National Girl Child Day: बेटियों के बढ़ते कदमों ने नाप लिए हैं जल, थल और आकाश
भारतीय गणतंत्र में बेटियों के बढ़ते कदमों ने नाप लिए हैं जल थल और आकाश। 26 जनवरी 1950 को जब पहला गणतंत्र दिवस मनाया गया था तब क्या किसी ने कल्पना की होगी कि एक दिन ऐसा भी आएगा कि बेटियां परेड की कमान संभालेंगी।
By Vinay Kumar TiwariEdited By: Updated: Sun, 24 Jan 2021 06:27 PM (IST)
नई दिल्ली। भारतीय गणतंत्र में बेटियों के बढ़ते कदमों ने नाप लिए हैं जल, थल और आकाश। दुर्गम अभियानों से लेकर राजपथ पर गणतंत्र दिवस की परेड तक वे नेतृत्व कर रही हैं नए भारत का। देश का मान बढ़ा रही बेटियों पर मनु त्यागी की रिपोर्ट...
देश बेटियों की गर्वीली मिसालों से गदगद है। जिस फौज की नौकरी को सबसे जोखिम भरा समझा जाता है, आज बेटियां उसी में शामिल होकर न सिर्फ अपने माता-पिता बल्कि देश का भी मान बढ़ा रही हैं। 26 जनवरी 1950 को जब पहला गणतंत्र दिवस मनाया गया था तब क्या किसी ने कल्पना की होगी कि एक दिन ऐसा भी आएगा कि बेटियां परेड की कमान संभालेंगी।अब फ्लाइट लेफ्टिनेंट भावना कंठ को ही देखिए, जो इस गणतंत्र दिवस पर एयरफोर्स की झांकी में शामिल होने वाली प्रथम महिला फाइटर पायलट के रूप में इतिहास बनाने जा रही हैं। तिरंगे के साथ ही भारत की बेटियां शान से अपनी सफलता का परचम लहरा रही हैं।
शेरनी की दहाड़ से गूंजा आसमान
बीते दो साल से गणतंत्र दिवस परेड में परिधियों की बेड़ियों को तोड़ बेटियां इतिहास रच रही हैं। 2019 में पहली बार किसी बेटी ने 26 जनवरी की परेड मेंंं पुरुष सैन्य दल का नेतृत्व कर सशक्तीकरण और समानता की मिसाल कायम की थी। यह प्रेरणा बनी थीं लेफ्टिनेंट भावना कस्तूरी। उनके माता-पिता को रिश्तेदार बेटी को घर बैठाने या शादी करने की ही सलाह देते थे, लेकिन उन्होंने कभी किसी की नहीं सुनी और बेटी को खुला आसमान दिया।
ऐसी ही एक प्रेरणा 2020 में भी देश की बेटियों को मिली। वह गौरवांवित पल 2020 के गणतंत्र दिवस का ही तो है जब आत्मविश्वास से लबरेज एक बेटी रायसीना हिल्स पर परेड का नेतृत्व कर हर किसी की प्रेरणा बन गई थी। यह थीं तान्या शेरगिल, जिन्हें तान्या शेरनी की उपमा से भी खूब नवाजा गया था। शेरनी सी दहाड़ की गूंज भरी उनकी कमांड हमारे समाज में परिवर्तन का संदेश देते हुए घर-घर तक पहुंची थी।
माता-पिता बन रहे सारथी तान्या के पिता सूरत सिंह शेरगिल आज लगभग सालभर बाद भी उस पल का वृत्तांत ऐसे सुनाते हैं जैसे सब आंखों के सामने चल रहा हो। मूलरूप से पंजाब के होशियारपुर निवासी सूरत सिंह बताते हैं, ‘15 जनवरी को सेना दिवस के दिन तान्या का सुबह-सुबह फोन आया और उसने उस दिन की खासियत के बारे में पूछा। भला एक पिता उस पल को कैसे भूल सकता है जब उसकी बेटी ने इतिहास रचा हो।
दरअसल, 15 जनवरी 2020 को ही पहली बार तान्या ने सैन्य दल का नेतृत्व किया था। बेटियां अब मिसाल बन रही हैं, माता-पिता का ही नहीं देश का भी अभिमान बन रही हैं। मुझे आज भी याद है जब उसके भीतर धीरे-धीरे वर्दी के प्रति सम्मान और देश की रक्षा का भाव जगह बना रहा था। मैं सोचता था कि बेटी आइपीएस बनेगी, लेकिन उसने भी चार पीढ़ियों के देश के प्रति फर्ज को आगे निभाते हुए वर्दी को ही चुना।
वर्ष 2017 की बात है। उस समय मेरी पोस्टिंग नागपुर में थी और तान्या नागपुर यूनिवर्सिटी से इंजीनियरिंग कर रही थी। मैंने बातों ही बातों में कहा कि अब तो यूपीएससी की तैयारी शुरू करनी होगी। खैर कुछ दिनों बाद तान्या ने फोन पर बताया कि ‘पापा मैंने आर्मी की परीक्षा दी थी, उसमें मेरा चुनाव हो गया है।’ मैं हैरान रह गया। तान्या सहित इसकी चार सहेलियों ने एक साथ सेना को चुना। जिनमें तान्या और एक सहेली थलसेना में, बाकी एक नौसेना व एक वायुसेना में हैं।
कहने का मतलब है, अब बेटियां उन मिथकों को तोड़ रही हैं, जहां कहा जाता था कि ये काम बेटियों के नहीं हैं। सबसे खास बात है पहले कहा जाता था कि माता-पिता का नाम बेटा ही रोशन करेगा। अब तो समाज में माता-पिता को बेटियों के नाम से जानते हैं।’ सुनहरे भविष्य की भूमिका
कोरोना महामारी के इस चुनौती भरे दौर में भी बेटियों ने मंजिल हासिल करने के लक्ष्य को थमने नहीं दिया। तभी तो एक के बाद एक लड़ाकू विमान की उड़ान भरने वाली वायु और नौसेना की महिला अफसरों ने भी इतिहास रचा। देश की रक्षा को जल, नभ, थल हर छोर से नजर रखने का फर्ज निभाया सब लेफ्टिनेंट कुमुदिनी त्यागी और सब लेफ्टिनेंट रीति सिंह ने। ये दोनों ही बेटियां युद्धपोतों के डेक से संचालन करने वाली देश की पहली महिला एयरबॉर्न टेक्नीशियन बनीं।
सब लेफ्टिनेंट कुमुदिनी के पिता राजू त्यागी कहते हैं, ‘अब समय बदल रहा है। माता-पिता को चाहिए कि वे बेटियों को वही करने दें, जो वो चाहें। सोचिए यदि बेटियां ही नहीं होंगी तो परिवार और देश-समाज का क्या भविष्य होगा। आज जिस तरह बेटियां नित नए मुकाम रचकर प्रेरणा बन रही हैं, उससे बेटियों का भविष्य सुनहरा होगा।’ वर्ष 2020 में ही भारतीय नौसेना ने इतिहास का अध्याय रचते हुए डार्नियर विमान पर मैरीटाइम(समुद्री) टोही (एमआर) मिशन पर पहली बार महिलाओं को भेजा।
लेफ्टिनेंट शिवांगी के पिता हरिभूषण सिंह के मुताबिक, ‘अब बेटियों के प्रति नजरिया बदल रहा है। मैं मुजफ्फरपुर से हूं। बेटियों को शिक्षित करने की लालसा अब मैं गांव स्तर पर अन्य अभिभावकों में देख रहा हूं। अभी दिसंबर माह में शिवांगी छुट्टियों में घर आई तो आस-पास के गांवों की बेटियां उससे मिलने आ रही थीं, उसे देखने नहीं बल्कि यह पूछने कि दीदी इस मुकाम तक उन्हें भी पहुंचना है, इसके लिए क्या करना होगा? यही तो बदलाव की बयार है।
अब बेटियां स्कूल में ही बड़े सपने संजो रही हैं और उनकी इस उड़ान में माता-पिता भी भरपूर सहयोग कर रहे हैं।’ दरभंगा जिले के बाऊर गांव की बेटी फ्लाइट लेफ्टिनेंट भावना कंठ के पिता तेजनारायण कंठ बताते हैं, ‘सिर्फ घर-परिवार ही नहीं, पूरा गांव रायसीना हिल्स पर परेड में बेटी को देखने को उत्साहित है। निरंतर एक के बाद एक बेटियों की ये कामयाबियां निश्चित ही एक सुनहरे उज्ज्वल देश की भू्मिका लिख रही हैं।’ Coronavirus: निश्चिंत रहें पूरी तरह सुरक्षित है आपका अखबार, पढ़ें- विशेषज्ञों की राय व देखें- वीडियो
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