किसानों और खेतीबाड़ी की बेहतरी का रास्ता दिखाते हैं नए कृषि कानून, किसी के बहकावे में न आएंः IARI
दैनिक जागरण से बातचीत में आइएआरआइ के निदेशक डॉ. ए. के. सिंह ने बताया कि नए कृषि कानूनों को लेकर चल रहे किसान आंदोलन की नींव गलतफहमी और अधूरी जानकारी पर पड़ी है। सच्चाई इसके सर्वथा विपरीत है।
By Mangal YadavEdited By: Updated: Fri, 11 Dec 2020 09:18 AM (IST)
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। किसानों और केंद्र सरकार के बीच चल रहे गतिरोध के बीच भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आइएआरआइ) ने नए कृषि कानूनों को नई हरित क्रांति का वाहक बताया है। संस्थान का कहना है कि तीनों ही कानून किसानों की जिंदगी और कृषि जगत को बेहतरी की राह पर ले जाने वाले हैं। संस्थान की ओर से किसानों को सलाह दी गई है कि वे इन कानूनों को तसल्ली से पढ़ें और समझे। किसी के भी बहकावे में आकर कोई राय न बनाएं।
दैनिक जागरण से बातचीत में आइएआरआइ के निदेशक डॉ. ए. के. सिंह ने बताया कि नए कृषि कानूनों को लेकर चल रहे किसान आंदोलन की नींव गलतफहमी और अधूरी जानकारी पर पड़ी है। सच्चाई इसके सर्वथा विपरीत है। बकौल सिंह, ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि आंदोलन कर रहे किसानों ने इन कानूनों को ठीक से पढ़ा और समझा ही नहीं। अपना उल्लू सीधा करने के लिए कुछ राजनेता और आढ़तियों-बिचौलियों ने उन्हें जैसा समझाया, वे उसे ही सच मानकर बैठ गए। अगर किसान इन तीनों कानूनों को गंभीरता से पढ़ते- समझते हुए पुराने कानूनों से इनकी तुलना करेंगे तो उन्हें तुरंत फर्क समझ में आ जाएगा।
ए. के. सिंह ने कहा कि हर साल देश में 10 फीसद अनाज और 40 फीसद फल- सब्जियां भंडारण की व्यवस्था न होने से बर्बाद हो जाती हैं। इनकी कीमत तकरीबन 80 हजार करोड़ रुपये बैठती है। भंडारण की व्यवस्था बगैर निजी निवेश के बेहतर नहीं हो सकती। नए कानून से अगर भंडारण व्यवस्था में सुधार होगा तो यह बर्बादी रुक जाएगी। इसका फायदा कृषि जगत को ही होगा।
उन्होंने कहा कि कृषि को उन्नत बनाने के लिए तकनीक का प्रयोग भी समय की मांग है। अनुबंध आधारित खेती के तहत यही फायदा होगा। उन्होंने उदाहरण देकर समझाया कि अभी अगर किसी किसान ने एक हजार एकड़ में कोई फसल उगाई है और उसमें कहीं कीड़ा लग जाता है तो उस किसान को सारी फसल पर दवा का छिड़काव करना होगा। लेकिन, सेंसर की सहायता से हमें तुरंत पता चल जाएगा कि कीड़ा किस हिस्से में लगा है। वहीं पर दवा छिड़क दी जाएगी। इसी तरह ड्रोन के प्रयोग से दवा का छिड़काव करने पर दवा बहुत कम लगेगी।
डॉ. सिंह के मुताबिक, मंडी से बाहर फसल बेचने की छूट भी किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। उन्होंने फिर अन्य उदाहरण देकर समझाया कि बासमती चावल की पैदावार पर भारत का एकाधिकार है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में लोग बासमती के ऊंचे दाम तक देने को तैयार होते हैं, लेकिन किसानों को ऊंचा दाम इसलिए नहीं मिलता क्योंकि उनसे सस्ते में फसल लेकर यह मुनाफा आढ़ती और बिचौलिए ले जाते हैं। डॉ. सिंह के मुताबिक इसके बावजूद सरकार ने संशोधन प्रस्ताव में किसानों की बची-खुची उलझनें भी सुलझा दी हैं।
Coronavirus: निश्चिंत रहें पूरी तरह सुरक्षित है आपका अखबार, पढ़ें- विशेषज्ञों की राय व देखें- वीडियो
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।