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बेईमान लोगों को धर्मस्थलों की आड़ में सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण से रोका जाए : दिल्ली HC

HC ने कहा कि सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि बड़ी संख्या में ऐसे मामले सामने आए हैं कि धर्मस्थलों की आड़ में सरकारी भूमि पर अधिकार का दावा किया जाता है। इस तरह के लोगों के प्रयासों को हतोत्साहित किया जाना चाहिए।

By JP YadavEdited By: Updated: Tue, 22 Dec 2020 08:53 AM (IST)
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दिल्ली हाई कोर्ट लीगल एड सोसायटी के पक्ष में जमा कराने का निर्देश दिया।
नई दिल्ली [विनीत त्रिपाठी]। दिल्ली हाई कोर्ट की न्यायमूर्ति प्रतिबा एम सिंह की पीठ ने दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) से कहा कि बेईमान लोगों को धर्मस्थलों की आड़ में सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण करने से रोका जाए। पीठ ने सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि बड़ी संख्या में ऐसे मामले सामने आए हैं कि धर्मस्थलों की आड़ में सरकारी भूमि पर अधिकार का दावा किया जाता है। इस तरह के लोगों के प्रयासों को हतोत्साहित किया जाना चाहिए। अधिकारियों का दायित्व है कि वह सुनिश्चित करें कि सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण करके धर्मस्थल न बनाए जाएं।

पीठ ने उक्त टिप्पणी करते हुए पटेल नगर स्थित चार मंदिरों को ध्वस्त करने से डीडीए को स्थायी रूप से प्रतिबंधित करने की मांग को खारिज कर दिया। पीठ ने कहा कि विचाराधीन भूमि सार्वजनिक भूमि है और वादी किसी भी राहत का हकदार नहीं है। पीठ ने इसके साथ ही याची पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाते हुए इसे दिल्ली हाई कोर्ट लीगल एड सोसायटी के पक्ष में जमा कराने का निर्देश दिया।

यह है मामला

याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि वह स्वामी ओंकारा नंद का शिष्य है जो कि चार मंदिरों का प्रबंधन व संचालन कर रहे थे। वादी ने कहा था कि मंदिर वर्ष 1960 के बने हैं और 1982 में स्वामी ओंकारा नंद की मृत्यु के बाद से उसके कब्जे में हैं। वहीं, डीडीए ने दावा किया कि पूरी जमीन सरकार की थी और वादी का कब्जा अवैध है। यह तर्क दिया गया था कि वादी का भूमि पर कोई अधिकार नहीं है और इस भूमि को 1982 में काठपुली कॉलोनीवासियों के पुनर्वास के लिए डीडीए को दिया गया था।

यहां पर बता दें कि दिल्ली के कई इलाकों में धार्मिक स्थलों के बहाने अतिक्रमण बड़ी समस्या है, जिसका खामियाजा आम लोगों को यातायात जाम के रूप में झेलना पड़ता है।

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