आयुर्वेदिक डिस्पेंसरी में नहीं है दवा, इलाज के लिए भी 20 किलोमीटर दूर जाने को मजबूर मरीज
गांव के लोगों के मुताबिक डिस्पेंसरी में डॉक्टर दवा लिख देते हैं लेकिन वहां दवा उपलब्ध नहीं है। इसलिए उन्हें बाहर स्टोर से दवा खरीदनी पड़ती है। इस वजह से उनको दवा के लिए काफी पैसा खर्च करना पड़ जाता है।
By Neel RajputEdited By: Updated: Wed, 11 Nov 2020 10:54 AM (IST)
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। ग्रामीण क्षेत्र में आयुर्वेदिक डिस्पेंसरी में ढाई साल से दवा नहीं है। इस कारण लोगों को परेशानी हो रही है। पंजाब खोड़, बाजितपुर बवाना समेत कई ऐसे गांव हैं जहां डिस्पेंसरी तो हैं पर उनमें दवा नहीं है। डिस्पेंसरी में डॉक्टर तो आते हैं, लेकिन दवा न होने की वजह से मरीजों का इलाज नहीं कर पाते। मजबूरन लोगों को दस से 20 किलोमीटर दूर जाना पड़ रहा है। गांव के लोगों का कहना है कि डिस्पेंसरी में डॉक्टर दवा लिख देते हैं, लेकिन वहां दवा उपलब्ध नहीं है। इसलिए उन्हें बाहर स्टोर से दवा खरीदनी पड़ती है। लोगों का कहना है कि आयुर्वेदिक इलाज लंबा चलता है, इसलिए उन्हें बाहर से दवा खरीदने में काफी पैसे देने पड़ते हैं। इससे उनकी जेब पर असर पड़ रहा है। ग्रामीणों के अनुसार, कई बार शिकायत करने के बाद भी उनकी परेशानी दूर नहीं हो रही हैं।
डॉक्टर को भी नहीं मिला है वेतन
सूत्रों के अनुसार, डिस्पेंसरी के डॉक्टर और सफाई कर्मी को भी समय से वेतन नहीं मिल पा रहा है। इस कारण उन्हें भी आर्थिक संकट से गुजरना पड़ रहा है।
क्या कहते हैं विधायकबवाना के विधायक जय भगवान उपकार ने बताया कि सरकार की तरफ से कोई कमी नहीं छोड़ी जा रही है। कोरोना संक्रमण की वजह से अभी ज्यादा स्टॉक नहीं रखा जा रहा है। यह मामला अभी मेरे संज्ञान में आया है। जल्द ही लोगों की परेशानी दूर की जाएगी।
कुतुबगढ़ के पशुओं के अस्पताल में भी नहीं है दवाबाहरी दिल्ली के इलाकों में पशुओं के इलाज का एकमात्र विकल्प पशु डिस्पेंसरी है। इन पशुओं के अस्पतालों पर ध्यान न देने के कारण पशु पालक परेशान हो रहे हैं। दो साल से दवा की आपूर्ति न होने के कारण कुतुबगढ़ गांव का एकमात्र पशुओं का डिस्पेंसरी अपनी बदहाली पर आंसू बहाने को विवश है। कभी इस पशु अस्पताल के सामने पशु पालक अपने बीमार पशुओं के इलाज के लिए लंबी कतार लगाए रहते थे, लेकिन अब कुछ ही ग्रामीण अपने मवेशियों को लेकर यहां पहुंच रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, अस्पताल में पशु चिकित्सक भी कभी-कभी आते हैं। इस वजह से पशु पालक निजी चिकित्सक से पशुओं को इलाज कराने को मजबूर हैं। इसका फायदा उठाकर निजी चिकित्सक पशु पालकों का जम कर दोहन करते हैं। ग्रामीणों के अनुसार, इस अस्पताल पर आसपास के भी कई गांवों (जटखोड़, पंजाब खोड़, मुंगेशपुर, कटेवड़ा आदि) के लोग निर्भर हैं। उनके गांव में पशु अस्पताल न होने के कारण उन्हें पशुओं को लेकर कुतुबगढ़ के अस्पताल में ही आना पड़ता है।Coronavirus: निश्चिंत रहें पूरी तरह सुरक्षित है आपका अखबार, पढ़ें- विशेषज्ञों की राय व देखें- वीडियो
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