जानिए, घासफूस के इस 'कुंड' में सुधि-बुधि खो बैठा विदेशी युगल
यहां बने घासफूस के हट्स और उनमें सजी दुकानें इस युगल के लिए उतनी ही जिज्ञासाएं पैदा कर रहे हैं है, जितनी उनके हाथ में रखी एक सुर्ख लाल रंग की बनारसी साड़ी।
फरीदाबाद [ रमेश मिश्र ]। सूरजकुंड के 'कुंड' में समाहित भारत की सांस्कृतिक संपन्नता और उसकी विविधता को देख जहां कई विदेशी सैलानी अभिभूत हैं, वहीं कुछ विदेशी यहां के बाजार में संभावनाएं तलाश रहे हैं। बाजारवाद के दौर में वह इस कुंड में उन्हीं संभावनाओं की टोह में भटक रहे हैं। मेले में पहली बार आए रूसी युगल यहां के बाजार से भले ही अनभिज्ञ हैं, लेकिन मॉरीशस के चेट्टियार को यहां बाजार की असीमित संभावनाएं दिख रही हैं।
क्रिसतोई को भाया 'घासफूस का मेला'
पहली बार भ्रमण पर आए रूस के क्रिस्तोई यहां की सामाजिक और सांस्कृतिक विविधता से अभीभूत हैं। उनकी उम्र तकरीबन 25 वर्ष है। वह दिल्ली से यहां आए हैं। साथ में उनकी महिला मित्र सोफी फ्रेदरिक हैं। दोनों के लिए मेले का हर कोना कौतुहल पैदा कर रहा है। उनका कहना है कि इस तरह के मेले में वह पहली बार शामिल हो रहे हैं। यहां बने घासफूस के हट्स और उनमें सजी दुकानें इस युगल के लिए उतनी ही जिज्ञासाएं पैदा कर रहे हैं है, जितनी उनके हाथ में रखी एक सुर्ख लाल रंग की बनारसी साड़ी।राजधानी की चकाचौंध के बाद यहां बने घासफूस के हट उन्हें नए छोटे शहर का अहसास करा रहे हैं। इस कुंड में उनको एक सुकूून की अनुभूति हो रही है। उन्हें यहां कुछ अटपटा सा नहीं लगता, वह शांति की तलाश में है। दोनों युगल पहले अपनी भाषा में वार्तालाप करते हैं और फिर एक नया सवाल उनके मन में कौंध जाता। वो सवाल उनकी टूटी-फूटी अंग्रेजी में मेरे पास आता।
बनारसी साड़ी की बनावट से ज्यादा उनकी निगाह उसके वजन को लेकर सवाल करती महसूस होती है। साड़ी को लेकर तमाम सवाल उनके मन में कौंधते हैं। कुंड में विविध राज्यों के करीब एक दर्जन स्टालों पर इस युगल ने भ्रमण्ा किया। मगर उनकी दिलचस्पी सामानों को खरीदने में कम, उसे जानने और समझने में ज्यादा दिखी।
फ्रेदरिक को भाए भारतीय गहनें
विदेशी युवती भारतीय गहनों को देख दंग रह गई। गहनों की विविधता और उसकी संपन्नता देख फ्रेदरिक की जिज्ञासा हिलोरे मारने लगी। फ्रेदरिक का जोर इन परंपरागत भारतीय गहनों की बारीकियों को समझने में हैं। कान और नाक के गहने उनके लिए एक दम अनोखे लगते हैं। कुछ गहनों को वह अपने ऊपर आजमाती भी हैं। वह इन गहनों के साथ ही भारतीय नारी के रूप लावण्य की कल्पना करती हैं।
बाजार की तलाश में आए मॉरीशस के चेट्टियार
इसके ठीक उलट मॉरीशस के चेट्टियार सूरजकुंड के अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में व्यापार की अपार संभावनाएं देख्ा रहे हैं। मेले की सांस्कृतिक विरासत और उसकी संपन्नता पर उनका ध्यान नहीं है, वे यहां अपने व्यापार की गरज से आए हैं। उनकी निगाहें क्राफ्ट बाजार और अन्य वस्तुओं पर टिकी है। मेले की खूबियां बताते हुए वे कहते हैं- सूरजकुंड की खासियत है कि यहां पूरे देश से जुड़ने का मौका मिल जाता है। व्यापार के लिए यह एक अनूठा बाजार है।