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जानें देश के बड़े अस्पतालों और विशेषज्ञों के हिसाब से कोविड या पोस्ट कोविड मरीजों की क्या है जमीनी स्थिति

कोविड या पोस्ट कोविड मरीजों के आंतरिक अंगों की क्या स्थिति है? सूजन या रक्तस्राव का खतरा तो नहीं है? क्या कोविड का उपचार पा रहे मरीजों की समय रहते जरूरी जांचें कराई जा रही हैं? ऐसे कई सवाल जुड़े हैं कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों की सेहत के साथ।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Thu, 05 Nov 2020 11:53 AM (IST)
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कोविड या पोस्ट कोविड मरीजों के ब्लॉकेज अथवा स्ट्रोक का खतरा तो नहीं है?
नई दिल्‍ली, जेएनएन। इंदौर निवासी 32 वर्षीय रोहित जैन (परिवर्तित नाम) ने अस्वस्थता का अनुभव होने पर जांच कराई तो कोरोना संक्रमित पाए गए। आठ दिन अस्पताल में भर्ती रहे। अगली रिपोर्ट नेगेटिव आई। डिस्चार्ज होकर घर लौटे ही थे कि हालत फिर बिगड़ने लगी। दोबारा अस्पताल ले जाकर जांच कराई तो छाती का सीटी स्कैन कराने पर पता चला कि फेफड़े में बहुत संक्रमण है। दो दिन में उनकी मौत हो गई। ऐसे अनेक मामले सामने आ रहे हैं, जहां स्थिति का समय पर व सटीक अनुमान नहीं लगा पाने के कारण देर हो गई। समय रहते निदान और उपचार इससे बचने का एकमात्र उपाय है।

भारी न पड़ जाए लापरवाही: कोरोना के निदान और उपचार में प्रारंभिक अवस्था से ही तमाम आशंकाओं और संभावित खतरों पर बारीकी से नजर रखी जाए तो प्रत्येक मौत को टाला जा सकता है। संक्रमणमुक्त हो जाने के बाद भी इस बात को सुनिश्चित कर लेना आवश्यक है कि शरीर के अंदर सब ठीक है कि नहीं? क्योंकि जरा सी भी चूक भारी पड़ सकती है। ऐसे तमाम टेस्ट उपलब्ध हैं, जिन्हें आसानी से कराया जा सकता है और जो महंगे भी नहीं हैं। किंतु फिलहाल जांच की जगह लक्षणों के आधार पर उपचार किया जा रहा है और केवल गंभीर मरीजों के मामलों में ही इन जांचों का सहारा लिया जा रहा है।

मरीज की स्थिति पर सब निर्भर: हालांकि अस्पतालों, चिकित्सकों व सरकार के अनुसार सभी संक्रमितों को इन परीक्षणों की आवश्यकता नहीं पड़ती है। सीआरपी, एलडीएच, फेरेटिन, पीसीटी, एलडीएच, डी-डाइमर, आइएल-6, ब्लड गैसेस, एएसटी, एएलटी, टी-बिल, क्रेटेनाइन डब्ल्यूबीसी काउंट, न्यूट्रोफिल काउंट, लिंफोसाइट काउंट, प्लेटलेट काउंट और चेस्ट एक्स-रे इत्यादि कुछ आवश्यक जांचें इंफ्लमेटरी मार्कर हैं, जिनसे आंतरिक अंगों की स्थिति का पता चलता है। यह जांचें कब होनी चाहिए, इसके लिए कोई आदर्श समय नहीं है, किंतु यह मरीज की स्थिति पर निर्भर होता है। वहीं, कुछ चिकित्सकों ने स्वीकार किया कि यदि यह जांचें प्रारंभिक अवस्था में ही करा ली जाएं, तो मरीज को गंभीर स्थिति में जाने से बचाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त सामान्य संक्रमण के बाद ठीक हुए मरीजों की भी एहतियात के तौर पर ये जांचें कराई जानी चाहिए, ताकि सुनिश्चित हुआ जा सके कि वे किसी तरह के खतरे में तो नहीं हैं।

अनिवार्य बनाए जाएं यह टेस्ट

कोरोना के निदान और उपचार की आदर्श प्रक्रिया में आवश्यक जांचों की उपयोगिता पर मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल के बायोकेमिस्ट्री एंड इम्युनोलॉजी डिपार्टमेंट की विशेषज्ञ डॉ. बरनाली दास अपने अध्ययन से इस निष्कर्ष पर पहुंची कि कुछ जांचें संक्रमण की शुरुआती अवस्था से ही करा लेनी चाहिए। इन्हें अस्पताल के एडमिशन प्रोटोकॉल (भर्ती की प्रक्रिया) में शामिल किया जाना चाहिए, ताकि शरीर के अंदरूनी अंगों और प्लेटलेट्स की स्थिति पर नजर रखी जा सके। उनके अनुसार इन जांचों को प्रारंभिक काल में ही करा लेना चाहिए ताकि इनके अनुरूप उपचार को गति दी जा सके:

1. सीआरपी (सी रिएक्टिव प्रोटीन)

2. एलडीएच (लेक्टेट डिहाइड्रोजेनेस)

3.फेरेटिन, पीसीटी (प्रोकेल्सीटोनिन)

4. एलडीएच

5. डी-डाइमर

6. आइएल-6

7. ब्लड गैसेस

8. एएसटी

9. एएलटी

10. टी-बिल

11. क्रेटेनाइन डब्ल्यूबीसी काउंट

12. न्यूट्रोफिल काउंट

13. लिंफोसाइट काउंट

14. प्लेटलेट काउंट

15. चेस्ट एक्स-रे

क्यों जरूरी है जांच

डी-डाइमर टेस्ट

डी-डाइमर एक तरह का प्रोटीन है, जो कोरोना मरीजों के फेफड़े में संक्रमण या सूजन के चलते बढ़ जाता है। इस जांच से यह पता चलता है कि खून गाढ़ा तो नहीं हो रहा। खून गाढ़ा होकर थक्का बनने से मरीजों की मौत भी हो सकती है, इसीलिए खून पतला करने की दवाएं दी जाती हैं। इस जांच से यह भी पता चलता है कि रक्त के थक्का जमने की संभावना कितनी है। थक्का होने से फेफड़े और धमनी में ब्लॉकेज हो सकता है और फेफड़े की कार्यक्षमता प्रभावित हो सकती है।

आइएल-6

इसे इंटरल्यूकिन-6 कहते हैं। फेफड़े में सूजन लाने वाले साइटोकाइन स्टार्म की वजह आइएल-6 है। इससे फेफड़े के टिश्यू क्षतिग्रस्त हो जाते हैं।

पीटी, एपीटीटी

पीटी यानी प्रोथ्रॉम्बिन। रक्त का थक्का होने पर या आंतरिक हिस्सों में रक्तस्राव के खतरे का पता लगाने के लिए यह जांच कराई जाती है। एक्टिवेटेड पार्सियल थ्रांबोप्लास्टिन टाइम, एपीटीटी नामक जांच भी इससे जुड़ी होती है।

सीआरपी, एलडीएच व फेरेटिन सी रिएक्टिव प्रोटीन

सीआरपी, एलडीएच व फेरेटिन सी रिएक्टिव प्रोटीन आंतरिक अंगों में सूजन पता करने की जांचें हैं। कोशिकाएं टूटने की वजह से संक्रमण के मरीजों में सीआरपी का स्तर बढ़ा हुआ मिलता है।

दिल्ली के एम्स के मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. नीरज निश्चल ने बताया कि जांचें कब कराई जाएं, इसके लिए कोई आदर्श समय नहीं है। यह मरीज की स्थिति पर निर्भर करता है। हां, ऑक्सीजन लेवल 94 से नीचे आने पर विभिन्न जांचें कराई जाती हैं।

भोपाल की हमीदिया अस्पताल की छाती व श्वास रोग विभाग के विशेषज्ञ डॉ. पराग शर्मा ने बताया कि कम से कम आइसीयू के सभी कोविड मरीजों की तो यह जांचें कराई ही जानी चाहिए। मरीज की रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद भी फेफड़ों का सीटी स्कैन कराया जाना चाहिए। यदि उनमें किसी भी प्रकार के लक्षण नजर आते हैं, तब भी यह जांचें करानी चाहिए।

दिल्ली के लोकनायक अस्पताल चिकित्सा निदेशक डॉ. सुरेश कुमार ने बताया कि आंतरिक रक्तस्राव का असर लिवर व शरीर के अन्य हिस्सों पर पड़ता है इसलिए मरीज को इससे बचाया जाना चाहिए। ऑक्सीजन की मात्र 94 फीसद से कम होने पर डी-डाइमर और अन्य आवश्यक जांचें अवश्य कराई जानी चाहिए।

(प्रस्तुति: नई दिल्ली से रणविजय कुमार सिंह और भोपाल से शशिकांत तिवारी)

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