दिल्ली में हस्तकला का प्रशिक्षण देकर महिलाओं व लड़कियों को आत्मनिर्भर बना रहे गिरीश चंद
गिरीश चंद सेवा बस्ती में रहने वाली लड़कियों व महिलाओं को अपनी इंडियन मेडिसिन डेवलपमेंट संस्था के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाने का गुर सिखाते है। उनके इस प्रयास से लड़कियों और महिलाओं को समाज में सिर उठाकर जीने का सबब मिल रहा है।
By Mangal YadavEdited By: Updated: Tue, 10 Nov 2020 10:07 AM (IST)
नई दिल्ली [पुष्पेंद्र कुमार]। आत्मनिर्भरता एक नई सोच...। यह सोच उन लड़कियों व महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का काम करती है। जिनके हुनर के दरबाजे पर गरीबी का ताला लगा रहता है। यह एक छोटा-सा प्रयास है शिक्षा से जागरूकता का और उनके हुनर को पहचानने का। जो गरीबी के अभाव से लाचाक अनमोल जीवन को बचाने का काम कर रहे हैं। इंडियन मेडिसिन डेवलपमेंट संस्था से गरीबी और अशिक्षा के पिंजरे में कैद स्लम इलाकों की लड़कियां व महिलाओं को उन्मुक्त गगन मिलता नजर आ रहा है। सुविधाओं के अभाव में दम तोड़ती महिलाओं को सही राह पर लाने का बीड़ा समाजसेवी गिरीश चंद कबडवाल ने उठाया है।
दुर्गापुरी एमआइजी फ्लैट में रहने वाले गिरीश चंद सेवा बस्ती में रहने वाली लड़कियों व महिलाओं को अपनी इंडियन मेडिसिन डेवलपमेंट संस्था के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाने का गुर सिखाते है। उनके इस प्रयास से लड़कियों और महिलाओं को समाज में सिर उठाकर जीने का सबब मिल रहा है। सेवा बस्ती में रहने वाले बच्चों के भविष्य को संवारने के साथ-साथ वह बच्चों को बेहतर जीवनशैली के प्रति जागरूक भी कर रही है। साथ ही स्लम इलाकों की महिलाओं को सामाजिक मुद्दों की जानकारी देकर आत्मनिर्भर बनाने का कार्य करते है।
इनकी इस मुहिम से कई महिलाओं के जीवन में बड़ा बदलाव आया है। वह अपने संस्था के माध्यम से महिलाओं व लड़कियों को हस्तकला के प्रशिक्षण देने का कार्य भी करते है। महिलाएं व लड़कियां पुराने कपड़ों को रिसाइकलिंग कर दरियां व पायदान तैयार करती है व मार्केंट से नए पकड़ों की कतरनों को खरीदकर उससे लहंगा, स्कर्ट व टोप आदि का प्रशिक्षण लेती है। साथ ही संस्था के माध्यम से महिलों को महेंदी लगाना व ब्यूटी पार्लर के बारे में सीखाया जाता है। गिरीश ने बताया कि कॉलेज के समय से ही उनकी सामाजिक कार्यों में गहरी दिलचस्पी रही है। कॉलेज में पढ़ाई के दौरान अपने दोस्तों के साथ लोगों की मदद करते थे।
परिवार के सदस्यों व दोस्तो ने किया सहयोगपरिवार में पिता हमेश इस काम के लिए मना किया, वह हमेशा कहते थे कि दूसरों का भविष्य संवारने के लिए पहले खुद का भविष्य संवारों। मगर परिवार में अन्य सदस्य और दोस्त की प्रेरणा से मुझे हिम्मत मिली और में तभी से इस कार्य में जुट गया। बाद में पिता भी मेरे इस कार्य से बड़े खुश हुए। साथ ही उन्होंने बताया कि संस्था 1997 में रजिस्ड थी लेकिन संस्था 2004 से महिलाओं व लड़कियों को आत्मनिर्भर बनाने की शुरूआत की। हर वर्ष लगभग 50 से 60 महिलाएं व लड़िकयों आत्मनिर्भर के गुर सीखने आते है।
उन्होंने बताया कि सामाजिक कार्य करने से उन्हें अपने जीवन में कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता है। इसलिए वह हमेशा सामजिक कार्यों के लिए तत्पर रहते है। इससे इन्हें बहुत खुशी मिलती है। वह आगे चलकर बड़े पैमाने पर लोगों की मदद कर उनकी जिंदगी बदलना चाहते है।Coronavirus: निश्चिंत रहें पूरी तरह सुरक्षित है आपका अखबार, पढ़ें- विशेषज्ञों की राय व देखें- वीडियो
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