अाप भी गुनगुनाएंगे इस कवि का यह गीत, अमिताभ बच्चन ने दिया था अपना स्वर
अमिताभ बच्चन ने पिछले साल (5 मई) को फेसबुक पर लिखा कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती... ये कविता बाबूजी की लिखित नहीं इस कविता के रचयिता हैं सोहन लाल द्विवेदी।
नई दिल्ली [सुधीर कुमार पांडेय]। 'लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती, कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती' ये पंक्तियां निराशा के घने अंधकार से निकालकर कर्मपथ की ओर ले जाती हैं। अक्सर लोग जब असफलता से निराश होते हैं तो बड़े बुजुर्ग उनसे प्रयास नहीं छोड़ने की बात कहते हैं। ये न केवल विद्यार्थियों पर बल्कि हर व्यक्ति पर लागू होती हैं। आप जानते हैं, ये पंक्तियां किसकी हैं। ये पंक्तियां हैं राष्ट्रकवि सोहनलाल द्विवेदी की। वही सोहनलाल द्विवेदी जी, जिन्होंने महात्मा गांधी के बारे में लिखा था- चल पड़े जिधर दो डग मग में, चल पड़े कोटि पग उसी ओर।
लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती कविता को महानायक अमिताभ बच्चन ने 'कौन बनेगा करोड़पति' में स्वर दिया था। अधिकांश लोग यह समझते हैं कि यह कविता मधुशाला जैसी कालजयी कृति लिखने वाले उनके पिता हरिवंश राय बच्चन की है। लेकिन, ऐसा नहीं है। यह कविता सोहन लाल द्विवेदी ने लिखी थी।
बाबूजी ने नहीं लिखी कविता
अमिताभ बच्चन ने पिछले साल (5 मई) को फेसबुक पर लिखा, 'कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती, ये कविता कई लोग समझ रहे हैं कि बाबूजी की लिखित है, नहीं, इस कविता के रचयिता हैं सोहन लाल द्विवेदी।' अमिताभ बच्चन की आवाज में यह कविता यू ट्यूब पर अपलोड है, जिसे 80 लाख से ज्यादा लोग देख चुके हैं।
महात्मा गांधी के दर्शन से थे प्रभावित
सोहन लाल द्विवेदी ने राष्ट्रीयता, चेतना और ऊर्जा से लबरेज कविताएं रचीं। वर्ष 1906 में उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के बिंदकी में उनका जन्म हुआ था। वह महात्मा गांधी के दर्शन से प्रभावित थे। उन्होंने बालोपयोगी रचनाएं भी लिखीं। 1969 में उन्हें पद्मश्री सम्मान दिया गया। उनकी प्रमुख रचनाएं भैरवी, पूजागीत सेवाग्राम, युगाधार, कुणाल, चेतना, बांसुरी, दूधबतासा हैं। भैरवी उनकी प्रथम रचना है। उन्होंने जो बालोपयोगी कविताएं लिखीं उनमें साहस कूट-कूटकर भरा था। सोहनलाल द्विवेदी महात्मा गांधी से काफी प्रभावति थे। अहिंसा और सत्य के विचारों को उन्होंने आत्मसात किया था। महात्मा गांधी पर लिखी युगावतार कविता उन्ही की है।
देखें कुछ पंक्ितयां
चल पड़े जिधर दो डग मग में
चल पड़े कोटि पग उसी ओर,
पड़ गई जिधर भी एक दृष्टि
गड़ गए कोटि दृग उसी ओर।
अंतस में गहरे तक समाई थी देभभक्ित की भावना
मुक्ता कविता उनकी देशभक्ित की भावना को रेखांकित करती है। इसमें वह कहते हैं कि जंजीरों से आजादी को बांधने की चाह पूरी नहीं हो सकती है क्योंकि हमने घी से आग को बुझाने का प्रण लिया है। हाथ्ा पैर पर चाहें तो जकड़ दो, लेकिन इन जंजीरों से हमारा हृदय नहीं जकड़ा जा सकता है। ये हैं कविता की पंक्ितयां
जंजीरों से चले बांधने आजादी की चाह
घी से आग बुझाने की सोची है सीधी राह
हाथ पांव जकड़ो, जो चाहो
है अधिकार तुम्हारा
जंजीरों से कैद नहीं हो सकता हृदय हमारा।
बढ़े चलो बढ़े चलो कविता की कुछ पंक्तियां देखें...
न हाथ एक अस्त्र हो,
न अन्न वीर वस्त्र हो,
हटो नहीं, डरो नहीं, बढ़े चलो, बढ़े चलो।
जहां तक मेरी स्मृति है, जिस कवि को राष्ट्रकवि के नाम से सर्वप्रथम अभिहित किया गया, वह सोहन लाल द्विवेदी थे। हरिवंश राय बच्चन
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती कविता की पंक्ितयां
लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
नन्हीं चीटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है
आखिर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है
जा जाकर खाली हाथ लौटकर आता है
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में
बढ़ता दुगुना उत्साह इसी हैरानी में
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
असफलता एक चुनौती है स्वीकार करो
क्या कमी रह गई देखो और सुधार करो
जब तक न सफल हो नींद चैन को त्यागो तुम
संघर्ष का मैदान छोड़ मत भागो तुम
कुछ किए बिना ही जय-जयकार नहीं होती
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती
प्रकृति संदेश भी दिया
सोहन लाल द्विवेदी ने प्रकृति के भी चितेरे कवि थे। उन्होंने अपनी एक कविता के माध्यम से बताया कि प्रकृति के संदेशों को बताया। वह मानव को प्रकृति से सीख लेने की सलाह देते हैं। अंतर्मन को छूने वाली उनकी यह कविता भी देखें
पर्वत कहता शीश उठाकर,
तुम भी ऊँचे बन जाओ।
सागर कहता है लहराकर,
मन में गहराई लाओ।
समझ रहे हो क्या कहती हैं
उठ उठ गिर गिर तरल तरंग
भर लो भर लो अपने दिल में
मीठी मीठी मृदुल उमंग!
पृथ्वी कहती धैर्य न छोड़ो
कितना ही हो सिर पर भार,
नभ कहता है फैलो इतना
ढक लो तुम सारा संसार!