पर्यावरण बचाने को पारंपरिक तरीकों पर दें जोर
दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ. भीमराव अंबेडकर कॉलेज में पर्यावरण की चुनौतियां और न्यू इंडिया विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी की शनिवार को शुरूआत हुई। सीएसआइआइआर, नेशनल एनवायरमेंटल इंजीनिय¨रग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी), नेशनल एनवायरमेंट साइंस एकेडमी, दिल्ली (एनईएसए)
By JagranEdited By: Updated: Sat, 02 Jun 2018 09:06 PM (IST)
जागरण संवाददाता, पूर्वी दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय के डॉ. भीमराव अंबेडकर कॉलेज में पर्यावरण की चुनौतियां और न्यू इंडिया विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी की शनिवार से शुरुआत हुई। इसमें देश के 22 शहरों से आए 100 से भी ज्यादा पर्यावरणविद, वैज्ञानिक, पर्यावरण संरक्षक और शोधार्थी शोध-पत्र और विचार प्रस्तुत कर रहे हैं।
दरअसल, संयुक्त राष्ट्र के विश्व पर्यावरण दिवस-2018 की थीम प्लास्टिक प्रदूषण पर रोकथाम है। डॉ. भीमराव अंबेडकर कॉलेज इसी अभियान से जुड़कर संगोष्ठी का आयोजन कर रहा है। कॉलेज की यह पहल संयुक्त राष्ट्र के अभियान के साथ औपचारिक रूप में दर्ज है। जल पुरुष राजेंद्र ¨सह ने कहा कि दुनिया के जितने देशों में अभी आपसी तनाव चल रहे हैं, उसके मूल में पानी पर कब्जे की रस्साकशी है। भारत में अभी जो विस्थापन है, वो गांव से शहरों की तरफ है। यही स्थिति बनी रही तो शहर का भविष्य भी सुरक्षित नहीं रहेगा। राजस्थान में जलाशयों और नदियों को ¨जदा करने के जमीनी काम की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि पिछले वर्ष पेरिस की सड़कों पर हमने पानी के सवाल को लेकर प्रदर्शन किया, उसका नतीजा यह हुआ कि अब पर्यावरण के सवाल के तहत पानी से जुड़े मुद्दे भी संयुक्त राष्ट्र की ¨चता में शामिल कर लिए गए हैं। पानी बचाने के लिए हमें हर हाल में भारत के पारंपरिक तरीके की तरफ लौटना होगा। वहीं, कॉलेज के ¨प्रसिपल डॉ. जीके अरोड़ा ने कहा कि 21वीं सदी जल संकट से जूझने की सदी होने जा रही है और यह पूरी दुनिया के लिए गंभीर चुनौती होगी। इस स्थिति को देश के युवा समझें। यह कार्यक्रम काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (सीएसआइआर) , नेशनल एनवायरमेंटल इंजीनिय¨रग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी), नेशनल एनवायरमेंट साइंस एकेडमी, दिल्ली (एनईएसए) और एनवायरमेंटल एंड सोशल डेवलपमेंट एसोसिएशन, दिल्ली (ईएसीडीए) जैसे अंतरराष्ट्रीय ख्याति के संस्थानों के सहयोग से आयोजित किया जा रहा है। पर्यावरण संकट से निपटने का करनी होगी ज्यादा मेहनत
इंटरनेशनल ज्योग्राफिकल यूनियन के महासचिव प्रो. आरबी. ¨सह (दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स, डीयू) ने कहा कि जब तक इस देश को गरीबी, बेरोजगारी, सामाजिक भेदभाव और पर्यावरण विघटन से रोका नहीं जाएगा, न्यू इंडिया की कल्पना करना जोखिम भरा काम है। पर्यावरण संकट से घिरा कोई भी देश बेहतर भविष्य के सपने देखता है तो उसे बाकी देशों से कई गुना ज्यादा मेहनत करने की जरूरत है। इसके लिए जरूरी है कि विकास के लिए आजीविका और पर्यावरण संरक्षण के जो पारंपरिक, सामुदायिक व ग्रामीण स्तर के तरीके हैं, उन्हें भी अपने साथ लेकर चलें।
प्लास्टिक मुक्त परिवेश बनाने की है दरकार
एनवायरमेंट एंड डेवलपमेंट एसोसिएशन की कार्यकारी निदेशक गीतांजलि कौशिक ने कहा कि इस विमर्श को पर्यावरण जागरूकता अभियान का रूप दिया जाए तो ज्यादा बेहतर होगा। नेशनल एनवायरमेंटल साइंस एकेडमी, दिल्ली के अध्यक्ष एवं पर्यावरणविद् प्रो. जावेद अहमद ने कहा कि हमें प्लास्टिक मुक्त परिवेश की दिशा में गंभीरता से काम करने की जरूरत है। सीएसआइआर-नीरी, दिल्ली जोन सेंटर के वैज्ञानिक एवं प्रमुख एसके गोयल ने कहा कि व्यक्तिगत एवं सामुदायिक प्रयासों के बिना बेहतर कल की उम्मीद नहीं की जा सकती।
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