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दिल्ली में मानक से 20 गुना अधिक बना हुआ है इन दिनों वायु प्रदूषण का स्तर

इस साल की शुरूआत में लॉकडाउन की वजह से प्रदूषण सबसे निम्न स्तर पर पहुंच गया था वहीं इन दिनों प्रदूषण का स्तर अपने सारे रिकॉर्ड तोड़ रहा है। जब से लॉकडाउन हटाया गया है उसके बाद से प्रदूषण के स्तर में लगातार बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है।

By Vinay TiwariEdited By: Updated: Tue, 10 Nov 2020 11:37 AM (IST)
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साल 2016 के बाद राजधानी में नवंबर माह में इस तरह से प्रदूषण दिख रहा है। (फाइल फोटो)
नई दिल्ली, रॉयटर्स/जागरण स्पेशल।  राजधानी दिल्ली के लोगों को इन दिनों प्रदूषण के सबसे खराब दौर का सामना करना पड़ रहा है। इस साल की शुरूआत में जहां लॉकडाउन की वजह से प्रदूषण सबसे निम्न स्तर पर पहुंच गया था, वहीं इन दिनों प्रदूषण का स्तर अपने सारे रिकॉर्ड तोड़ रहा है। जब से लॉकडाउन हटाया गया है उसके बाद से प्रदूषण के स्तर में लगातार बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है।

अक्टूरब माह से ही इसमें बढ़ोतरी दर्ज की जा रही थी अब प्रदूषण का स्तर अपने मानक से कई गुना अधिक पर पहुंच गया है। ऐसे में लोगों को तमाम तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। आलम ये हो गया है कि सीनियर सिटीजनों को ऐसे मौसम में अपने घर में ही रहने की सलाह दी जा रही है जिससे उनका बचाव हो सके।

राजधानी के डॉक्टरों का कहना है कि इन दिनों राजधानी में एयर क्वालिटी इंडेक्स लगातार 500 और 400 के पैमाने पर चल रहा है। सरकारी आंकड़ों को देखने से पता चलता है कि इनमें बड़े पैमाने पर कमी आती नहीं दिख रही है। धूल के महीन कण (PM2.5) फेफड़ों के कैंसर सहित हृदय और श्वसन संबंधी बीमारियों का कारण बन रहे हैं और COVID 19 वाले लोगों के लिए एक विशेष जोखिम पैदा कर सकते हैं। 

भारतीय मेडिकल एसोसिएशन के मानद महासचिव असोकन ने कहा कि वायु प्रदूषण ने लोगों को कोरोनोवायरस संक्रमण के प्रति संवेदनशील बना दिया है। PM2.5 (धूल के महीन कण) नाक के माध्यम से शरीर के अंदर तक पहुंच जाते हैं और वहां फेफड़ों के अंदरूनी हिस्सों को नुकसान पहुंचाते हैं। ये भी कहा जा रहा है कि ये धूल के महीन कण कोरोनोवायरस संक्रमण के प्रसार में भी सहायक होते हैं।

दुनिया भर के डॉक्टरों और शोधकर्ताओं ने उन रोगियों में प्रदूषण और मौतों के बीच एक लिंक की सूचना दी है जिनके फेफड़े कोरोना वायरस के संक्रमण की वजह से कमजोर होते हैं। आधिकारिक आंकड़ों से पता चलता है कि सोमवार को PM2.5(धूल के महीन कण) का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन की सुरक्षित सीमा से 20 गुना अधिक था। 400 स्तर से ऊपर AQI के साथ पांच दिन 2016 के बाद नवंबर में इस तरह के भारी प्रदूषण का सबसे लंबा समय है। नवंबर आमतौर पर पूरे उत्तर भारत में प्रदूषण के लिए सबसे खराब महीना होता है क्योंकि किसान अपने खेतों में पराली(डंठल) जलाते हैं और ठंडा मौसम प्रदूषण का कारण बनता है। 

प्रदूषण के इस स्तर को देखते हुए अब डॉक्टरों ने ये भी संभावना जताई है कि दीवाली के बाद इसमें बड़े पैमाने पर इजाफा होगा। वैसे एनजीटी पटाखों पर प्रतिबंध लगाने की बात कह रहा है मगर इसका कितना असर होगा ये तो देखने वाली बात होगी। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने सोमवार से 1 दिसंबर तक 20 मिलियन लोगों और पड़ोसी शहरों में पटाखों की बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया है लेकिन कुछ लोग अनिवार्य रूप से आदेश की अनदेखी करेंगे। अदालत ने अधिकारियों को COVID-19 की वृद्धि की संभावना को देखते हुए सभी स्रोतों से वायु प्रदूषण को रोकने के लिए भी कहा। जलने के साथ ही ठूंठ के जलने से दिल्ली में प्रदूषण की मार फैक्ट्रियों, वाहनों और कूड़े के जलने से होती है।  

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