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इंटरसेप्टर बनने के बाद भी डुबकी लायक नहीं हो पाएगी यमुना

-नए साल में मार्च तक बनकर तैयार होगी इंटरसेप्टर सीवर लाइन -इसके निर्माण से यमुना में प्रदूषण्

By JagranEdited By: Updated: Thu, 27 Dec 2018 02:53 AM (IST)
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इंटरसेप्टर बनने के बाद भी डुबकी लायक नहीं हो पाएगी यमुना
-नए साल में मार्च तक बनकर तैयार होगी इंटरसेप्टर सीवर लाइन

-इसके निर्माण से यमुना में प्रदूषण तो कम होगा पर निर्मल होना मुश्किल

रणविजय सिंह, नई दिल्ली :

प्रदूषण और गंदगी की मार झेल रही यमुना को निर्माणाधीन इटरसेप्टर सीवर लाइन से बहुत उम्मीदें हैं। करीब एक दशक से वह इस परियोजना के तैयार होने की बाट देख रही है। दिल्ली के लोग भी इस इंतजार में हैं कि जीवनदायिनी यमुना स्वच्छ बने ताकि उसकी निर्मल धारा में डुबकी लगा सकें। जल बोर्ड की मानें तो 1978 करोड़ की लागत से बन रही इंटरसेप्टर सीवर लाइन नए साल में मार्च तक तैयार हो जाएगी। तब यमुना में प्रदूषण तो कम होगा पर इस नदी का पानी इतना स्वच्छ नहीं हो पाएगा कि लोग स्नान कर सकें।

जल बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि यमुना का पानी स्नान के लायक तभी हो पाएगा जब नदी में न्यूनतम प्रवाह सुनिश्चित हो। गर्मी के मौसम में नदी में प्रवाह बिल्कुल नहीं होता। इस दौरान नदी सबसे अधिक मैली होती है।

उल्लेखनीय है कि दिल्ली के करीब 50 फीसद इलाकों में सीवर नेटवर्क की सुविधा नहीं है। इन इलाकों का सीवर युक्त गंदा पानी बिना शोधन के नालों में गिरता है। जल बोर्ड ने यह महसूस किया कि नजफगढ़, सप्लीमेंट्री व शाहदरा ड्रेन के कचरे से यमुना में करीब 70 फीसद प्रदूषण होता है। इसलिए जल बोर्ड ने वर्ष 2008 में इंटरसेप्टर सीवर लाइन बनाने की योजना तैयार की। ताकि तीनों बड़े नालों में गिरने वाले पानी को रोककर शोधित किया जा सके। वर्ष 2011 में 59 किलोमीटर लंबी इंटरसेप्टर सीवर लाइन का निर्माण शुरू हुआ। जून 2013 तक इसका निर्माण पूरा होना था पर निर्माण में विलंब के कारण इंटरसेप्टर सीवर लाइन अब तक तैयार नहीं हो पाई।

जल बोर्ड का कहना है कि इंटरसेप्टर सीवर लाइन का 93 फीसद निर्माण पूरा हो चुका है। इससे 110 एमजीडी गंदे पानी को सीवरेज शोधन संयंत्र (एसटीपी) में ले जाकर शोधित भी किया जा रहा है। इंटरसेप्टर सीवर लाइन की डिजाइन के अनुसार 240 एमजीडी सीवरेज का शोधन किया जा सकेगा। मार्च 2019 में इसके तैयार होने पर क्षमता के अनुसार तीनों नालों से सीवर युक्त पानी एसटीपी में ले जाकर शोधित किया जा सकेगा।

इसके बाद उसे यमुना में छोड़ा जाएगा। फिर भी यह समझना जरूरी है कि एसटीपी में जो सीवेज पहुंचता है उसके पानी में बीओडी (बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड) की मात्रा 200-250 पीपीएम (पर पार्ट मिलियन) होती है। एसटीपी में शोधन के बाद उपचारित पानी में बीओडी की मात्रा 20 पीपीएम और टीएसएस (टोटल सस्पेंडेड सॉलिड) की मात्रा 50 पीपीएम रह जाती है, जो केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के मौजूदा मानकों के अनुरूप है। इसलिए इंटरसेप्टर सीवर लाइन के तैयार होने पर भी यमुना में बीओडी की मात्रा 20 पीपीएम रहेगी। यह नदी में स्नान के मानकों के अनुरूप नहीं है। इसके लिए बीओडी की मात्रा तीन पीपीएम तक होनी चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि नदी में इतना पानी आए कि बहाव के साथ बाकी की गंदगी साफ हो जाए। यमुना में अतिरिक्त पानी छोड़ने के लिए हरियाणा से बातचीत चल रही है। इसके परिणाम पर परियोजना की सफलता निर्भर करती है।

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