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जानें आदतों के शास्त्र और सजगता के शस्त्र से आखिर कैसे मिल सकता है बुरी आदतों से छुटकारा..

हमारी हर छोटी आदत दिन की कहानी तय करती है और जिंदगी को उसी के अनुरूप बदल देती है। जैसे मास्क पहनने व साफ-सफाई की आदत नहीं है तो संक्रमण का खतरा पैदा हो सकता है मगर इसे आदत में ढाल लिया तो बचाव की संभावना बन जाती है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Thu, 05 Nov 2020 11:19 AM (IST)
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जानें कि आदतों के शास्त्र और सजगता के शस्त्र
चैतन्य नागर। हम अपने बारे में कभी गौर नहीं करते कि कौन-सी आदतों से घिरे हैं। हम जो भी सोचते और करते हैं, जो भी फैसले लेते हैं, कैसे कपड़े पहनते हैं, क्या, कब और कितना खाते हैं- यह सब कुछ यांत्रिक तरीके से आदतों द्वारा ही निर्धारित होता है। इन दिनों बुरी कही जाने वाली आदतों में सुधार हुआ है। मसलन साफ-सफाई की आदतें, भीड़ में जाने से पहले स्वच्छता आदि को लेकर सजगता आदि। पर समान रूप से हर कोई इसे समझें, यह जरूरी नहीं। आज भी अधिकतर लोग ऐसे हैं, जो मास्क को बंधन मान रहे हैं और भीड़ में जाने से पहले समुचित सावधानी नहीं बरतते। यूं कहें कि उन्हें इसकी आदत नहीं।

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में साइकोलॉजी के प्रोफेसर रसेल पोलड्रैक कहते हैं, ‘हम दिमाग को इस तरह प्रशिक्षित करना चाहते हैं, ताकि बिना ऊर्जा लगाए और बिना प्रयास के ही किसी काम को कर सकें, पर अक्सर दिमाग हमें उस ओर धकेल देता है, जो बुरी सेहत की बड़ी वजहें बनती हैं।’ कहते हैं कि आदतें एक आरामदायक बिस्तर की तरह होती हैं। उनमें घुस जाना आसान है, पर उनसे बाहर निकलना बड़ा ही मुश्किल! पर यह अंतिम सच नहीं।

वास्तव में हमारे जीवन की विराट ऊर्जा के सामने आदत एक बहुत कमजोर-सी चीज है। थोड़ा संयम, धैर्य और आदतों से बाहर निकलने की अदम्य इच्छा और सजगता की ताकत के सामने कोई भी आदत लंबे समय तक अपने पैरों पर चल नहीं सकती। वह जल्दी ही लड़खड़ा कर गिर जाती है और फिर उठ नहीं पाती।

छूटे से भी न छूटे, क्यों है ऐसा?: जब दो लोग एक-दूसरे को बहुत पसंद करते हैं तो वास्तव में वे एक-दूसरे की आदतों को ही पसंद कर रहे होते हैं। आदतें बदल जाएं तो संबंध भी बदल सकते हैं! पर सवाल तो यह है कि हमारी आदतें जल्दी छूटतीं क्यों नहीं? एक वजह तो यह है कि हम उन्हें छोड़ने के बारे में बहुत ही चयनात्मक यानी चूजी होते हैं। मास्क न लगाने के पीछे लोग तमाम तर्क देते हैं, जबकि वे खुद उन चीजों को पसंद नहीं करते। दरअसल, वे सुख देने वाली आदतों को बचाए रखना चाहते हैं और इसके विपरीत चीजों से पिंड छुड़ाना चाहते हैं। हम अक्सर उन्हें छोटी उम्र में ही जाने-अनजाने में पाल लेते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, आदतें धीरे-धीरे हमारे मन की गहरी परतों में जड़ें जमा लेती हैं और जब तक हमें उनके खतरे का आभास होता है, तब तक वे बड़ी मजबूत हो चुकी होती हैं और उनसे निजात पाना हमारे लिए कठिन हो जाता है। नशे की आदत अक्सर इसी श्रेणी में आती है।

काम में डूबने की आदत: कई अजीबो-गरीब आदतें पाल लेते हैं लोग। उदाहरण के लिए, सोते-बैठते हमेशा तकिये को अपने साथ रखना, बाहर जाते वक्त हाथ में छाता या बैग वगैरह टांग लेना, नाखून चबाना, एक ही बात को दोहराना, दिन में कई बार हाथ धोते रहना, पर ये आदतें अधिक नुकसानदेह नहीं। कुछ आदतें व्यसन बनकर हमारा नुकसान कर सकती हैं। यहां काम करने की आदत का भी जिक्र कर सकते हैं, जहां अगर हम सजग न रहें तो प्रतिकूल परिणाम सामने आ सकता है। जैसे आमतौर पर जहां हफ्ते में छह दिन लगातार काम करना पड़ता है, वहां हमें बेसब्री के साथ अपने साप्ताहिक अवकाश या लंबी छुट्टियों की प्रतीक्षा रहती है। हर अवकाश के बाद फिर वही पुरानी दिनचर्या शुरू हो जाती है।

पोस्ट रिटायरमेंट की स्थिति को लेकर कई शोध हुए हैं। इनके अनुसार नौकरी करने की आदत अक्सर इतनी गहरी होती है कि रिटायरमेंट के बाद जीवन में आए खालीपन का सामना करना मुश्किल हो जाता है। अचानक ‘अनुपयोगी’ हो जाने का तनाव कई लोगों पर हावी हो जाता है। तीस-चालीस वर्षो तक एक ही तरह की जिंदगी जीने की आदत उन्हें एक कार्य-मुक्त जीवन के लिए अक्षम बना देती है। हालांकि अब यह सोच तेजी से बदल रही है और लोग उत्साह के साथ खुद को दूसरी पारी के लिए तैयार कर रहे हैं।

जिंदगी में ऐसे पल भी आते हैं, जब सारे दरवाजे बंद लगने लगते हैं। ऐसे पलों में आपको खुद की मदद करनी होगी। ऐसे समय में किन बातों पर विचार किया जाए, जो आपके इरादों को और बुलंद कर आपको नई राह दिखा सकते हैं? यदि आप यही सोच रहे हैं, तो यहां ऐसे ही कुछ बिंदु इस दिशा में आपकी मदद कर सकते हैं :

  • समय एक-सा नहीं रहता, मुसीबतें कितनी ही बड़ी क्यों न हों, वे आई हैं तो जाएंगी भी। आपको भी नकारात्मक विचारों, आशंकाओं को मन में जमाए रखने के बजाय उन्हें आराम से चले जाने देना चाहिए।
  • हर दिन के साथ जिंदगी अनगिनत मौके देती है। बस, उन्हें पहचानने की और उनका उपयोग करने की जरूरत है।
  • अच्छे और सकारात्मक लोगों की कमी नहीं है, जो आपकी मदद करने के साथ आपको प्रेरित कर सकते हैं।
  • इंटरनेट पर ऐसी वेबसाइट्स और ब्लॉग्स भी हैं, जो आपको बेहतर बनने में मदद कर सकते हैं।
  • कभी-कभी अपनी खुद की चीजें पसंद नहीं होतीं, उन्हें लेकर आलोचनात्मक होने के बजाय याद रखें कि उन्हें आप कभी भी बदल सकते हैं।
  • कुछ भी उतना बुरा नहीं है, जितना कि आपको लगता है।
  • असफल होना आने वाली सफलता का प्रमाण है। इसका मतलब है कि आप जीवन में बदलाव के लिए प्रयासरत हैं।
  •  कुछ चीजों को छोड़ देने या किसी को माफ कर देने से मन का बोझ हल्का हो जाता है। शांत मन से ही आप वर्तमान में जी सकते हैं और अपने कार्यो में ध्यान लगाकर प्रगति कर सकते हैं।
  • समय कठिन हो तो आपको हर वक्त अच्छा महसूस होना चाहिए। संकल्प पक्का हो। बुरे खयाल न आएं और न ही वे हमें प्रभावित करें। हम कभी नकारात्मक न हों। हर समय आह्लादित महसूस करें।’ यह सुनकर जाहिर है आप यह सोच रहे होंगे कि वास्तव में ऐसा संभव नहीं। पर आमतौर पर यही सलाह दी जाती है और आप हर वक्त सकारात्मक और खुश रहने के दबाव में आ जाते हैं। हालांकि सलाह देने वाले यह नहीं बताते कि यह कैसे संभव है।
भावों का सहअस्तित्व: दरअसल, अच्छा महसूस करना और बुरे एहसास का होना, ये दोनों हमारे मन के ही दो पक्ष हैं। एहसास के स्तर पर इन भावों का सहअस्तित्व होता है यानी दोनों मन में साथ होते हैं। यदि यह कहा जाता है कि हर व्यक्ति में दैवी और आसुरी प्रवृत्तियां हैं तो यह भी इसी बात की पुष्टि करता है। मनोवैज्ञानिक रूप से किसका सापेक्षिक प्रभुत्व अधिक है, उसका हमारे व्यवहार पर असर दिखता है। जब हम सकारात्मक अनुभव करेंगे तो हम अच्छा सोच पाते हैं। हमारे कार्य में वह नजर आता है। पर हमेशा सकारात्मक और खुश रहना व्यावहारिक नहीं। हमारी भावना जैसी होगी, वैसा ही हम देख पाएंगे। आपके मन में दोनों भाव हैं। सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू हैं, पर आप ध्यान किस पर देते हैं, यह अधिक मायने रखता है।

सजगता से हरा सकते हैं बुरी आदतों को : बदलने या खत्म होने से पहले हर आदत की अभिव्यक्तिका धीमा होना जरूरी है। वजह यह है कि हर आदत के पीछे अतीत की बड़ी ताकत होती है। आदतन किए जाने वाले काम बहुत जल्दी में किए जाते हैं। अक्सर बेहोशी में भी कई वर्षो को दोहराए जाने की वजह से उनमें बीते समय की अद्भुत ताकत आ जाती है। अगर इन मशीनी आदतों को सजगता के साथ दोहराएं, तो उनकी ताकत कम होती जाती है। एक दिन आदत मुरझा कर गिर जाती है और आप मुक्त हो जाते हैं।

  • सेहत को बेहतर करने में रुचि बढ़ाएंगे, तो यह आखिरी समय तक आपको व्यस्त भी रखती है और चुस्त-दुरुस्त भी।
  • किसी सार्थक ऑनलाइन ग्रुप का हिस्सा बनकर उसमें लगातार योगदान करते हुए, कुछ सीखते, सिखाते हुए भी बढ़िया सार्थक समय बीत सकता है।
  • सीखने की लालसा बनी रहे, तो अच्छा है। यह व्यक्ति को मशीनी बनने से रोकती है और बुरी आदतों के चंगुल में फंसने से बचाती है। जैसे लगातार फोन पर स्क्रॉल करते रहने में समय गंवा देने की आदत।
  • रिटायरमेंट के बाद होने वाले तनावों के लिए सरल उपाय यह है कि नौकरी में रहते हुए किसी अन्य विधा या क्षेत्र में गहरी रुचि लेना शुरू कर किया जाए।
  • कुदरत के साथ समय बिताना अच्छा है। थोड़ी देर के लिए धरती पर नंगे पांव चलने और खुले आसमान की ओर निहारने की आदत डाल लें। कई तकलीफें दूर करते हैं ये उपाय।
जिंदगी से बड़ी नहीं आदतें : अमेरिकी लेखक फॉस्टर वॉलेस ने आदतों का अध्ययन किया है। अपनी कहानी में वॉलेस बताते हैं कि एक नदी में दो छोटी मछलियां घूमती रहती हैं। तभी एक बूढ़ी मछली उनसे पूछती है, ‘बच्चों, पानी कैसा है? थोड़ी देर तक दोनों छोटी मछलियां तैरती रहती हैं, फिर उनमें से एक दूसरी से पूछती है, ‘यह पानी क्या होता है?’ वॉलेस कहते हैं कि हमारा जीवन भी ऐसा ही है। जीवन में आदतें होती हैं, जीवन आदतों में नहीं होता। वॉलेस का कहना है कि कुछ आदतें सरल और कुछ जटिल होती हैं, पर वे यह भी मानते हैं कि आदतों की ऊर्जा बड़ी लचीली होती है। वे उतनी अपरिवर्तनीय नहीं होतीं, जितनी दिखती हैं। कोई नशे के दुष्परिणामों पर सोचे-समङो तो शराब छोड़ भी सकता है, भले ही उसे यह कठिन लगे। पढ़ाई छोड़ देने वाला बच्चा नई आदतें डाल कर एक सफल संगीतकार भी बन सकता है। वैसे, वॉलेस का मानना है कि आदतों की प्रक्रिया, तौर-तरीके और ढांचे को समझकर उन्हें छोड़ा जा सकता है।

(लेखक कृष्णमूर्ति फाउंडेशन इंडिया के साथ अध्यापन कार्य से जुड़े रहे हैं)

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