Move to Jagran APP

प्लास्टिक के इस्तेमाल के खिलाफ अवधेश ने छेड़ी मुहिम

ललित कौशिक, नई दिल्ली धरा पर प्लास्टिक के बढ़ते इस्तेमाल से पर्यावरण, जीव व इंसान को पहुंचने

By JagranEdited By: Updated: Mon, 28 May 2018 09:48 PM (IST)
Hero Image
प्लास्टिक के इस्तेमाल के खिलाफ अवधेश ने छेड़ी मुहिम

ललित कौशिक, नई दिल्ली

धरा पर प्लास्टिक के बढ़ते इस्तेमाल से पर्यावरण, जीव व इंसान को पहुंचने वाले नुकसान के प्रति लोगों को जागरूक करने का काम किया जा रहा है। दिल्ली के वसंत कुंज निवासी अवधेश कुमार उपाध्याय छह साल से इस कार्य में जुटे हैं। भले ही उम्र 60 वर्ष है, लेकिन स्कूल व कॉलेज उनका ठिकाना है। वहां वे छात्रों को प्लास्टिक से होने वाले दुष्प्रभाव के बारे में संबोधित करने के लिए जाते हैं। देश के कई राज्यों में दूर-दूर जाकर उन्हें इस बारे में अवगत करा चुके हैं।

अवधेश बताते हैं कि उनका प्राथमिक लक्ष्य युवा पीढ़ी है, क्योंकि खरीदारी से लेकर दूसरे अन्य कामों में वे लोग ज्यादा जुड़े हुए हैं। ऐसे में उन्हें प्लास्टिक से होने वाले नुकसान के बारे में बताना ज्यादा जरूरी है। आज कल पानी की बोतल का प्रयोग युवा पीढ़ी अधिक करती है, जबकि उन्हें इस बारे में बिल्कुल पता नहीं होता है कि इसका सीधा प्रभाव उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है।

प्लास्टिक की बोतल से होने स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के संबंध में कई सर्वेक्षण आ चुके हैं, लेकिन सरकार से लेकर आम लोगों में इसको लेकर कोई ज्यादा संजीदगी नहीं है। जब प्लास्टिक का प्रयोग बढ़ेगा तो औद्योगिक इकाइयों में उसका उत्पादन भी सर्वाधिक होगा। इन इकाइयों का कचरा सीधा नालों और नदी में जाकर गिरता है, जिससे जल प्रदूषित होने लगता है।

उनका कहना है कि स्कूल-कॉलेजों में जाकर छात्रों को इस संबंध में जागरूक किया जा रहा है कि वे कहीं पर भी बाहर जाएं तो अपने साथ स्टील की बोतल में पानी भरकर ले जाएं। साथ ही खरीदारी के लिए घर से झोला लेकर चलें। इससे प्लास्टिक बैग का प्रयोग भी कम होगा। अब तक आठ हजार से ज्यादा छात्रों को इस बारे में बता चुका हूं। दिल्ली, उड़ीसा, झारखंड, असम, पश्चिम बंगाल व उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में इसको लेकर कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं।

अवधेश कहते हैं कि प्लास्टिक की बोतल के ढक्कन का निस्तारण करना भी मुश्किल होता है। अब तक 55 मिलियन टन प्लास्टिक के ढक्कन समुद्र में जाकर जमा हो चुके हैं, जिसे पानी में रहने वाले जीव खाने को मजबूर हैं। इससे उनकी भूख खत्म हो जाती है और समय से पहले ही उनकी मौत हो जाती है। उन्होंने बताया कि आगरा के गांव में उन्होंने तकरीबन दो साल प्लास्टिक को लेकर काम किया था। तब जाकर उन्हें इस बात का एहसास हुआ था कि प्लास्टिक कितनी खतरनाक है। वर्ष 2012 में उन्हें जल संरक्षण की दिशा में काम करने पर यूनेस्को ने भी सम्मानित किया था। दरअसल, घरों से निकलने वाले पानी का प्रयोग दोबारा कैसे हो उस पर उन्होंने कार्य किया था।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।