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World Malaria Day: अब मच्छर नहीं फैला सकेंगे मलेरिया, तैयार की जा रही दवा

इंसान के शरीर के भीतर का तापमान 37 डिग्री तक होता है जबकि मच्छर के अंदर का तापमान 21 डिग्री तक ही होता है। ऐसे में पैरासाइट को सुरक्षित रखने के लिए मच्छर एक तरह का प्रोटीन उत्सर्जित करते हैं।

By Jagran NewsEdited By: Abhishek TiwariPublished: Tue, 25 Apr 2023 12:09 PM (IST)Updated: Tue, 25 Apr 2023 12:09 PM (IST)
Malaria Treatment: अब मच्छर नहीं फैला सकेंगे मलेरिया, तैयार की जा रही दवा

नई दिल्ली [उदय जगताप]। मलेरिया का इंसानों से मच्छरों में प्रसार रोकने की दिशा में महत्वपूर्ण शोध किया गया है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के मालीक्यूलर मेडिसिन के स्पेशल सेंटर ने अपने शोध में ऐसा कंपोनेंट खोजा है, जो पैरासाइट के फैलाव को रोकेगा। इसे एलआइ-71 नाम दिया गया है। शोध जर्मनी के हंबोल्ट विश्वविद्यालय के साथ मिलकर किया गया है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि यह खोज केंद्र सरकार के 2030 तक भारत को मलेरिया मुक्त बनाने के अभियान में मील का पत्थर साबित होगी। शोध प्रक्रिया में शामिल प्रो. शैलजा सिंह ने बताया कि मच्छर मलेरिया के वाहक होते हैं। मलेरिया से ग्रस्त एक व्यक्ति को काटने के बाद जब दूसरे को शिकार बनाते हैं तो उसमें पैरासाइट छोड़ देते हैं।

इससे ही मलेरिया अधिक फैलता है। उन्होंने कहा कि इंसान के शरीर के भीतर का तापमान 37 डिग्री तक होता है, जबकि मच्छर के अंदर का तापमान 21 डिग्री तक ही होता है। ऐसे में पैरासाइट को सुरक्षित रखने के लिए मच्छर एक तरह का प्रोटीन उत्सर्जित करते हैं। इसकी खोज उनके दल ने की है। चूंकि कम तापमान पर भी ये पैरासाइट खत्म नहीं होता, इसलिए इसे उन्होंने काल्ड शाक प्रोटीन नाम दिया है।

इंसानों पर किया गया कंपोनेंट का ट्रायल

उन्होंने कहा कि यह प्रोटीन ही पेरासाइट को मच्छर में चलायमान रखता है। उन्होंने जिस कंपोनेंट एलआइ71 की खोज की है। वह इस प्रोटीन के असर को खत्म कर देता है। जब मच्छर इंसान को काटता है तो वह काल्ड शाक प्रोटीन उत्सर्जित नहीं कर पाता, ऐसे में पैरासाइट उसके भीतर ही समाप्त हो जाता है। इससे उसका प्रसार रुक जाता है। उन्होंने कहा कि इंसानों पर भी कंपोनेंट का ट्रायल किया है, जो सफल रहा है।

उन्होंने कहा, जब यह दवा बनेगी तो इसका बहुत छोटा हिस्सा ही काल्ड शाक प्रोटीन को खत्म करने के लिए पर्याप्त होगा। ऐसे में इसके दुष्परिणामों की संभावना बेहद कम है। अब इंडियन काउंसिल फार मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) से दवा बनाने के लिए गुजारिश करेंगे। उन्होंने कहा कि यह शोध सेल प्रेस के प्रतिष्ठित आइ साइंस जनरल में प्रकाशित हुआ है।

इस शोध में प्रो. शैलजा सिंह के साथ रिसर्च स्कालर डा. अंकिता बहल और पीएचडी स्कालर रुमेशा सोहेब शामिल रहीं। मलेरिया के इलाज में अभी क्लोरोक्वीन और आर्टिमीसिनिन दवाएं इस्तेमाल होती हैं, लेकिन ये दोनों केवल पैरासाइट को खत्म कर पाती हैं। उसका प्रसार रोकने में सक्षम नहीं है। प्रो. शैलेजा ने कहा कि उनके कंपोनेंट से बनी दवा का अतिरिक्त डोज इनके साथ दिया जाए तो मरीज जल्द स्वस्थ भी होगा और दूसरे मरीज में बीमारी नहीं फैलेगी।

देश में कई इलाकों में मलेरिया अधिक

प्रो. शैलजा ने बताया कि देश में उड़ीसा, पूर्वोत्तर के राज्य, गुजरात और राजस्थान के कुछ इलाके ऐसे हैं जहां मलेरिया का फैलाव बहुत है। इन इलाकों में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे अधिक प्रभावित होते हैं। सीजन से पहले दवा दे दी जाए तो प्रसार रोका जा सकता है।


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