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कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल बोले- जीएसटी में नए नियमों से व्यापारियों की बढ़ रही मुश्किलें

22 दिसंबर को जीएसटी के नियमों में धारा 86-बी जोड़कर यह प्रावधान किया गया है। इससे व्यापारियों में चिंता के साथ आक्रोश है। कोरोना वायरस संक्रमण के कारण आई परेशानियों से व्यापारी पहले से त्रस्त हैं। ऐसे में यह नया नियम व्यापारियों पर अतिरिक्त बोझ बनेगा।

By JP YadavEdited By: Updated: Sat, 26 Dec 2020 08:27 AM (IST)
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एक फीसद अनिवार्य वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के प्रावधान पर कड़ा एतराज जताया है।
नई दिल्ली [नेमिष हेमंत]। कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (Confederation of All India Traders) ने केंद्र सरकार द्वारा 50 लाख रुपये माह से अधिक का कारोबार करने वाले व्यापारियों पर एक फीसद अनिवार्य वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के प्रावधान पर कड़ा एतराज जताया है। इस मामले में कैट के पदाधिकारियों ने केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण (Union Finance Minister Nirmala Sitharaman) को पत्र लिखकर इसे हटाने की मांग की है। इसके साथ ही जीएसटी व आयकर में ऑडिट की रिटर्न भरने की आखिरी तिथि 31 दिसंबर को भी तीन माह आगे बढ़ाने की मांग की है। अपनी मांगों के बाबत कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल (National General Secretary of Confederation of All India Traders Praveen Khandelwal) ने बताया कि 22 दिसंबर को जीएसटी के नियमों में धारा 86-बी जोड़कर यह प्रावधान किया गया है। इससे व्यापारियों में चिंता के साथ आक्रोश है। कोरोना वायरस संक्रमण के कारण आई परेशानियों से व्यापारी पहले से त्रस्त हैं। ऐसे में यह नया नियम व्यापारियों पर अतिरिक्त बोझ बनेगा।

वहीं, प्रवीन खंडेलवाल ने यह भी कहा कि जीएसटी के नियमों में आए दिन संशोधनों से इसे जटिल बनाया जा रहा है, जो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'ईज आफ डूइंग बिजनेस' के सिद्धांत के खिलाफ है। बड़ा सवाल यह है कि व्यापारी व्यापार करें या फिर करों सहित अन्य कानूनों की पालना में उलझे रहें, जिससे उसका व्यापार प्रभावित हो रहा है। यही नहीं, अनेक नियमों से अधिकारियों को असीमित अधिकार दिए जा रहे हैं, जो भ्रष्टाचार को पनपाएंगे।

उन्होंने कहा कि फर्जी जीएसटी बिलों से राजस्व को चूना लगाने वाले लोगों के खिलाफ सख्ती से निपटना चाहिए, लेकिन इसकी वजह से दूसरे व्यापारियों का उत्पीड़न उचित नहीं है। अब समय आ गया है जब व्यापारियों को साथ लेकर जीएसटी कर प्रणाली की पूर्ण समीक्षा हो ताकि इसे सरल करके इसका दायरा बढ़ाया जा सके। इससे केंद्र व राज्य सरकारों का राजस्व बढ़े।

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