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Year End 2020: लॉकडाउन में इंसान को साफ हवा, पशु-पक्षियों को मिला नीला आसमान

दिल्ली में प्रदूषण के लिए पराली का धुआं और बायोमास जलना ही नहीं वाहनों का धुआं भी बहुत हद तक जिम्मेदार है। साल दर साल 5.81 फीसद की दर से राजधानी में निजी वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है।

By Mangal YadavEdited By: Updated: Sun, 27 Dec 2020 11:25 AM (IST)
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लाकडाउन के दौरान दिल्ली के आसमान में कुछ इस तरह की नीलिमा दिखाई देती थी। ’जागरण आर्काइव
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। पर्यावरण की दृष्टि से वर्ष 2020 कई मायनों में ऐतिहासिक रहा। सबसे बड़ी उपलब्धि तो यही रही कि इस साल पिछले सभी रिकार्ड तोड़ते हुए प्रदूषण लगभग शून्य के स्तर पर पहुंच गया। लाकडाउन के दौरान हवा ऐसी साफ हुई कि इंसान ही नहीं, पशु पक्षियों को भी नीला आसमान मिल गया। दूर की चीजें तक पास नजर आने लगीं। हर उम्र के लोगों ने खुलकर सांस ली। हर साल की तरह इस साल भी एनजीटी, ईपीसीए, सीपीसीबी ही नहीं बल्कि केंद्र और राज्य सरकार भी दिल्ली के प्रदूषण पर सजग नजर आई। विभिन्न एजेंसियों की शोध रिपोर्ट सामने आई, कई योजनाएं बनीं। साल के उत्तरार्ध में सबसे बड़ा घटनाक्रम यह रहा कि प्रदूषण नियंत्रण एवं पर्यावरण संरक्षण प्राधिकरण (ईपीसीए) को खत्म कर 18 सदस्यीय एक नया वायु गुणवत्ता नियंत्रण आयोग गठित कर दिया गया।

कोविड-19 संक्रमण के चलते मार्च में शुरू हुआ लाकडाउन जून तक चलता रहा। इंसान जहां घर में ‘कैद’ होकर रह गया वहीं दिल्ली एनसीआर ही नहीं, देश भर की तमाम गतिविधियां भी ठप हो गईं। इससे जो एक ऐतिहासिक फायदा हुआ, वह हवा से प्रदूषण गायब होने का रहा। आइटीओ से अक्षरधाम मंदिर तक साफ दिखाई देने लगा। साफ हवा का सकारात्मक असर यह भी रहा कि सांस के रोगी भी खुद को स्वस्थ महसूस करने लगे। धीरे धीरे अनलाक हुआ तो भी वायु प्रदूषण काफी हद तक नियंत्रण में रहा।

वायु प्रदूषण की टूटी कमर

दिल्ली में प्रदूषण के लिए पराली का धुआं और बायोमास जलना ही नहीं, वाहनों का धुआं भी बहुत हद तक जिम्मेदार है। साल दर साल 5.81 फीसद की दर से राजधानी में निजी वाहनों की संख्या बढ़ती जा रही है। यह संख्या एक करोड़ 10 लाख के आंकड़े को छू रही है। दिल्ली में सबसे अधिक करीब 71 लाख दोपहिया वाहन और करीब 33 लाख कारें पंजीकृत हैं। डीजल वाहनों की बात करें तो इनकी संख्या निजी वाहनों में अच्छी खासी है, जो प्रदूषण में इजाफे के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार है। स्पष्ट है कि वाहनों की इस बढ़ी हुई संख्या से वायुमंडल पर हो रहे असर को कतई नहीं नकारा जा सकता। शोध रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली के प्रदूषण में पीएम 10 के स्तर पर वाहनों से 14 फीसद और पीएम 2.5 के स्तर पर 25 से 36 फीसद प्रदूषण होता है।

वाहनों से प्रतिदिन निकलने वाली जहरीली गैस की मात्र

प्रदूषण कम करने में राज्य सरकार की भूमिका काफी मायने रखती है। जनसहयोग भी बहुत महत्वपूर्ण है, इसके लिए अभियान चलाया जाना चाहिए। जन जागरूकता जितनी बढ़ेगी, उतना ही लोगों से सहयोग मिलेगा। अगर ग्रेप को पूरी सख्ती से लागू किया जाए तो भी निश्चित तौर पर सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे। सभी स्तरों पर जिम्मेदारी तय कर दी जानी चाहिए। लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों पर सख्त एक्शन हो। कारण, ईपीसीए या सीपीसीबी प्लान तो बना सकते हैं, गाइडलाइंस दे सकते हैं, उन पर अमल कराना राज्य सरकारों का ही काम है। दिल्ली सरकार ने अगर इस दिशा में गंभीरता दिखाई है तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए।

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