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Farmer Protests : उत्पादन लागत घटाकर निर्यात बढ़ा सकते हैं भारतीय किसान

Farmer Protests आइएआरआइ के निदेशक डॉ. एके सिंह ने बताया कि अगर भारतीय किसान समूह बनाकर खेती करेंगे तो विदेशों की मांग पूरी करना भी आसान होगा व अपने उत्पादों की मनचाही कीमत भी पाई जा सकेगी।

By JP YadavEdited By: Updated: Tue, 22 Dec 2020 12:20 PM (IST)
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विदेशों में आर्गेनिक उत्पादों को अधिक पसंद किया जाता है।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। नए कृषि कानून किसानों और खेतीबाड़ी के लिए बेहतरी की राह ही नहीं दिखाते, बल्कि भारतीय कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ाने का मार्ग भी प्रशस्त करते हैं। यही वजह है कि केंद्र सरकार ने दो सालों में यानी 2020 तक इस निर्यात को दोगुना करने का लक्ष्य रखा है। सरकार की कोशिश कृषि उत्पादों की उत्पादन लागत भी कम करने की है, ताकि किसानों का मुनाफा बढ़ सके। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आइएआरआइ) पूसा से मिली जानकारी के मुताबिक, भारतीय कृषि उत्पादों का सालाना निर्यात 38 बिलियन अमेरिकी डालर का है। केंद्र सरकार इसे 2022 तक दोगुना करके 66 बिलियन अमेरिकी डालर का करना चाहती है। लेकिन इसमें दो अड़चनें आ रही हैं। पहली यह कि परंपरागत खेती आधारित होने के कारण भारतीय कृषि उत्पादों की उत्पादन लागत कहीं ज्यादा बैठती है। इसी के चलते गैर बासमती चावल एवं चीनी को भी निर्यात करने के लिए सब्सिडी देनी पड़ती है। दूसरी तरफ इन उत्पादों में कीटनाशकों का प्रभाव भी रहता है, जबकि विदेशों में आर्गेनिक उत्पादों को अधिक पसंद किया जाता है।

आइएआरआइ के वरिष्ठ कृषि विज्ञानी डॉ. जेपीएस डबास ने बताया कि विदेशी बाजारों में भारतीय कृषि उत्पादों की काफी मांग है। वहां के लोग इनके लिए अच्छी कीमत भी देने को तैयार हैं। उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि मिडिल ईस्ट में हरी मटर और हरी मिर्च की बहुत मांग है। इसी तरह से बासमती चावल की यूरोप में काफी मांग है। बासमती केवल भारत और पाकिस्तान में उपजाया जाता है। यूरोप से मांग आ रही है कि उन्हें ऐसा बासमती चाहिए जो कीटनाशक मुक्त हो, लेकिन विडंबना यह कि भारत में कीटनाशकों का काफी प्रयोग होता है, जबकि पाकिस्तान में नहीं के बराबर रहता है। ऐसे में भारतीय किसान अगर तकनीक का प्रयोग नहीं करेंगे और संगठित होकर खेती नहीं करेंगे तो न ज्यादा मुनाफा कमा पाएंगे और न ही प्रतिस्पर्धा में टिक पाएंगे।

आइएआरआइ के निदेशक डॉ. एके सिंह ने बताया कि अगर किसान समूह बनाकर खेती करेंगे तो विदेशों की मांग पूरी करना भी आसान होगा व अपने उत्पादों की मनचाही कीमत भी पाई जा सकेगी। उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि पूर्वी उत्तर प्रदेश में किसानों ने समूह बनाकर ही किसानी एग्रो नाम से अपनी कंपनी बनाई है और मिडिल ईस्ट में हरी मटर एवं हरी मिर्च बेच रहे हैं। डॉ. एके सिंह कहते हैं कि तीनों नए कृषि कानून किसानों को सफलता के इसी पथ पर आगे बढ़ाते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि केंद्र सरकार किसानों के समूह बनाने की दिशा में ही 10 हजार फार्मर-प्रोडयूसर ऑर्गेनाइजेशन यानी एफओपी बनाने की योजना पर काम कर रही है।

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