घड़ोली गांव में सांप सपेरों की जोड़ी आज भी आबाद, मरने के बाद लगाई जाती है समाधि
घड़ौली गांव स्थित सपेरा बस्ती को बसे कई सौ वर्ष हो गए हैं। कर्मवीर नाथ ने बताया कि उनके दादा परदादा बताते थे कि वह लोग राजस्थान से आए थे। पहले वह सांप का खेल दिखाकर जीवनयापन करते थे लेकिन अब सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया है।
By Vinay TiwariEdited By: Updated: Sun, 08 Nov 2020 01:44 PM (IST)
जागरण संवाददाता, पूर्वी दिल्ली। बचपन में आपने गली-मोहल्ले में सांप-सपेरा का खेल बहुत देखा होगा। लेकिन अब सांप-सपेरे की जोड़ी आपको नजर नहीं आती होगी। सांप-सपेरे की यह जोड़ी आपको देखनी है तो पूर्वी दिल्ली स्थित घड़ोली गांव पहुंच जाएं। घड़ोली गांव और यहां बसी इस सपेरा बस्ती का इतिहास बहुत पुराना है। यह बस्ती इस गांव को खास बनाती है। यहां सपेरों के पास तरह-तरह की प्रजाति के सांप हैं। वे लोग अब उन्हें बाहर लेकर नहीं जाते लेकिन घर पर ही उनका पालन-पोषण करते हैं।
सपेरा बस्ती गांव को बनाती है खासघड़ौली गांव स्थित सपेरा बस्ती को बसे कई सौ वर्ष हो गए हैं। स्थानीय निवासी कर्मवीर नाथ ने बताया कि उनके दादा परदादा बताते थे कि वह लोग राजस्थान से आए थे। पहले वह सांप का खेल दिखाकर जीवनयापन करते थे लेकिन अब सरकार ने इस पर प्रतिबंध लगा दिया है। सरकार ने सांपों की रक्षा के बारे में सोचा लेकिन सपेरों के बारें में कुछ नहीं सोचा, सांप का खेल दिखाने में प्रतिबंध लगाने से हमारा रोजगार छिन गया, हम लोग अब भीख मांगने को मजबूर हैं। उन्होंने बताया कि उनके पूर्वज भी सपेरे थे। लोगों के पास इसके दस्तावेज भी मौजदू हैं।
प्राचीन नाग मंदिर आस्था का केंद्रबाबा कर्मनाथ ने बताया कि उनके पूर्वजों ने यहां प्राचीन नाग मंदिर की स्थापना भी की। उनके दादा परदादा बताते थे कि इस क्षेत्र में शेषनाग प्रकट हुए थे तब गांव के लोगों ने उन्हें दूध पिलाया और उनकी सेवा की। उसके बाद उसी स्थान पर नाग मंदिर की स्थापना की। यहां शिव रात्रि व नाग पंचमी पर सपेरा समाज के लोग व्रत-पूजन और भंडारे का आयोजन करते हैं। यहां जन्माष्टमी से एक दिन बाद में गोगा नवमी धूमधाम से मनाई जाती है। सवा महीने तक यहां समारोह चलता है। इसमें नागों की पूजा की जाती है। लोगों ने बताया कि सपेरा समाज में मरने के बाद समाधि लगाई जाती है। यह परंपरा सदियों पुरानी है।
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