हाई कोर्ट ने एलजी को बताया था दिल्ली का बॉस
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : केंद्र व दिल्ली सरकार के बीच दिल्ली की हुकूमत को लेकर उठे विवाद पर हाई कोर्ट ने उपराज्यपाल को दिल्ली का बॉस माना था।
By JagranEdited By: Updated: Wed, 04 Jul 2018 07:24 PM (IST)
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली : केंद्र व दिल्ली सरकार के बीच दिल्ली की हुकूमत को लेकर उठे विवाद पर 5 अगस्त 2016 को हाई कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी व न्यायमूर्ति जयंत नाथ की खंडपीठ ने उपराज्यपाल को ही दिल्ली का प्रशासनिक प्रमुख करार दिया था। खंडपीठ ने कहा था कि आप सरकार की यह दलील आधारहीन है कि उपराज्यपाल को मंत्रिमंडल की सलाह पर काम करना चाहिए। संविधान के अनुच्छेद 239एए की धारा (3)( ए) के तहत इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। दिल्ली के उपराज्यपाल के पास अन्य राज्यों के राज्यपाल के मुकाबले व्यापक विवेकाधीन शक्तियां हैं।
हाई कोर्ट ने उपराज्यपाल को प्रधानता देते हुए कहा था कि मंत्रिमंडल अगर कोई फैसला लेता है तो उसे उपराज्यपाल के पास भेजना ही होगा। अगर उपराज्यपाल का उस पर अलग दृष्टिकोण रहता है तो इस संदर्भ में केंद्र सरकार की राय की जरूरत पड़ेगी। उपराज्यपाल दिल्ली के प्रशासनिक प्रमुख हैं और नीतिगत फैसले बिना उनसे संवाद किए स्थापित व जारी नहीं लिए जा सकते। --------------------------- हाई कोर्ट ने किया था स्पष्ट, उपराज्यपाल प्रशासनिक प्रमुख क्यों
उपराज्यपाल दिल्ली के प्रशासनिक प्रमुख क्यों है। इस पर हाई कोर्ट ने स्पष्ट करते हुए कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 239, 239एए व राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र अधिनियम 1991 पढ़ने के बाद यह स्पष्ट होता है कि दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश है। अनुच्छेद 239 एए के तहत दिल्ली को कुछ विशेष प्रावधान प्राप्त हैं, लेकिन ये प्रावधान अनुच्छेद 239 के प्रभाव को भी कम नहीं कर सकते जो केंद्र शासित प्रदेश से संबंधित है। ऐसे में प्रशासनिक मुद्दों में उपराज्यपाल की सहमति अनिवार्य है। यहा राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री का दफ्तर होने के साथ-साथ कई प्रमुख संस्थाएं भी हैं। राष्ट्रीय विधायिका, राष्ट्रीय कार्यपालिका, सुप्रीम कोर्ट, सेना प्रमुख, अर्धसैनिक बलों के अलावा यहां कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं व कई देशों के दूतावास हैं।
यह है मामला
23 सितंबर 2015 को अदालत ने सीएनजी फिटनेस घोटाले की जांच के लिए गठित न्यायिक आयोग को चुनौती देने, उपराज्यपाल द्वारा दानिक्स अधिकारियों को दिल्ली सरकार के आदेश न मानने, भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) के अधिकार को लेकर जारी केंद्र सरकार की अधिसूचना व डिस्कॉम में निदेशकों की नियुक्ति को चुनौती समेत अन्य मामलों में रोजाना सुनवाई करने का फैसला किया था। 24 जुलाई 2016 को अदालत ने दिल्ली सरकार की उस याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसमें इन मामलों की सुनवाई पर रोक लगाने की मांग की गई थी। इस बीच दिल्ली सरकार इन मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी गई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने याचिका सुनने से इन्कार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट से जल्द से जल्द फैसला करने को कहा था।
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