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भीड़ तंत्र में तब्दील होता जा रहा है सिंघु बॉर्डर पर चल रहा किसान आंदोलन

विशेष वेशभूषा वाले निहंगों के करतब व उनके अच्छे नस्लों के घोड़ों को देखना किसी रोमांच से कम नहीं होता है। बहुत से लोग यहां लंगर छकते हैं या फिर उन दुकानों पर जुटे दिखते हैं जहां दवाइयों सहित अन्य दैनिक उपयोग की वस्तुएं मुफ्त में बांटी जातीं हैं।

By JP YadavEdited By: Updated: Tue, 22 Dec 2020 12:56 PM (IST)
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दवाइयों सहित अन्य दैनिक उपयोग की वस्तुएं मुफ्त में बांटी जातीं हैं।
नई दिल्ली [संजय सलिल]। नए कृषि सुधार कानूनों के विरोध में सिंघु बॉर्डर पर चल रहा किसानों का आंदोलन अब भीड़ तंत्र में तब्दील होता दिख रहा है। आंदोलन के 26 दिन पूरे हो चुके हैं, लेकिन इसमें शामिल होने वाले वास्तविक किसानों की संख्या निरंतर घटती जा रही है। आंदोलन में अब ऐसे लोग भीड़ को बढ़ा रहे हैं, जो आंदोलन के माहौल को देखने के लिए बच्चे व परिवार के अन्य सदस्यों के साथ पहुंच रहे हैं या फिर यार -दोस्तों के साथ। ऐसे लोग ज्यादातर समय निहंग सिखों के शिविर के पार जमे रहते हैं। वे उनकी वीडियो बनाते हैं और उनके साथ सेल्फी खिंचाते हैं। उनके लिए विशेष वेशभूषा वाले निहंगों के करतब व उनके अच्छे नस्लों के घोड़ों को देखना किसी रोमांच से कम नहीं होता है। इस रोमांच का अनुभव ही उन्हें आंदोलन में खींच कर ला रहा है। इसके अलावा बहुत से लोग धरना स्थल पर रुककर लंगर छकते हैं या फिर उन दुकानों पर जुटे दिखते हैं, जहां दवाइयों सहित अन्य दैनिक उपयोग की वस्तुएं मुफ्त में बांटी जातीं हैं।

भीड़ को बढ़ाने वालों में दिल्ली समेत हरियाणा- पंजाब के लोग भी शामिल हैं, जो आंदोलन का समर्थन करने नहीं कर रहे हैं। सिंघु बॉर्डर पर रेहड़ी पर फल बेचने वाले उत्तर प्रदेश के कुशीनगर के शिवम कहते हैं कि पहले से किसानों की संख्या में कमी आ रही है। खासकर उम्रदराज किसान वापस जा रहे हैं। अब तो वे लोग यहां ज्यादा पहुंच रहे हैं, जिन्हें यह आंदोलन तमाशे की तरह लगता है। शिवम की बातों को अपने दो बच्चों व पत्नी के साथ पहुंचे स्वरूप नगर इलाके में रहने वाले अमनदीप जैसे लोग भी तस्दीक करते हैं।

पूछने पर अमनदीप कहते हैं कि वह बच्चों को निहंगों को दिखाने के मकसद से आए हैं। कृषि कानूनों के विरोध के बाबत पूछे गए सवाल के जबाव में वह कहते हैं कि उन्हें कानूनों के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं है, हांलाकि केंद्र सरकार को किसानों की बात मान लेनी चाहिए। यहां मौजूद बिहार के पूर्णिया जिले के निवासी राम उदगार राय कहते हैं कि उन्हें व उनके साथ रहने वाले लोगों को रोज तरह-तरह का व्यंजन मिल रहा है। वह सिंघु बॉर्डर से चंद किलोमीटर की दूरी पर स्थित नरेला औद्योगिक क्षेत्र की एक फैक्टरी में काम करते हैं। यहां राम उदगार जैसे सैकड़ों लोगों के पहुंचने के पीछे का निहितार्थ कुछ और होता हैं। बहरहाल इनके निहितार्थ से आंदोलन में संख्या बल तो मजबूत जरूर हो रहा है।

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