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झुग्गी के बच्चों का भविष्य संवार रहे सत्येंद्र

अकसर कहा जाता है शिक्षा की असल कद्र वही करना जानता है, जो अशिक्षित होता है। कुछ लोग वक्त व हालात के आगे शिक्षा हासिल नहीं कर पाते हैं। वहीं कुछ ऐसे लोग होते हैं जो तमाम मुश्किलों का सामना कर शिक्षा हासिल करते हैं और उससे उन लोगों के जीवन में उजियारा भरते हैं, जिन्हें स्कूल देखना भी नसीब नहीं हुआ।

By JagranEdited By: Updated: Mon, 31 Dec 2018 07:16 PM (IST)
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झुग्गी के बच्चों का भविष्य संवार रहे सत्येंद्र

शुजाउद्दीन, पूर्वी दिल्ली : अकसर कहा जाता है शिक्षा की असल कद्र वही करना जानता है, जो अशिक्षित होता है। कुछ लोग वक्त व हालात के आगे शिक्षा हासिल नहीं कर पाते हैं। वहीं कुछ ऐसे लोग होते हैं जो तमाम मुश्किलों का सामना कर शिक्षा हासिल करते हैं और उससे उन लोगों के जीवन में उजियारा भरते हैं, जिन्हें स्कूल देखना भी नसीब नहीं हुआ।

हम बात कर रहे हैं मयूर विहार फेज-1 स्थित यमुना खादर की झुग्गियों में गरीब बच्चों को निशुल्क शिक्षा देने वाले सत्येंद्र पाल (23) की। झुग्गियों में रहने वाले बच्चे हों या बड़े, सभी सत्येंद्र पाल को गुरु कहते हैं। सत्येंद्र के पास सिर छुपाने के लिए एक छोटी-सी झोपड़ी है, जहां वह परिवार के पांच सदस्यों के साथ रहते हैं। झोपड़ी में परिवार के सदस्य ठीक से नहीं रह पाते हैं तो बच्चों को कैसे पढ़ाएंगे। ऐसी स्थिति में सत्येंद्र बच्चों को कभी खाली मैदान में पढ़ाते हैं तो कभी मेट्रो के गाटर में सफेद बोर्ड लगाकर अपनी पाठशाला शुरू कर देते हैं। वह हर रोज 200 से अधिक बच्चों को पढ़ाते हैं। सत्येंद्र ने बताया कि वह मूल रूप से उत्तर प्रदेश के बदायूं के रहने वाले हैं। उनके पिता कन्ही लाल दिव्यांग हैं। बदायूं में परिवार खेती करता था, लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण 2012 में पूरा परिवार दिल्ली के मयूर विहार में आकर बस गया। यहां सत्येंद्र ने पिता के साथ मिलकर तीन वर्ष तक खेती की, लेकिन एक दिन यमुना में ऐसी बाढ़ र्आ, जिससे पूरी फसल ही बर्बाद हो गई। उन्होंने बताया कि उसी दौरान 2016 में यूथ बुद्धिस्ट सोसायटी ऑफ इंडिया ने उन्हें आठ महीने के प्रशिक्षण के लिए नागपुर (महाराष्ट्र) भेजा। यहां उन्हें बुद्धिज्म और डॉ. भीम राव आंबेडकर के विचारों के बारे में पढ़ाया गया। इस प्रशिक्षण के लिए विश्व से 80 लोगों को चुना गया था, जिसमें सत्येंद्र भी मौजूद रहे। सत्येंद्र ने बताया कि यहां प्रशिक्षण के दौरान उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि शिक्षा कितनी जरूरी है। न जाने कितने बच्चे आर्थिक तंगी के कारण शिक्षा हासिल नहीं कर पाते हैं। प्रशिक्षण पूरा होने के बाद 2016 से ही वह बच्चों को निशुल्क शिक्षा देने में जुट गए। जहां पर वह रहते हैं, वहां पर शिक्षित कम हैं। सत्येंद्र ने बताया कि अपने पूरे परिवार में वही शिक्षित हैं। बदायूं में रहकर उन्होंने 12वीं तक की पढ़ाई की। दिल्ली आकर उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी। कोई उन्हें यह बताने वाला नहीं था कि आगे क्या पढ़ाई करें। सत्येंद्र ने बताया कि वह बच्चों को सुबह और शाम चार चार घंटे पढ़ाते हैं और खुद भी आगरा विश्वविद्यालय से पत्राचार से बीएससी की पढ़ाई कर रहे हैं। बीच में समय मिलने पर खेतों में काम करते हैं। सत्येंद्र का मानना है कि ज्ञान को जो व्यक्ति जितना बांटेगा, उसका ज्ञान उतना ही बढ़ेगा।

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