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Kunwar Bechain RIP: पढ़िये- कैसे कुंअर बेचैन का गीत सुन एक व्यक्ति ने त्याग दिया था आत्महत्या का इरादा

Poet And Writer Kunwar Bechain Passed Away हिंदी गजल को भी कुंअर बेचैन ने एक नया आयाम दिया और उनकी गजलों में आम जन-जीवन के बिंब मिलते हैं। वे हिंदी गजल के बड़े हस्ताक्षर के रूप में जाने जाते हैं।

By Jp YadavEdited By: Updated: Fri, 30 Apr 2021 07:38 AM (IST)
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Kunwar Bechain RIP: कुंअर बेचैन का गीत सुन देश के नामी लेखक ने बदला था सुसाइड का इरादा

नई दिल्ली [विवेक भटनागर]। देश के जाने-माने कवि व गीतकार डॉ. कुंअर बेचैन को क्रर कोरोना वायरस ने छीन लिया। उन्होंने बृहस्पतिवार को नोएडा स्थित निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली। कुंअर बेचैन को 'गीतों के राजकुंअर' की संज्ञा दी जाती थी, क्योंकि उनके जीवन-बोध के गीत प्रत्येक परिस्थिति में आशान्वित करते हैं। कथाकार सूरज प्रकाश का कहना है कि कवि सम्मेलन में कुंअर बेचैन का गीत सुनकर जीवन से निराश एक व्यक्ति इतना प्रेरित हुआ कि उसने आत्महत्या का अपना इरादा त्याग दिया था। हिंदी गजल को भी कुंअर बेचैन ने एक नया आयाम दिया और उनकी गजलों में आम जन-जीवन के बिंब मिलते हैं। वे हिंदी गजल के बड़े हस्ताक्षर के रूप में जाने जाते हैं।

30 मार्च को लगवाई थी कोरोना की वैक्सीन

30 मार्च को डॉ. कुंअर बेचैन ने फेसबुक पर स्टेटस लिखा था - 'कई दिनों से सोच रहा था कि मैं भी कोरोना से बचने के लिए वैक्सीन लगवा ही लूं। आज 30 मार्च 2021 को सवेरे 10.30 बजे मैं अपने प्रिय शिष्य दुर्गेश आंचल को साथ लेकर गाजियाबाद के नेहरू नगर स्थित यशोदा अस्पताल चला गया। 10.40 बजे मैं अस्पताल पहुंचा। आप सबको यह जानकर आश्चर्य होगा कि मैं 11 बजे वैक्सीन लगवाकर फ्री भी हो गया। केवल 20 मिनट में सारी प्रक्रिया पूरी हो गई। डॉक्टरों और नर्सों का व्यवहार, उनका स्नेहपूर्ण सहयोग, उनकी कार्यशैली तथा उनकी कार्यक्षमता देखकर मैं दंग रह गया। बाईं बांह में सुई कब लग गई, मुझे पता ही नहीं चला। जरा सा भी दर्द नहीं हुआ। लेकिन मास्क लगाना और निश्चित दूरी रखने वाली बात मुझे अभी याद रखनी ही है। सारे नियमों का पालन भी करना है। दो गज दूरी, मास्क है जरूरी।' लेकिन संभव है कोरोना ने पहले ही इस महाकवि के भीतर अपनी जगह बना ली हो। कुछ ही दिनों में बुखार खांसी और सांस की तकलीफ होने लगी। तब तक कोरोना विकराल रूप ले चुका था और अस्पतालों में बेड कम पड़ने लगे।

चाहने वालों की दुआओं पर भारी पड़ा कोरोना संक्रमण

ऐसे में हालत बिगड़ने पर कवि कुमार विश्वास और सांसद महेश शर्मा के सहयोग से उन्हें नोएडा के कैलाश अस्पताल में भर्ती कराया गया। 15 अप्रैल को उन्होंने अपना स्वास्थ्य बुलेटिन इंटरनेट मीडिया पर जारी कराया कि 'मैं नोएडा के सेक्टर 27 के कैलाश अस्पताल के आइसीयू, सेकेंड फ्लोर, बेड नंबर 19 पर हूं। कोविड की चपेट में आ गया हूं। बात करते ही खांसी उठती है, अत: बात करने की मनाही है। ठीक होते ही बात करूंगा। आप सब मेरे स्वास्थ्य के लिए चिंतित हैं, इसके प्रति आभारी हूं। दुआ कीजिए जल्दी ठीक हो जाऊं।' साहित्यिक हलकों में न जाने कितने साहित्यकारों की प्रेरणा व गुरु हर दिल अजीज गीतकार व गजलकार डॉ. कुंअर बेचैन के स्वास्थ्य के लिए सभी कामना कर रहे थे। लोगों को उनकी पुत्री वंदना कुंअर रायजादा की अपडेट से राहत मिली कि पिता जी ठीक हो रहे हैं। वे शीघ्र घर आ जाएंगे, लेकिन यह संभव न हो सका।

सबके साथ सह्रदय हो जाते थे कुंअर

29 अप्रैल को यह खबर आ गई कि क्रूर क्रोरोना ने उन्हें हमसे छीन लिया है। उन्होंने वादा दोहराया था कि उन्हें नियमों का पालन वैक्सीन लगने के बाद भी करना है। उन्होंने किया भी, लेकिन उनकी सहृदयता इतनी थी कि वह अपने प्रशंसकों के किसी भी आग्रह को नहीं टालते थे। चाहे वह किसी पुस्तक की भूमिका लिखने की बात हो, चाहे साथ में सेल्फी लेने की। एक विनम्र और सहृदय कवि का चला जाना वाकई दुखद है।

कुंअर बेचैन का जन्म 1 जुलाई 1942 को उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के उमरी गांव में हुआ। पिता नारायणदास सक्सेना और माता गंगादेवी ने उनका नाम कुंअर बहादुर रखा। बचपन से ही गीतों-गजलों की यात्रा शुरू कर देने वाले कुंवर जी ने अपने नाम के साथ 'बेचैन' तखल्लुस (उपनाम) जोड़ लिया था। लेकिन उनका बचपन बड़े संघर्षों में बीता। बचपन में उनके माता-पिता का देहांत हो जाने से उनका पालन-पोषण उनकी बहन के यहां हुआ।

गाजियाबाद के नामी कॉलेज में किया अध्यापन

चंदौसी व मुरादाबाद से उनकी शिक्षा पूरी हुई। उन्होंने एमकॉम, एमए व पीएच डी किया। फिर वह अध्यापन में आ गए। 1995 से 2001 तक उन्होंने एमएमएच पोस्टग्रेजुएट कॉलेज गाजियाबाद में हिंदी विभाग में अध्यापन किया और हिंदी विभागाध्यक्ष के पद से सेवानिवृत्त हुए। अंत तक वे काव्य मंचों पर सक्रिय रहे। मंचों पर गेय काव्य और अच्छी कविता वाले स्वरूप को बनाए रखने वालों में वह प्रमुख कवि थे।

परिस्थितिजन्य तनावों से साक्षात्कार कराती हैं कुंअर की गजलें

वरिष्ठ गजलकार व समालोचक हरेराम समीप डॉ. बेचैन को 'गीतधर्मी गजलकार' कहते हैं। उनके अनुसार, 'शामियाने कांच के', 'महावर इंतजारों का' 'रस्सियां पानी की','पत्थर की बांसुरी' 'नाव बनता हुआ कागज', 'आग पर कंदील', 'आंधियों में पेड़', 'पिन बहुत सारे', 'आंगन की अलगनी' 'आंधियो धीरे चलो' सहित उनके 16 गजल संग्रह की गजलों में डॉ. कुंअर बेचैन का बेचैन मन सर्वत्र प्रतिबिंबित होता रहा है। उनकी गजलों में अद्भुत संप्रेषण क्षमता है। प्रतीकों, बिंबों के सर्जनात्मक उपयोग के साथ कहीं-कहीं पुराख्यानों व मिथकों का भी इन्होंने सर्जनात्मक प्रयोग किया है। हर बिंब व प्रतीक अपने में पूर्णत: खुलता हुआ व अपने अर्थ को व्यक्त करने में पूर्णत: सक्षम है। इन गजलों में आम आदमी के जीवन संघर्षों की तथा सामाजिक विद्रूपताओं की खुली पहचान है। कुंअर बेचैन अंतर्विरोधों के बीच छटपटाते आम आदमी की त्रासदी को देखते हैं। तार्किक और भावपूर्ण रचनाविधान से युक्त उनकी गजलें परिस्थितिजन्य तनावों से साक्षात्कार कराती हैं। वे उन तनावों को हल्का बनाने का प्रयास करती हैं। उनकी गजलों में जीवन के विविध स्तरों की सही पहचान है, मानवीय संवेदना की सहज अभिव्यक्ति है। उन्होंने गद्य और पद्य की चालीस से अधिक कृतियों की रचना की है। लगभग पांच दशकों से गीत और गजल रचना में संलग्न डॉ. कुंअर बेचैन ने हिंदी का गजल में उल्लेखनीय योगदान दिया है।

प्रमुख गीत-संग्रह : पिन बहुत सारे (1972), भीतर सांकल: बाहर साँकल (1978), उर्वशी हो तुम (1987), झुलसो मत मोरपंख (1990), एक दीप चौमुखी (1997), नदी पसीने की (2005), दिन दिवंगत हुए (2005)

प्रमुख गज़़ल-संग्रह : शामियाने कांच के (1983), महावर इंतजारों का (1983), रस्सियां पानी की (1987), पत्थर की बांसुरी (1990), दीवारों पर दस्तक (1991), नाव बनता हुआ कागज (1991), आग पर कंदील (1993), आंधियों में पेड़ (1997), आठ सुरों की बांसुरी (1997), आंगन की अलगनी (1997), तो सुबह हो (2000), कोई आवाज देता है (2005)

कविता-संग्रह : नदी तुम रुक क्यों गई (1997), शब्द : एक लालटेन (1997)

महाकाव्य : पांचाली

सम्मान : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान का साहित्य भूषण (2004), परिवार पुरस्कार सम्मान, मुंबई (2004)। अनेक विश्वविद्यालयों व महाराष्ट्र तथा गुजरात शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रमों में रचनाएं संकलित।

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