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कोरोना काल में प्रभावित हुई दिनचर्या, फिर से लौटेंगे अपनी पुरानी मस्‍ती भरी जिंदगी में

दोस्तो कोरोना काल में सभी की दिनचर्या प्रभावित हुई है। उनमें आप भी शामिल हैं। अगर आप अपनी मर्जी से घर से नहीं निकल पा रहे दोस्‍तों से मन की बातें नहीं कर पा रहे तो तनाव न पाल कर फिलहाल इस बदलाव को अपनाना ही आपके हित में है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Sat, 07 Nov 2020 11:31 AM (IST)
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कोविड पर काबू पाने के बाद जल्‍दी लौटेंगे मस्ती के दिन।
नई दिल्ली, यशा माथुर। दोस्‍तों, 16 साल के अर्णव का जन्‍मदिन था और वह घर में रह कर ऊब गया था। अपने जन्‍मदिन को दोस्‍तों के साथ बाहर मनाना चाहता था। मम्मी-पापा ने काफी समझाया लेकिन उसकी जिद कम नहीं हुई। आखिर मम्‍मी-पापा ने कुछ नजदीकी दोस्‍तों को घर पर बुलाया और उसकी इच्‍छा पूरी की। अर्णव की तरह आज अन्‍य बच्‍चे-किशोर भी अपनी बात मनवाने की जिद कर रहे हैं और बात न माने जाने पर नाराजगी दिखा रहे हैं।

कूल रहना ही मंत्र है : दोस्‍तो, इस समय सबसे ज्‍यादा मुश्किल निजता यानी प्राइवेसी की आ रही होगी आपको। सब घर में हैं और आप फोन पर भी दोस्‍तों से पूरी बातें नहीं कर पा रहे हैं। फिर मम्मी-पापा की उम्मीदें भी बढ़ गई हैं। ऐसे में भी आपको नाराज नहीं होना है बल्कि कुछ दिन की बात समझ कर टाल देना है। कणिका की जब परीक्षाएं थीं तो उसे उनकी तैयारी करनी थी। आम दिनों में पापा-मम्मी ऑफिस होते और वह शांति से पढ़ पाती थी। लेकिन अब मम्मी डांट भी देती हैं कि इतना क्या दिन भर पढ़ाई कर रही है? मम्मी के साथ काम में हाथ नहीं बंटा सकती? ऐसे में उलझ गई है वह। लेकिन शांति बनाए रखते हुए उसने तैयारी की और परीक्षाएं दीं। दोस्‍तो, कूल रहना ही मंत्र है इस समय का।

बच्‍चों को दोस्‍त समझें : अगर बच्चे चिड़चिड़े हो रहे हैं तो पैरेंट्स को उनकी बात समझनी होगी। ऐसा कहती हैं साइकोथेरेपिस्‍ट अदिति सिन्‍हा। उनका मानना है कि अक्सर बच्चे समझा कर अपनी बात बता नहीं पाते। ऐसे में पैरेंट्स को खुद उनकी मुश्किलें समझनी होंगी। बच्चों में गुस्सा बढ़ रहा है। वे जिद करते हैं और नाराज हो रहे हैं। जब बच्चे बाहर जाते थे तो अपने दोस्तों से मिलते थे और उनसे अपनी हर बात कर पाते थे। अभी उन्हें लंबे समय से घर में ही रहना पड़ रहा है। पैरेंट्स से हर बात शेयर नहीं कर पाते। इसके अलावा, वे घरों में तनातनी भी देख रहे हैं। इसका भी उनके दिमाग पर असर पड़ता है। इनको जज करना बंद कर दें और बच्‍चों से दोस्‍ताना पेश आएं।

बात करने की जरूरत है : इन दिनों बच्‍चों में मूड स्विंग्स बहुत हो रहा है। बच्चे परेशान हो रहे हैं। पढ़ाई पर प्रभाव भी उनके लिए तनाव बनता जा रहा है। मनोविज्ञानी कहते हैं कि यह समय सबके लिए काफी मुश्किल समय है। ऐसे में हम यह उम्मीद नहीं कर सकते कि इनका व्यवहार एकदम संतुलित, सामान्य और आदर्श रहे। वे पढ़ाई में भी सही रहें। इस समय को हमें समझना होगा और स्थिति बिगड़ने से पहले ही उनसे बात करनी चाहिए। बिना किसी धमकी और डांट के बच्चों के साथ माता-पिता को बात करने की जरूरत है। इस मुश्किल वक्त में जिन बच्चों का आत्मविश्वास ज्यादा है, महत्वाकांक्षाएं ज्‍यादा हैं वे ज्यादा परेशान हो रहे हैं।

गेट-टुगेदर से खुश हो गए : जो माता-पिता समय की मांग को समझ रहे हैं वे रास्‍ते निकाल रहे हैं। सोनाली अग्रवाल कहती हैं, ‘आजकल बच्चे ओपन हैं। उनके ग्रुप बने हुए हैं। ऑनलाइन चैटिंग चलती रहती है। बच्चों की दिनचर्या बिगड़ गई है। सुबह जल्दी उठना और रात में समय से सोना सब गड़बड़ हो चुका है। स्कूल की बातें बताते हैं लेकिन कई दूसरी बातें नहीं बताते। बच्‍चों की मांग को देखते हुए हमने उनका एक छोटा गेट-टुगेदर भी करवा दिया था। जिससे वे खुश हो गए। जिद और मांग बढ़ रही है। बच्चे ने कहा डॉगी लेकर दो। हमने इंडोर गेम लेकर दिए। घर में बैठे-बैठे उनका परेशान होना स्‍वाभाविक है।‘

ढूंढ़ निकालें अपनी खूबियां : साइकोथेरेपिस्ट व कोविड-19 काउंसलर प्रो. अदिति सिन्हा ने बताया कि आपकी नाजुक उम्र है। आपके माता-पिता आपके दुश्मन नहीं है। अगर उन्होंने आपसे कुछ उम्मीद की है और आपने थोड़ी उनकी बात मान भी ली तो इसमें आपको कोई नुकसान नहीं होगा, बल्कि पैरेंट्स भी खुश हो जाएंगे। बाहर जाना मुश्किल है तो आप घर पर थोड़ा योग और प्राणायाम करें। हल्का शारीरिक व्यायाम कर लें। आप मोहल्ले, कॉलोनी या सोसायटी में जहां भी रहते हैं, अगर वहां घूम सकते हैं तो चहलकदमी करें। इससे आपका मन अच्छा होगा। कुछ अच्छा पढ़ें। अपने लिए वक्त निकालें। अपनी खूबियां ढूंढ़ निकालें। अपने शौक को समय दें। अपनी अच्छाई जान कर उस पर काम करें। इससे काफी फर्क पड़ेगा।

 

वर्चुअल लाइफ के पीछे न भागें : गुरुग्राम के पारस हॉस्पिटल की सीनियर कंसल्टेंट डॉ. प्रीति सिंह ने बताया कि आप अपनी वर्चुअल लाइफ को देखिए। कहीं आप इसे ऐसा तो नहीं बनाना चाहते, जैसा वास्तविक जीवन जीना चाहते हैं। यह भागने जैसा होगा। यदि ऐसा हो रहा है तो इसे पहचानिए और मदद लीजिए। आप वास्तविक जिंदगी की जितनी अनदेखी करेंगे और वर्चुअल लाइफ के पीछे भागेंगे, उतना ही आपको तनाव होगा। सोशल मीडिया इतना हावी हो गया है कि इन पर आई प्रतिक्रयाएं हमें वास्तविक जिदगी की समस्याएं लगने लगती हैं। लाइक और डिसलाइक, फॉलो और ब्लॉक के बीच में न झूलें। असली जिंदगी को पहचानें।

मेंटल फिटनेस एक तैयारी है : बीयर बाइसेप्स के रणवीर अल्लाहबादिया ने बताया कि मैं जो भी कंटेंट बनाता हूं वह खुद के अनुभव से बनाता हूं। जब मैं इंजीनियरिंग कॉलेज में था तो मेंटल हेल्थ की परेशानियां मुझे भी हुई थीं। मैं डिप्रेशन में चला गया था, जिसके लिए मैंने थेरेपी ली थी। उस समय इन चीजों के बारे में कोई भी बात नहीं करता था। इसलिए मैं आज इन पर वीडियोज बनाता हूं। इस मुश्किल समय में हमें मेंटल फिटनेस के बारे में बात करनी चाहिए। मेंटल फिटनेस एक तैयारी होती है, जिससे जिंदगी की मुश्किलों का सामना करना आसान हो जाता है। हम मेडिटेशन करने के लिए कहते हैं। अच्छी किताबों की जानकारी देते हैं। अगर आपके सोशल सर्किल में कोई नकारात्मकता दे रहा है तो बताते हैं कि उससे कैसे दूर होना है। इस तरह से हम किशोर बच्चों की मानसिक तैयारी करवा रहे हैं।

दोस्तों से मिलने का इंतजार है : पैरेंट गीतू भटीजा ने बताया कि मेरा बेटा 13 साल का है। आठवीं कक्षा में है। शुरू के लॉकडाउन का समय तो सही था। हमने बच्चों को खूब समय दिया और बच्चे भी खुश रहे लेकिन जब यह समय बढ़ता गया, तो बच्चों के लिए काफी मुश्किलें पैदा हो गईं। अब बच्चे बहुत ज्यादा बोर हो गए हैं। उन्हें लग रहा है कि कब स्कूल खुलें और हम बच्चों से मिलें। ऑनलाइन क्लासेज में उन्हें इतना मजा नहीं आ रहा है। स्कूल में स्पोट् र्स क्लासेज होती हैं, अन्य गतिविधियां होती हैं उन्हें बच्चे मिस कर रहे हैं। पहले मैं वर्क फ्रॉम होम कर रही थी तो बच्चों के स्क्रीन टाइम पर नजर रखती थी लेकिन अब मेरा ऑफिस शुरू हो गया है और बच्चों का फोन टाइम बढ़ गया है। वे ऑनलाइन गेम खेलते रहते हैं। टीनएजर बच्चे घर पर परेशान हैं। बाहर भेजना रिस्क है। मुश्किल तो है उनको मैनेज करना।

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