दिल्ली में 'आप' के तीन साल, जानें- क्या है आम आदमी का हाल
दिल्ली की जनता ने 'आप' के रूप में एक नए राजनीतिक विकल्प को इसलिए समर्थन दिया था कि दिल्ली बदलेगी, समस्याएं दूर होंगी और विकास को गति मिलेगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।
नई दिल्ली [जेएनएन]। दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार के आज तीन साल पूरे हो गए हैं। तीन साल के कार्यकाल में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकार आम आदमी से ही दूर होती चली गई। सत्ता में आते ही 'आप' सरकार ने अपनों को खास बनाने की मुहिम शुरू कर दी। सरकार की प्राथमिकता भी सुधार से ज्यादा बदलाव पर केंद्रित रही है। बदलाव भी व्यवस्था में नहीं बल्कि चेहरे बदलकर अपने लोगों को फायदा पहुंचाने तक सिमटा रहा है।
समस्याओं के मकड़जाल में घिरती चली गई दिल्ली
दिल्ली की जनता ने 'आप' के रूप में एक नए राजनीतिक विकल्प को इसलिए समर्थन दिया था कि दिल्ली बदलेगी, समस्याएं दूर होंगी और विकास को गति मिलेगी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। अलबत्ता दिल्ली समस्याओं के मकड़जाल में घिरती चली गई। परिवहन सेवा अब भी बदहाल है। पर्यावरण की स्थिति से हर कोई वाकिफ है। वहीं, आम जन को रोजगार मिला हो या नहीं, लेकिन 'आप' से जुड़े लोगों को अवश्य मिल गया।
'आप' ने अपनों के दिया रोजगार
'आप' ने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया तो दिल्ली संवाद आयोग और शब्दार्थ का गठन ही अपने लोगों को नियुक्त करने के लिए किया। दिल्ली महिला आयोग के सारे पुराने स्टाफ को हटाकर 'आप' से जुड़े लोगों को रखा गया। तमाम मंडी समितियों और बोर्डो में भी सरकार ने अपने चहेतों की नियुक्ति कर दी। पार्टी कार्यकर्ताओं को विभिन्न मंत्रियों के साथ लगाकर रोजगार दे दिया गया।
चर्चा में रहे ये मुद्दे
मोहल्ला क्लीनिकों के नाम पर भी अपने ही कार्यकर्ताओं को लाभ पहुंचाया गया। कार्यकर्ताओं के घरों में मार्केट रेट से ज्यादा किराए पर जगह लेकर यह क्लीनिक खोले गए। विवादित मंत्री सत्येंद्र जैन की बेटी को स्वास्थ्य विभाग में सलाहकार के तौर पर नियुक्ति की गई। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के रिश्तेदार निकुंज अग्रवाल को स्वास्य मंत्री का ओएसडी बना दिया गया। वक्फ बोर्ड में भी गलत तरीके से नियुक्ति की गई, जिसके चलते उपराज्यपाल को इसे भंग करना पड़ा। साथ ही सीबीआइ जांच की भी अनुशंसा कर दी गई।
अपनों को किया बाहर
कबीर का दोहा है, निंदक नियरे राखिए.. लेकिन विडंबना यह है कि 'आप' सरकार के खिलाफ जिस किसी ने बगावत की, उससे सारे नाते तोड़ लिए गए। अहम और अकड़ का ही नतीजा है कि 'आप' सरकार की न केवल केंद्र से खींचातानी चलती रहती है, बल्कि उपराज्यपाल के साथ भी संबंध मधुर नहीं रहे। भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन से जन्मी 'आप' की सरकार के मंत्रियों एवं विधायकों पर ही भ्रष्टाचार के दाग लग गए। विधायक जितेंद्र सिंह तोमर को फर्जी डिग्री के मामले में मंत्री पद गंवाना पड़ा। विधायक सोमनाथ भारती पर मंत्री रहते हुए कुछ विदेशी महिलाओं से बदतमीजी का आरोप लगा। स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन लगातार सीबीआइ के निशाने पर रहे हैं।
केजरीवाल व सिसेदिया पर भी लगा दाग
मंत्रियों से अलग स्वयं मुख्यमंत्री केजरीवाल के कार्यालय में सीबीआइ का छापा पड़ चुका है तो उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया पर 'टॉक टू एके' कार्यक्रम के दौरान एक निजी कंपनी को गलत तरीके से करोड़ों रुपये के विज्ञापन देने का आरोप लगा। हाल ही में राज्यसभा के टिकट बंटवारे को लेकर भी मुख्यमंत्री केजरीवाल पर तमाम तरह के आरोप लगे। कुछ ही साल के गठन में पार्टी की बगावत भी सतह पर आ गई। कपिल मिश्र और कुमार विश्वास को किनारे लगाने से पहले इस पार्टी के गठन में अहम भूमिका निभाने वाले कई लोगों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया तो कुछ ने खुद ही व्यथित होकर 'आप' का साथ छोड़ दिया।
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