26 January Violence: पहले जख्म, अब आरोपों के खंजर से डबडबाईं पुलिसकर्मियों की आंखें
कांस्टेबल अमित भाटी ने बताया कि उपद्रवियों ने मेरे ऊपर ट्रैक्टर चढ़ाया फिर लाठी से हमला किया। हमले से मेरा हेलमेट टूट गया। जान बचाने के लिए लाल किला की खाई में कूदा जिससे मेरा पैर टूट गया। मैं भी किसान परिवार से ताल्लुक रखता हूं।
नई दिल्ली [नेमिष हेमंत]। पहले गणतंत्र दिवस पर जिंदगी भर का न भूल पाने वाला जख्म मिला और अब आरोपों के बेतहाशा खंजर चलाए जा रहे हैं। इससे घायल पुलिसकर्मियों के साथ उनके स्वजन मर्माहत हैं। दर्द इतना बढ़ गया कि शरीर पर जख्म लिए कई पुलिसकर्मी समाज के सामने आ गए और डबडबाई आंखों से पूछा कि अपने फर्ज को निभाना और अपनी जान को हथेली पर रखकर लोगों की हिफाजत करना क्या अपराध है? उन्होंने कहा कि कुछ लोग ये आरोप लगा रहे हैं कि पुलिस ने उपद्रवियों से सख्ती से नहीं निपटा, लेकिन जरा सोचें यदि पुलिस संयम न दिखाती और पलटवार कर देती क्या हाल होता।
शनिवार को शहीद दिवस पर आइटीओ स्थित जेपी पार्क में माहौल गमगीन होने के साथ आक्रोश से भरा हुआ था। यहां सैकड़ों की संख्या में पुलिसकर्मी और उनके स्वजन जुटे। उन्होंने आंदोलन के नाम पर सियासत कर रहे लोगों से पूछा कि क्या आंदोलन ऐसा होता है, जिसमें राष्ट्र के प्रतीकों का ही अपमान हो। अराजकता का नंगा नाच हो। फिर खुद ही उसका जवाब देते हुए कहा ‘ये किसान नहीं हो सकते हैं। किसान तो देश व देश के लोगों का दुश्मन कभी नहीं हो सकता। पशु-पक्षियों तक से प्यार करने वाला किसी इंसान के जान का प्यासा नहीं हो सकता है। ट्रैक्टर परेड के दौरान अधिकतर नशा किए हुए थे।
यह विरोध-प्रदर्शन दिल्ली पुलिस महासंघ के बैनर तले था। इसमें राष्ट्र को कलंकित करने वाली ट्रैक्टर परेड के दौरान उपद्रव में जान की बाजी लगाकर सुरक्षा में तैनात रहे पुलिसकर्मियों के साथ उनकी मां, बहन, पत्नी, भाई के साथ मासूम बच्चे भी शामिल थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की तस्वीर के साथ पुलिसकर्मियों के स्वजन हाथों में ‘हम किसी के दुश्मन नहीं, हमारा काम है शांति व्यवस्था बनाए रखना और हम हर हाल में वही करते हैं।’ लिखे हुए प्लेकार्ड थे।
कांस्टेबल संदीप ने बताया कि वह मूलरूप से शामली के रहने वाले हैं। टूटे हाथ पर प्लास्टर चढ़ाए पत्नी अंजलि, भाई विकास, प्रदीप व सुशील और बहन कविता के साथ आया हूं। पुलिस ने काफी संयम से काम लिया। हमें आदेश था कि हर हाल में कलाकारों और आम लोगों की भीड़ से रक्षा करना है। अगर हम लोगों ने भी पलटकर जवाब दिया होता तो आज और बुरा हाल होता।
कांस्टेबल अमित भाटी ने बताया कि उपद्रवियों ने मेरे ऊपर ट्रैक्टर चढ़ाया, फिर लाठी से हमला किया। हमले से मेरा हेलमेट टूट गया। जान बचाने के लिए लाल किला की खाई में कूदा, जिससे मेरा पैर टूट गया। मैं भी किसान परिवार से ताल्लुक रखता हूं। पर ऐसा किसान नहीं जो बेवजह जवानों के खून का प्यासा बन जाए। प्रदर्शनकारियों के मुंह से शराब की बू आ रही थी, जितने भी टकराये सभी नशे में थे।
पांसी देवी ने कहा कि मैं, राजस्थान के किसान परिवार से हूं। मेरे पति दिल्ली पुलिस में हैं। हमला करने वाले किसान कतई नहीं हो सकते हैं। अगर पुलिस उपद्रवियों सख्ती करती तो आज देश में इस तरह की शांति नहीं होती। हम शुक्रगुजार हैं कि हमारे पुलिस परिवार ने धैर्य की वह मिसाल पेश की है, जिसको पीढ़ियां याद रखेंगी।
वहीं, गीता देवी ने कहा कि मेरा गांव राकेश टिकैत के गांव के बगल है। मेरे पति, बेटा व बेटी दिल्ली पुलिस में हैं। हम चाहते हैं कि यह आंदोलन शांतिपूर्वक हो, लेकिन ये लोग तो किसान हैं ही नहीं। ये अराजक तत्व हैं। अगर फिर से इन दंगाइयों की भीड़ ने कायराना हमला किया तो हम भी अपनों को बचाने के लिए सख्ती से पेश आएंगे।
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