...मंद होती गई उजाले की लौ, यक्ष सवालों में उलझी केजरीवाल ब्रिगेड
क्या वर्ष 2011 में रामलीला मैदान में मौन रूप से लिया गया केजरीवाल का संकल्प पूरा हो सका है ?
नई दिल्ली [ रमेश मिश्र ]। प्रचंड बहुमत के साथ 14 फरवरी 2015 को दिल्ली की सत्ता पर दूसरी बार काबिज हुई आम आदमी पार्टी के लिए भले ही दिल्ली विधानसभा चुनाव अभी दूर हो, लेकिन सरकार के तीन वर्ष पूरे करने पर विपक्ष ने उन्हें घेरना शुरू कर दिया है। आप सरकार के चुनावी वादों के साथ यहां कई यक्ष सवाल भी मौजूद हैं। मसलन, क्या केजरीवाल दशकों पुरानी सियासी व्यवस्था को ध्वस्त करने के अपने प्रमुख मिशन में कामयाब हो सके हैं ? क्या बदलाव की लहर लेकर आने वाली आम आदमी पार्टी परिवर्तन लाने में सफल हुई है ? क्या भ्रष्टाचार पर अंकुश पाया जा सका है ? क्या वर्ष 2011 में रामलीला मैदान में मौन रूप से लिया गया केजरीवाल का संकल्प पूरा हो सका है ? पेश है रामलीला मैदान से सत्ता के सिंहासन तक पहुंची 'आप' के सात वर्षों के सफर का और दामन पर लगे दागों का लेखाजोखा -
वर्ष 2011 में दिल्ली के रामलीला मैदान का संकल्प
वर्ष 2011 में देश की राजधानी में एक ऐसे सामाजिक आंदोलन का सूत्रपात हुआ, जिसने देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ने का संकल्प लिया। भ्रष्टाचार के खिलाफ दिल्ली का रामलीला मैदान आंदोलन का कुरुक्षेत्र बन गया था। यहां के प्रांगण में हजारों जलती मशालों ने केंद्र की कांग्रेस सरकार को परेशानी में डाल दिया था। महाराष्ट्र से आए इस आंदोलन के कर्ताधर्ता और गांधीवादी नेता अन्ना हजारे रातों-रात लोगों की उम्मीद बन चुके थे। इस गांधीवादी नेता ने पूरे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ जो अलख जगाई, उसने दिल्ली के सिंहासन पर काबिज कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया।
उस वक्त भ्रष्टाचार सामाजिक बुराई के साथ-साथ एक बड़ी राजनीतिक समस्या बन चुकी थी। ऐसे में अन्ना आंदोलन से जुड़ी एक युवा ब्रिगेड ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता के बीच जाने का मूड बना लिया था। हालांकि, इस मामले में अन्ना की रजामंदी नहीं थी। वह भ्रष्टाचार को सामजिक आंदोलन तक सीमित रखना चाहते थे। अन्ना की मुखालफत के बावजूद 26 नवंबर 2012 को देश के राजनीतिक इतिहास में एक नई पार्टी की नींव पड़ी जिसने अन्ना के सामाजिक आंदोलन को राजनीतिक आंदोलन का मूर्त रूप दिया।
2013 के विधानसभा चुनाव में पहली बार राजनीतिक दंगल में उतरी AAP
राजनीतिक शुचिता और भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता के बीच उतरे अरविंद केजरीवाल की चुनौतियां बड़ी थी। लोगों की उम्मीदें अधिक थीं। मुद्दे बड़े थे। वर्ष 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव का बिगुल बज गया था। देश के प्रमुख सियासी दलों ने इस नवोदित दल को भले ही तवज्जो नहीं दी, लेकिन आम जनता ने उसे स्वीकार किया। केजरीवाल के संकल्प को सराहा गया। आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों में से 28 पर अपनी जीत दर्ज की। यह जीत आम आदमी की थी। भ्रष्ट और घिसीपिटी राजनीति से उकता चुके आम आदमी के लिए उम्मीद की एक किरण जगी।
सियासत के सारे समीकरण धरे के धरे रह गए। लेकिन सत्ता पाने की होड़ और बेचैनी ने अन्ना से जुड़ी इस युवा बिग्रेड ने कांग्रेस से हाथ मिला लिया। हालांकि, लोकपाल मुद्दे पर रामलीला मैदान में कांग्रेस से महासंग्राम को दिल्ली की जनता भूली नहीं थी। लेकिन विराधियों से हाथ मिलाकार केजरीवाल ने राजनीति की उस कहवात को चरितार्थ कर दिया कि 'राजनीति में न कोई स्थायी दोस्त होता है न ही दुश्मन।' आखिरकार जोड़तोड़ से आप ने दिल्ली की सत्ता हासिल की। युवा अरविंद केजरीवाल दिल्ली के सातवें मुख्यमंत्री बने। 49 दिनों तक सत्ता में रहने के बाद 14 फरवरी 2014 को लोकपाल के मुद्दे पर केजरीवाल की सरकार ने त्यागपत्र दे दिया।
वर्ष 2015 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में मिली बंपर सहानुभूति
मुख्यमंत्री पद से त्यागपत्र देने के बाद केजरीवाल ने आम आदमी की खूब सहानुभूति बटोरी। केजरीवाल का यह त्यागपत्र आम जनता को खूब भाया। अब बारी थी इस सहानुभूति को वोट बैंक में तब्दील करने की। त्यागपत्र देने के एक साल बाद दिल्ली विधानसभा के चुनाव की घोषण हुई। इस चुनाव में आप की झाड़ू ने सबका पत्ता साफ कर दिया। 70 विधानसभा सीटों में हुए चुनाव में 67 सीटों पर आप उम्मीदवार विजयी हुए। विपक्ष के नाम पर मात्र तीन सदस्य ही दिल्ली में विजयी हुए।
यह आम आदमी की उम्मीदों की बड़ी जीत थी। आज जब दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार को तीन साल पूरे हो चुके हैं यानी अब आप सरकार के पास 2 साल या 40 फीसद समय बचा है और 60 फीसद समय निकल चुका है। ऐसे में सरकार द्वारा किए गए वादों के साथ यह भी देखना जरूरी है कि इस ब्रिगेड ने राजनीतिक शुचिता और नए राजनीतिक मूल्यों की स्थापना में कोई कदम उठाया या नहीं जो रामलीला मैदान में लिए गए थे। लेकिन अगर रिपोर्ट कार्ड पर नजर दौडाएं तो आप सरकार के एक दर्जन मंत्रियों के दामन पर दाग लग चुका है।
केजरीवाल समेत ब्रिगेड के दामन पर लगे दाग
1- मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर लगा साढ़ू को लाभ दिलाने का आरोप। केजरीवाल पर साढ़ू सुरेंद्र बसल (दिवंगत) को लोक निर्माण विभाग के कार्यों के फर्जी बिलों के भुगतान दिलाने का आरोप है। इस मामले में हुई एफआइआर में मुख्यमंत्री का भी नाम है। वहीं, पूर्व जल मंत्री कपिल मिश्रा केजरीवाल को दो करोड़ रुपये लेते हुए देखने का आरोप लगा चुके हैं।
2- टॉक टू एके के आयोजन में सिसोदिया के खिलाफ जांच। आरोप है कि जनता से रूबरू होने के लिए आयोजित किए गए मुख्यमंत्री के कार्यक्रम टॉक टू एके के लिए अनुमति नहीं ली गई। नियमों की धज्जियां उड़ाकर इस कार्यक्रम के आयोजन की जिम्मेदारी एक कंपनी को दे दी गई। इस मामले की जांच सीबीआइ कर रही है।
3- आसिम अहमद केजरीवाल सरकार में खाद्य आपूर्ति मंत्री थे। उन पर अपने इलाके में एक निर्माण के मामले में बिल्डर से रिश्र्वत मांगने का आरोप। गोपाल राय के खिलाफ प्रीमियम बस सेवा शुरू करने के लिए तैयार की गई योजना में गड़बड़ी किए जाने का आरोप है। कानून व पर्यटन मंत्री रहे जितेंद्र सिंह तोमर फर्जी डिग्री मामले में फंसे। पूर्व खाद्य मंत्री आसिम अहमद खान, विधायक अमानतुल्ला खान भी भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे हैं।
4- आप' सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्री संदीप कुमार को सेक्स स्कैंडल के आरोप में फंसे।
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