सकती हैं। उन्होंने काबुल से लेकर राजस्थान, असम, आंध्र प्रदेश में भी काम किया है। वे चाहती हैं कि महिलाएं भी घरों से निकल कर बाहर आएं और कई शीर्ष पदों पर कार्य करें। महिलाओं की जिंदगी में शिक्षा की जो जगह है वह किसी और चीज की नहीं हो सकती, क्योंकि शिक्षा के बिना आगे बढ़ना मुश्किल है।

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