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खटाई में पड़ी कालिंदी बाईपास परियोजना

राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : कालिंदी बाईपास परियोजना खटाई में पड़ गई है। उत्तर प्रदेश सरकार न

By JagranEdited By: Updated: Fri, 28 Sep 2018 10:14 PM (IST)
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खटाई में पड़ी कालिंदी बाईपास परियोजना
राज्य ब्यूरो, नई दिल्ली : कालिंदी बाईपास परियोजना खटाई में पड़ गई है। उत्तर प्रदेश सरकार ने इस परियोजना के लिए जमीन देने से इन्कार कर दिया है। उत्तर प्रदेश सरकार ने कुछ समय पहले पत्र के माध्यम से जवाब भेजा है कि प्रदेश सरकार अपनी जमीन पर दिल्ली लोक निर्माण विभाग की परियोजना को मंजूरी नहीं दे सकती। उसने कहा है कि उसकी नहर में परियोजना के लिए पिलर बनाने की इजाजत नहीं दी जाएगी।

लोक निर्माण विभाग इस परियोजना का काम फिर से शुरू करने के लिए पिछले 12 साल से हाथ-पैर मार रहा था। उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद लोक निर्माण विभाग ने फिर से वहां की सरकार को जमीन के लिए पत्र लिखा था। गत वर्ष केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी द्वारा दिल्ली और उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों की बुलाई गई बैठक में यह मुद्दा जोर-शोर से उठा था। उस समय लोक निर्माण विभाग को उम्मीद जगी थी कि जमीन को लेकर अब कोई न कोई हल जरूर निकलेगा, मगर उत्तर प्रदेश सरकार के पत्र से स्थिति स्पष्ट हो गई है कि अब इस परियोजना को लेकर कोई उम्मीद नहीं बची है। विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि इस परियोजना के लिए अब अन्य कोई विकल्प नहीं बचा है।

क्या है परियोजना

कालिंदी कॉलोनी आश्रम चौक डीएनडी क्लोवरलीफ से लेकर जामिया नगर के पास से होते हुए कालिंदी कुंज से बदरपुर तक लगभग 15.8 किलोमीटर तक 6 लेन का सिग्नल फ्री नया मार्ग बनाया जाना है। मध्य, उत्तरी व पूर्वी दिल्ली के लोग इस मार्ग का उपयोग कर जैतपुर होते हुए सीधे फरीदाबाद के पास निकलते। परियोजना पर 2003 में मै.रानी कंस्ट्रक्शन कंपनी द्वारा निर्माण कार्य शुरू किया गया था, जिसे चार साल में पूरा किया जाना था। मगर परियोजना के लिए आगे जगह नहीं मिलने पर 2006 के शुरू में निर्माण कार्य बंद कर दिया गया। इस परियोजना के लिए उत्तर प्रदेश से जमीन चाहिए थी। परियोजना को लगभग दो किलोमीटर तक उत्तर प्रदेश की जमीन से गुजरना था। विभाग का कहना है कि 2006 में उत्तर प्रदेश ने जमीन देने से मना कर दिया था। परियोजना के लिए उस समय जामिया नगर के दो हजार मकान टूटने थे। सरकार के पीछे हटने पर बाद में परियोजना का रास्ता बदल दिया गया था। अब यह परियोजना यमुना के किनारे से गुजरनी थी।

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