National Mathematics Day 2020: सुनेंगे किशोर-युवाओं की प्रेरक कहानियां, तो हो जाएगा गणित से प्यार
National Mathematics Day 2020 देश के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन मानते थे कि गणित के बिना कुछ भी नहीं किया जा सकता। हमारे आसपास सब कुछ गणित है सब कुछ नंबर हैं। फिर भी गणित को लेकर तमाम बच्चों-किशोरों के मन में एक अजीब-सा भय होता है।
By Sanjay PokhriyalEdited By: Updated: Tue, 22 Dec 2020 12:00 PM (IST)
नई दिल्ली, अंशु सिंह। National Mathematics Day 2020 हैदराबाद के नीलकंठ भानु प्रकाश को मैथ्स इतना पसंद है कि वे कैलकुलेटर से भी तेज गति से सवालों के जवाब बता देते हैं। दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज के इस छात्र को अपनी इस स्पीड एवं एक्यूरेसी के लिए लंदन में आयोजित ‘मेंटल कैलकुलेशन वर्ल्ड चैंपियनशिप’ में गोल्ड मेडल मिल चुका है। इसके अलावा, उनके नाम 50 लिम्का रिकॉर्ड्स भी हैं।
भानु बच्चों के मैथ्स के डर को दूर करना चाहते हैं। वे अपने स्टार्ट अप एवं विजन मैथ्स फाउंडेशन के जरिए बच्चों की कोग्निटिव एबिलिटी में सुधार लाने की कोशिश कर रहे हैं। बताते हैं भानु, मैं खेल-खेल में बच्चों को मेंटल मैथ्स की ट्रेनिंग देता हूं। इस 22 दिसंबर को हम मल्टीप्लेयर मैथ्स गेम्स भी लॉन्च करने जा रहे हैं। इसकी 24 घंटे लाइव स्ट्रीमिंग भी की जाएगी। उम्मीद है बच्चों को यह पसंद आएगी।
ईजाद किया डिवीजन का अनूठा फॉर्मूला : दोस्तो, महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइंस्टीन को तो आप सभी जानते ही हैं। जब वे छोटे थे, तो उन्हें गणित से बहुत डर लगता था। वे अक्सर इसमें फेल भी हो जाते थे। सहपाठी उनका मजाक उड़ाते। लेकिन एक दिन आइंस्टीन ने ठान लिया कि वे मैथ्स से घबराएंगे नहीं, बल्कि उसके सवालों का सामना करेंगे। इसमें वे कई बार असफल भी हुए। लेकिन गणित के भय को भगाने की उनकी लगन कम नहीं हुई। धीरे-धीरे वे सवालों को हल करने लगे। उनका उत्साह बढ़ने लगा। अहमदाबाद स्थित आनंद निकेतन के पांचवीं कक्षा के छात्र नौ वर्षीय हितार्थ अजय सिंघानिया को तो गणित से इतना लगाव है कि उन्होंने अंकों के भाग (डिवीजन) का अपना खास तरीका तक ईजाद कर लिया है। इसके लिए इनका नाम ‘इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स’ में भी दर्ज हो चुका है। नियमित रूप से इंटरनेशनल मैथ्स ओलंपियाड में हिस्सा लेने एवं मेडल जीतने वाले हितार्थ बताते हैं,‘मुझे नंबर्स पसंद हैं। इसी कारण मैथ्स में भी दिलचस्पी है। जहां तक खास तरीके से अंकों के डिवीजन की बात है, तो वह किसी ने सिखाया नहीं है। मैथ्स के सवाल हल करते-करते मैं ऐसा करने लगा। इन दिनों मैं मैथ्स ओलंपियाड की तैयारी कर रहा हूं। उसके सैंपल पेपर्स को सॉल्व करने में मजा आता है। जरूरत पड़ने पर कभी-कभी टीचर्स या पैरेंट्स की गाइडेंस भी लेता हूं।’ वहीं, हितार्थ की मां नम्रता बेटे के हुनर को वरदान मानती हैं। बताती हैं, ‘वह खुद से ही पढ़ाई करता है। कोई ट्यूशन नहीं लेता। डिवीजन मेथड के बारे में भी उसने बताया नहीं। मैंने ही एक दिन नोटिस किया, तो पता चला और फिर उसके टीचर्स से बात की।’
गणित ने बढ़ाया आत्मविश्वास : पुणे की 14 वर्षीय सई पाटिल ने तीसरी कक्षा में स्कूल ड्रॉप कर दिया था। आज वह घर पर रहकर ही अपनी मर्जी से पढ़ाई करती हैं। इनका कोई पूर्व-निर्धारित रूटीन या दिनचर्या नहीं होती है। जिस समय जो करने का मन हुआ, वह करती हैं। लेकिन मैथ्स इनका पसंदीदा विषय है और इस पर वे सबसे अधिक समय व्यतीत करती हैं। बताती हैं सई, ‘मैथ्स एक शौक जैसा है। इसमें मुझे नंबर थ्योरी, वैदिक गणित काफी पसंद हैं। जो भी अच्छे टीचर मिलते हैं, उनसे कुछ न कुछ सीख लेती हूं। जैसे स्थानीय भाष्कराचार्य प्रतिष्ठान और रेजिंग ए मैथमेटिशियन फाउंडेशन द्वारा आयोजित विभिन्न प्रोग्राम्स एवं गणित संबंधी अन्य कार्यशालाओं से काफी सीखने को मिला है।’ गणित से लगाव के कारण ही सई 2018 में ‘विचार वाटिका’ द्वारा आयोजित की गई ‘रामानुजन यात्रा’ में भी शामिल हुई थीं। इस दौरान इनका उन तमाम स्थानों पर जाना हुआ, जहां महान गणितज्ञ रामानुजन की शिक्षा-दीक्षा हुई और उनका बचपन गुजरा। वे दक्षिण भारत के कुछ संग्रहालयों में भी गईं। आखिर गणित से उन्हें क्या सीखने को मिला है, इस पर सई का कहना है कि वे अपनी दिनचर्या को बेहतर तरीके से व्यवस्थित कर पाती हैं। इससे उनकी एकाग्रता शक्ति एवं आत्मविश्वास बढ़ा है। अकेले यात्राएं कर लेती हैं। वैसे, सई के माता-पिता पेशे से इंजीनियर हैं। सॉफ्टवेयर इंजीनियर मां ने कुछ वर्ष पहले नौकरी छोड़कर गणित पढ़ाने का फैसला लिया। जरूरत पड़ने पर बेटी को गाइड भी करती हैं।
तार्किक सोच से हल होते हैं सवाल : ‘मैथ्स से लगाव मां के कारण हुआ। वह बचपन से ही स्कूल सिलेबस से इतर गणित पढ़ाया करती थीं। धीरे-धीरे मुझे मैथ्स के सवाल हल करने में मजा आने लगा। पर्म्यूटेशंस ऐंड कॉम्बिनेशंस के अलावा नंबर थ्योरी मेरे पसंदीदा टॉपिक्स हैं। छुट्टियों में भी मैं शौकिया तौर पर मैथ्स संबंधी कई क्लासेज एवं प्रोग्राम्स ज्वाइन करती हूं। उससे एक्सपोजर के साथ कॉन्सेप्ट्स क्लियर करने में काफी मदद मिली है।’ यह कहना है ठाणे स्थित रतनबाई-वालबाई जूनियर कॉलेज की 11वीं की स्टूडेंट सनाया गांधी का। इनकी मानें,तो स्कूलों में मैथ्स पढ़ाने का तरीका बदलना चाहिए। बच्चों को सिलेबस के अलावा उनके जीवन से जुड़ी रोजमर्रा की गतिविधियों में गणित के उपयोग आदि के बारे में बताया जाए,तो संभव है कि उनके भीतर बैठे डर को दूर किया जा सके। क्योंकि जैसे हर इंसान अपनी जिंदगी के मसलों को भिन्न-भिन्न तरीके से हैंडल करता है,वैसे ही गणित के किसी सवाल का हल निकालने के अलग-अलग तरीके हो सकते हैं। इसके लिए हमें तार्किक रूप से सोचना होगा। सवाल करने होंगे। ‘रेजिंग अ मैथमेटिशियन फाउंडेशन’ के सह-संस्थापक विनय नायर कहते हैं,‘मैथ्स या अन्य किसी विषय को लेकर डर एक वैश्विक समस्या है। साढ़े तीन वर्ष का बच्चा बिट्स पर डांस कर लेता है, लेकिन संभव है कि स्कूल में पढ़ाई करते हुए वह गणित यानी अंकों से रिलेट न कर पाए। क्योंकि हम बच्चों को भाषा के तौर पर गणित समझा नहीं पाते हैं। हम मानते ही नहीं कि बच्चे ज्ञान का विकास कर सकते हैं। उन्हें सिर्फ सिखाने पर जोर दिया जाता है।’
वैदिक गणित से दूर हो सकता है डर : सीए के स्टूडेंट रोहन भी इस बात से सहमति रखते हैं कि स्कूलों में रिसर्च एप्टिट्यूड विकसित पर जोर नहीं दिया जाता है। एक निर्धारित सिलेबस के तहत नियम एवं फॉर्मूले बताए जाते हैं,जिनकी मदद से परीक्षा उत्तीर्ण करने पर नई कक्षा में प्रमोट कर दिया जाता है। इससे करिकुलम के बाहर गणित को लेकर कोई विशेष ज्ञान हासिल नहीं हो पाता। न खुद की सोच विकसित हो पाती है। उदाहरण के तौर पर देखें, तो प्राथमिक स्तर पर देश के अधिकतर बच्चे 20 तक का टेबल (पहाड़ा) याद कर सुना देते हैं,लेकिन उन्हें यह मालूम नहीं होता कि टेबल आखिर बनते कैसे हैं? रोहन कहते हैं,‘गणित को याद नहीं किया जा सकता, उसके कॉन्सेप्ट को समझना होता है। इसमें वैदिक गणित अहम भूमिका निभा सकता है, जो बताता है कि कोई भी चीज होती क्यों है? दरअसल, वेदिक मैथ्स में किसी सवाल को पहले मानसिक स्तर पर सॉल्व किया जाता है, फिर उसका जवाब पन्ने पर लिखा जाता है। मैं मानता हूं कि इससे बच्चों में गणित के प्रति डर को भी दूर करना आसान होगा, जिसके लिए वैदिक मैथ्स को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने की जरूरत है।’ वैसे, बच्चों में गणित के भय के कारणों की पड़ताल करने के उद्देश्य से रोहन ने कुछ समय पहले एक सर्वे भी किया था। इससे पता चला कि पढ़ाने के तरीके एवं किसी सवाल को निर्धारित समयसीमा में सॉल्व करने की बाध्यता के कारण बच्चों को एक्सप्लोर करने की आजादी नहीं मिलती। वे सवालों से घबराने लगते हैं। होमवर्क पूरा न करने पर टीचर से डांट पड़ती है सो अलग। यही धीरे-धीरे उन्हें विषय से दूर कर देता है। जैसे महाराष्ट्र और अन्य कई राज्यों में आठवीं कक्षा तक सभी को उत्तीर्ण करना होता है, ऐसे में स्टूडेंट्स भी मैथ्स को गंभीरता से लेना छोड़ देते हैं। पढ़ने में उनकी खास दिलचस्पी नहीं रहती।
हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में है गणित का उपयोग : रोहन आगे बताते हैं,‘आमतौर पर कॉमर्स के स्टूडेंट्स को मैथ्स बोरिंग लगता है। लेकिन मैं ऐसा नहीं मानता,बल्कि स्टैटिस्टिक्स में प्रयोग करता रहता हूं और स्टूडेंट्स को बताने का प्रयास करता हूं कि गणित का उपयोग हर जगह है,हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में है। मसलन,जब एक दुकानदार रोजाना जितनी गणना (अंक गणित) करता है कि पांच साल से एबेकस सीख रहा बच्चा भी उन्हें पराजित नहीं कर सकता। हां,यह अलग बात है कि खुद दुकानदार को अपने इस कौशल के बारे में पता नहीं होता। इसी तरह, मैथ्स सिर्फ साइंस विषय तक सीमित नहीं है।
कॉमर्स,आर्ट्स,म्यूजिक,टेक्नोलॉजी जैसे हर क्षेत्र में इसका उपयोग है।’ जहां तक रोहन की खुद की गणित में दिलचस्पी की बात है, तो उसकी एक प्रमुख वजह मां रही हैं,जो गणित ज्योतिष में विशेषज्ञता रखती हैं। जब वे करीब चार वर्ष के थे,तो गाड़ियों के नंबर प्लेट के अंकों का कैलकुलेशन करते रहते थे। इसलिए मां ने तभी उनका दाखिला एबेकस क्लास में करा दिया। उन्हें अंकों के साथ इतना मजा आने लगा कि वे मनोरंजन के लिए गणित की पुस्तकें पढ़ने लगे। अपने स्कूल बोर्ड के अलावा उन्होंने अन्य बोर्ड्स की किताबों का अध्ययन भी किया। आठवीं कक्षा में आते-आते उनमें एक रिसर्च एप्टिट्यूड डेवलप हो गया। आज वे खुद पढ़ाई करने के साथ-साथ बच्चों को भी गणित पढ़ाते हैं, ताकि उनकी बुनियाद मजबूत हो सके।
खेल-खेल में सिखाएं मैथ्स : हैदराबाद के एक्सप्लोरिंग इंफिनिटीज के संस्थापक नीकलंकठ भानुप्रकाश ने बताया कि स्कूलों में पढ़ाए जाने वाले मैथ्स और बाहरी दुनिया में उसके होने वाले उपयोग के बीच कोई संबंध नहीं है। बच्चे इसे एक बोरिंग विषय मानते हैं। उन्हें नहीं बताया जाता कि लैंग्वेज की तरह मैथ्स भी अहम विषय होता है। मैं न्यूमरेसी एवं लिटरेसी को बच्चों के विकास की नींव मानता हूं। लेकिन भारत में साक्षरता पर अधिक जोर दिया जाता है, न्यूमरेसी पर नहीं। इसे बदलने की जरूरत है। जहां तक बच्चों में मैथ्स के डर को दूर करने का सवाल है, तो मैं एक्सप्लोरिंग इंफिनिटीज (expinfi.com/india) के जरिए स्कूलों में ट्रेनिंग प्रोग्राम करता हूं। बच्चों को बताता हूं कि कैसे मजे-मजे में गणित की पढ़ाई की जा सकती है। जैसे, मैं उनसे पूछता हूं कि क्या वे मैथ्स गेम खेलना पसंद करेंगे? उनका तत्काल जवाब आता है, क्यों नहीं? मैंने कुछ गेम्स भी क्रिएट किए हैं। अब तक हमने एक लाख से अधिक बच्चों के मैथ्स के डर को दूर करने में सफलता पायी है।
बच्चों में जगाएं जिज्ञासा : रेजिंग अ मैथेमेटिशियन फाउंडेशन के सह-संस्थापक विनय नायर ने बताया कि हमारे देश में ऐसे बच्चों की कमी नहीं,जो गणित में गहरी रुचि रखते हैं। उनमें मैथ्स को जानने-समझने को लेकर एक भूख-सी है। लेकिन स्कूल पाठ्यक्रम से वह पूरी नहीं हो पाती है। इसे देखते हुए हमने 2014 में फाउंडेशन की स्थापना की, जो देशभर के होनहार बच्चों को खुद को एक्सप्लोर करने का अवसर देता है। हम नियमित कैंप एवं प्रोग्राम्स आयोजित करते हैं, जिसमें उन्हें अलग-अलग प्रकार के मैथ्स का एक्सपोजर दिया जाता है। इसके लिए हमने करीब 11 प्रकार के मॉड्यूल्स तैयार किए हैं। जैसे, अंक-गणित का बीज गणित से क्या कनेक्शन है, बीज गणित एवं ज्यामितीय में क्या संबंध है या फिर मैथ्स एवं कंप्यूटर साइंस कैसे एक-दूसरे से जुड़े हैं। कैसे गेम्स के जरिए लॉजिकल थिंकिंग एवं स्ट्रेटेजी बनाई जा सकती है? इससे बच्चों के ज्ञान का विस्तार होता है। कोविड के बीच भी हम ऑनलाइन प्रोग्राम्स कर रहे हैं,जिसमें देश के अलावा विदेश के बच्चे भी हिस्सा ले रहे हैं। मेरी मानें, तो मैथ्स में रुचि बढ़ाने के लिए हमें बच्चों के अंदर एक जिज्ञासा पैदा करनी होगी। उन्हें बताना होगा कि किसी चीज का पैटर्न ढूंढना,बोर्ड गेम की स्ट्रेटेजी बनाना, कोई पहेली सॉल्व करना, वह सभी मैथमेटिकल थिंकिंग ही कहलाता है। इसी से बच्चों के एटीट्यूड में बदलाव आ सकता है।
कान्सेप्ट क्लियर होने पर नहीं लगेगा डर : ठाणे की रतनबाई-वालबाई जूनियर कॉलेज की 11वीं की स्टूडेंट सनाया गांधी ने बताया कि मुझे स्कूल के मैथ्स लेक्चर्स में खास दिलचस्पी नहीं होती थी,क्योंकि वहां एक ही ढर्रे से पढ़ाया जाता है। फार्मूला बता दिया। आप उसके आधार पर प्राब्लम को साल्व कर लें। आपको परीक्षा में इतने नंबर आ जाएंगे। लेकिन कभी कान्सेप्ट नहीं बताया जाता है कि आखिर वह फार्मूला तैयार या विकसित कैसे हुआ? किसने उसके बारे में सोचा? यानी तार्किक रूप से सोचने या सवाल करने की आजादी नहीं दी जाती और न ही प्रोत्साहित किया जाता है। जबकि वर्कशॉप्स में हमें खुद से एक्सप्लोर करने की पूरी छूट मिलती है। जैसे स्कूल में जब प्राइम नंबर के बारे में सिखाया जाता है, तो बच्चे उसे सिर्फ याद कर लेते हैं। लेकिन जब हमारा कॉन्सेप्ट क्लियर होता है, तो हम खुद से नए पैटर्न्स डेवलप कर पाते हैं। मैथ्स एक एब्सट्रैक्ट सब्जेक्ट है जिससे बच्चों को एक समय के बाद इससे डर लगने लगता है।
महान गणितज्ञ रामानुजन की याद में मैथ्स डे : हर वर्ष 22 दिसंबर को महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की याद में राष्ट्रीय गणित दिवस मनाया जाता है। इसे मनाने का मुख्य उद्देश्य बच्चों-युवाओं को गणित के महत्व के प्रति जागरूक करना है। इसकी शुरुआत वर्ष 2012 में हुई, जब देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने चेन्नई में रामानुजन की 125वीं वर्षगांठ के मौके पर उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय गणित दिवस घोषित किया था। रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर, 1887 को चेन्नई से लगभग 400 किलोमीटर दूर इरोड नगर में हुआ था। इन्होंने 12 साल की उम्र में त्रिकोणमिति (ट्रिग्नोमेट्री) में महारत हासिल कर ली थी और बिना किसी की सहायता के खुद से कई प्रमेय (थ्योरेम्स) भी विकसित किए थे।3030 स्टेम प्रोग्राम से इनोवेटिव पढ़ाई : छात्रों में गणित, विज्ञान को लेकर रुचि उत्पन्न करने एवं उनमें तार्किक सोच विकसित करने के उद्देश्य से आइआइटी, गांधीनगर के ‘सेंटर फॉर क्रिएटिव लर्निंग’ ने हाल ही में पुणे के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एजुकेशन एवं केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के साथ मिलकर ‘3030 स्टेम प्रोग्राम’ शुरू किया है। इस इनोवेटिव ऑनलाइन लाइव एजुकेशन प्रोग्राम के अंतर्गत बच्चों को विभिन्न एक्टिविटीज व कहानियों के जरिये गणित के कॉन्सेप्ट समझाए जाते हैं। मसलन, ‘एडवेंचर्स ऑफ ए4 शीट’ नामक एक सत्र में बताया गया कि कैसे पेपर से क्षेत्रफल (एरिया), परिमिति (पेरीमीटर), आयतन (वॉल्यूम) ज्यामितीय अनुक्रम (ज्योमेट्रिक प्रोग्रेशन), अनुपात-समानुपात (रेशियो ऐंड प्रोपोर्शन), त्रिकोण (ट्रायंगल), अष्टकोण (ऑक्टागन), चतुर्भुज (स्क्वायर) एवं वर्गमूल (स्क्वायर रूट) के कॉन्सेप्ट को आसानी से समझा जा सकता है। इसी तरह, एक अन्य सत्र में कैलेंडर के जरिये छात्रों को स्पर्शरेखा (टैंजेंट्स), लीप ईयर, मैजिक स्क्वायर (सुडोकू) एवं आयत (रेक्टेंगल), औसत (एवरेज), माध्य-माध्यिका (मीन ऐंड मीडिएन),अंकगणितीय प्रगति (अरिथमेटिक प्रोग्रेशन) आदि के बारे में बताया गया। अच्छी बात यह है कि देश भर के स्टूडेंट्स, टीचर्स एवं पैरेंट्स इस प्रोग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं।Coronavirus: निश्चिंत रहें पूरी तरह सुरक्षित है आपका अखबार, पढ़ें- विशेषज्ञों की राय व देखें- वीडियो
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।