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कांग्रेस ने किया 'गोलमाल', दिल्ली में सिर्फ किसान परिवार 40 हजार; कांग्रेस ने हस्ताक्षर कराए 1.5 लाख

नए कृषि कानूनों के खिलाफ राष्ट्रपति को दो करोड़ किसानों के जो हस्ताक्षर युक्त कागजात सौंपे गए हैं उनमें भी खासा गोलमाल देखने को मिला है। दिल्ली से हस्ताक्षर तो कराए गए हैं 1.5 लाख से ज्यादा जबकि इनमें आधे से ज्यादा हस्ताक्षर मजदूरों के हैं।

By JP YadavEdited By: Updated: Mon, 28 Dec 2020 10:20 AM (IST)
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दक्षिणी, मध्य और नई दिल्ली के इलाकों में तो न खेती है और न ही किसान।

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। देशभर के कई राज्यों के साथ राजधानी दिल्ली में भी लगातार जनाधार खोती जा रही कांग्रेस अब राष्ट्रीय मुददों पर भी जन समर्थन जुटा पाने में नाकाम साबित हो रही है। आलम यह है कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ राष्ट्रपति को दो करोड़ किसानों के जो हस्ताक्षर युक्त कागजात सौंपे गए हैं, उनमें भी खासा गोलमाल देखने को मिला है। दिल्ली से हस्ताक्षर तो कराए गए हैं 1.5 लाख से ज्यादा, जबकि इनमें आधे से ज्यादा हस्ताक्षर मजदूरों के हैं। तीनों कृषि कानूनों के विरोध में कांग्रेस की ओर से राष्ट्रपति को दो ट्रक में भरकर जो दो करोड़ किसानों के हस्ताक्षर पत्र दिए गए हैं, उनमें दिल्ली का भी हिस्सा है।

बताया जाता है कि दिल्ली कांग्रेस ने अपने सभी 14 जिलाध्यक्षों को 10-10 हजार किसानों या फिर खेतिहर मजदूरों से विरोध प्रपत्रों पर हस्ताक्षर कराने का दायित्व सौंपा था। पार्टी का दावा है कि उन्होंने तय लक्ष्य से भी ज्यादा यानी 1.5 लाख से भी अधिक किसानों के हस्ताक्षर युक्त पत्र अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआइआइसी) के सुपुर्द कर दिए, लेकिन दावों से परे यह सभी हस्ताक्षर किसानों के नहीं हैं। इतने तो दिल्ली में किसान भी नहीं हैं।

दिल्ली सरकार के राजस्व विभाग के मुताबिक, राजधानी में करीब 45 हजार हेक्टेयर भूमि पर खेती होती है। जबकि किसान परिवारों की संख्या 40 हजार के लगभग हैं। खेती भी सभी जिलों में नहीं बल्कि पूर्वी, बाहरी और पश्चिमी दिल्ली के ही कुछ हिस्सों में होती है। दक्षिणी, मध्य और नई दिल्ली के इलाकों में तो न खेती है और न ही किसान। पार्टी का कहना है कि कृषि कानूनों के विरोध पत्रों पर किसानों से ज्यादा खेतिहर मजदूरों के हस्ताक्षर कराए गए हैं, लेकिन सूत्रों के मुताबिक पर्दे के पीछे का सच यह है कि खेतिहर भी नहीं, ज्यादातर हस्ताक्षर उन मजदूरों या स्लम बस्तियों में रहने वाले उन लोगों के हैं, जिनका खेतीबाड़ी या कृषि कानूनों से कोई लेना देना नहीं है। जिलाध्यक्षों ने भी लक्ष्य पूरा करने के लिए जैसे तैसे, ऐरे गैरों के ही हस्ताक्षर कराकर बला टाल दी।

अनिल चौधरी (प्रदेश अध्यक्ष, दिल्ली कांग्रेस) के मुताबिक, दिल्ली में खेती ज्यादा नहीं होती, इसलिए किसान भी बहुत नहीं हैं। लेकिन हमने विरोध पत्रों में खेतिहर और आम मजदूरों सहित हर उस व्यक्ति के हस्ताक्षर कराए हैं जो कृषि कानूनों के खिलाफ हैं। बहुत से हस्ताक्षर ऐसे लोगों ने भी किए हैं जो किसान आंदोलन को अपना समर्थन देना चाहते हैं।

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