कहीं राजनीति की भेंट न चढ़ जाए सीसीटीवी कैमरा योजना
-सीएम द्वारा फाड़ी गई उपराज्यपाल की कमेटी की रिपोर्ट में है सीसीटीवी कैमरों के संचालन की
संजीव गुप्ता, नई दिल्ली :
दिल्लीवासियों की सुरक्षा से सीधे जुड़ी राजधानी में सीसीटीवी कैमरे लगाने की योजना राजनीति में घिरती नजर आ रही है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने उपराज्यपाल अनिल बैजल द्वारा गठित कमेटी की रिपोर्ट फाड़कर इस योजना को राजनीतिक रंगत दे दी है। सरकार जहां दिल्ली की जनता को ढाल बनाकर इस रिपोर्ट के विरोध का राजनीतिक लाभ लेना चाह रही है, वहीं राजनिवास ने साफ किया है कि दिल्ली सरकार की आपत्तियां बेजा हैं। राजनिवास के अनुसार, जो मुद्दे हैं ही नहीं, उन्हें तिल का ताड़ बनाकर प्रस्तुत किया जा रहा है और योजना के तार्किक पहलू नजरअंदाज किए जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में महिलाओं की सुरक्षा के लिए दिल्ली में दस लाख सीसीटीवी कैमरे लगाने का वादा किया था। हालांकि साढ़े तीन साल तक सरकार अपना यह वादा भूली रही। वर्ष 2018 की शुरुआत में जब उपराज्यपाल अनिल बैजल ने दिल्ली में पहले से लगे हुए सीसीटीवी कैमरों को लेकर एक समीक्षा बैठक बुलाई तो इस मुद्दे पर राजनिवास की सक्रियता दिल्ली सरकार को नागवार गुजरी। उसके बाद से सरकार इस योजना को लेकर सक्रिय हो गई।
क्या चाहते हैं मुख्यमंत्री
केजरीवाल चाहते हैं कि ये सीसीटीवी कैमरे विधायकों द्वारा दी गई सूची में सुझाए गए स्थानों पर ही लगें। कैमरे लगाने के बाद इनका संचालन कैसे होगा, अपराध पर लगाम लगाने में इनका लाभ कैसे लिया जा सकेगा, इसपर कोई होमवर्क नहीं किया गया है। मुख्यमंत्री की आपत्ति
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का कहना है कि वह पिछले साढ़े तीन साल से दिल्ली में सीसीटीवी कैमरे लगाना चाह रहे हैं, लेकिन लगाने नहीं दिया जा रहा। उनके अनुसार, उपराज्यपाल द्वारा गठित कमेटी की रिपोर्ट कहती है कि इसके लिए पुलिस से लाइसेंस लेना पड़ेगा। पुलिस से हथियारों के लाइसेंस तो दिए नहीं जाते तो सीसीटीवी कैमरे के लाइसेंस वह कैसे देगी? लोगों की सुरक्षा के लिए लगाए जा रहे सीसीटीवी कैमरों के बारे में कोई भी निर्णय लेने का अधिकार सिर्फ दिल्ली की जनता को है। इसमें उपराज्यपाल, दिल्ली पुलिस और भाजपा का कोई काम नहीं है। केजरीवाल का मानना है कि सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने का विषय उपराज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में आने वाले भूमि, कानून-व्यवस्था व पब्लिक ऑर्डर के तहत नहीं आता। यह पूर्ण रूप से दिल्ली सरकार के कार्यक्षेत्र का विषय है। हालांकि, राजनिवास सूत्रों का मानना है कि सीसीटीवी कैमरे का मामला कानून-व्यवस्था से जुड़ा हुआ है। उपराज्यपाल द्वारा गठित कमेटी की रिपोर्ट करती है व्यवस्था की बात
विगत 8 मई को उपराज्यपाल द्वारा इसी संबंध में गठित उच्चस्तरीय कमेटी की रिपोर्ट सरकार की सोच से अलग राय रखती है। द दिल्ली रूल्स फॉर रेग्यूलेशन ऑफ सीसीटीवी कैमरा सिस्टम इन एनसीटी ऑफ दिल्ली-2018 शीर्षक से तैयार इस रिपोर्ट में सीसीटीवी कैमरों का संचालन और नियंत्रण दिल्ली सरकार नहीं, बल्कि दिल्ली पुलिस को सौंपने की सिफारिश की गई है। पुलिस उपायुक्त (लाइसेंसिंग) को इसका पूरा दायित्व सौंपने की अनुशंसा के साथ यह तर्क भी दिया गया है कि सीसीटीवी कैमरे से एकत्रित सूचनाओं, फुटेज और आंकड़ों पर पुलिसकर्मी ही नियंत्रण कर सकते हैं। यदि यह कार्य सरकार अथवा विधायकों के हाथ में रहा तो इसका दुरुपयोग भी संभव है। ऐसे निजता भंग होने का संदेह
उपराज्यपाल द्वारा गठित कमेटी के अनुसार, सार्वजनिक स्थानों में खंभे भी हो सकते हैं, कॉलोनी के गेट भी, सरकारी इमारतें भी हो सकती हैं, चौक-चौराहे और पार्क भी। इन सभी के आसपास लोगों के घर और दफ्तर भी हैं। ऐसे में ये सीसीटीवी कैमरे किसी की बालकनी, स्नानघर, शौचालय की ओर की तस्वीरें भी ले सकते हैं। वैसे भी पहले चरण में सरकार दिल्ली में 1.40 लाख कैमरे लगाना चाह रही है। हर विधायक से उसके विधानसभा क्षेत्र की ऐसी दो हजार जगहों की सूची भी मांगी गई है, जहां सीसीटीवी कैमरे लगेंगे। इतनी अधिक जगहों में सीसीटीवी कैमरे लगे होने से आसपास के घरों में रह रहे लोगों की निजता भंग होने का संदेह हर समय बना रहेगा। राजनिवास की आपत्ति जायज
राजनिवास का कहना है कि दिल्ली में इस समय भी दो लाख से अधिक सीसीटीवी कैमरे लगे हुए हैं। लेकिन कोई तालमेल न होने और किसी की जिम्मेदारी तय न होने से इनका कोई लाभ नहीं हो पा रहा है। जरूरत के वक्त या तो वे खराब मिलते हैं और यदि सही भी होते हैं तो उनकी फुटेज उपलब्ध नहीं हो पाती। ऐसे में जो गलती पहले हुई, उसका दोहराव नहीं होना चाहिए।
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सीसीटीवी कैमरे लगाए जाने चाहिए, लेकिन इसकी एक व्यवस्था भी होनी चाहिए। कौन संचालन करेगा, कौन निगरानी करेगा, फुटेज किस आधार पर किसे और कौन उपलब्ध कराएगा इत्यादि। हालांकि कमेटी की रिपोर्ट अभी ड्राफ्ट स्टेज में है। उस पर सुझाव और आपत्तियां मांगी गई हैं। अभी कुछ फाइनल नहीं किया गया है।
-अनिल बैजल, उपराज्यपाल, दिल्ली