साधारण अंक पाकर भी हासिल कर सकते हैं असाधारण मुकाम
लोगो : मार्क्स से ज्यादा प्यारे हैं वो मनोज झा, नोएडा समाचारीय अभियान मार्क्स से ज्यादा प्यारे
लोगो : मार्क्स से ज्यादा प्यारे हैं वो मनोज झा, नोएडा
समाचारीय अभियान मार्क्स से ज्यादा प्यारे हैं वो को अब अल्पविराम देने का वक्त आ गया है। करीब महीने भर चले दैनिक जागरण के इस अभियान के दौरान हमारा यह प्रयास रहा कि परीक्षा में अंक (प्राप्ताक) को लेकर विद्यार्थियों के साथ-साथ उनके अभिभावकों के मन बैठी भ्रातियों का निवारण किया जाए। इस दौरान हमने तमाम ऐसी हस्तियों, व्यक्तित्वों और विशेषज्ञों के विचार प्रकाशित किए, जिन्होंने परीक्षा में तो साधारण अंक प्राप्त किए, लेकिन जीवन में एक से बढ़कर एक सफलताएं प्राप्त कीं। हमारे सामने एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स, रिलायंस इंडस्ट्रीज के पुरोधा धीरूभाई अंबानी, महान क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर, स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर, महानायक अमिताभ बच्चन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे तमाम उदाहरण हैं। ये तमाम हस्तिया अपने बोर्ड की टॉपर नहीं थीं, लेकिन उनकी उपलब्धिया आज हमें इसलिए विस्मित करती हैं, क्योंकि वे अपने प्राप्ताक को लेकर कभी माथा पकड़कर नहीं बैठे। उन्होंने अपने अंदर की मौलिक प्रतिभा को फलने-फूलने का पूरा मौका दिया और बाकियों के लिए उदाहरण बने। हम अपने आस-पड़ोस में, फिल्म-टेलीविजन में, किताबों में आए दिन ऐसी कहानिया या प्रसंग सुनते-पढ़ते हैं, जिसमें परीक्षा में औसत अंक पाने वाले ने आगे चलकर अपने पसंदीदा क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित किया। फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग को ही लें। उनके पिता चिकित्सक और मा मनोविज्ञानी थी। उधर, जुकरबर्ग बचपन से ही कंप्यूटर और वीडियो गेम्स के दीवाने थे। मार्क के माता-पिता ने उन पर कभी भी अपनी इच्छा नहीं थोपी और उन्हें कंप्यूटर की दुनिया में ही रमने के लिए छोड़ दिया। नतीजा आज हम सभी के सामने है।
दूसरे शब्दों में कहें तो परीक्षा में मिलने वाले शानदार अंक सफल जीवन की कोई एकमात्र गारंटी नहीं है। अच्छे अंक करियर को एक दिशा जरूर दे सकते हैं, लेकिन यह जरूरी नहीं कि यह करियर संवारने का कोई आखिरी फार्मूला या पैमाना हो। अच्छी बात यह है कि परीक्षा में अंकों को लेकर परिवार और समाज के आग्रह में धीरे-धीरे सकारात्मक बदलाव आ रहा है। कुछ साल पहले की ब्लॉक ब्लस्टर फिल्म थ्री इडिएट्स का जिक्र यहा जरूरी होगा। प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग में पढ़ाई करने वाले तीन जिगरी दोस्तों में से कोई भी इंजीनियर नहीं बना। रेंचो, राजू और फरहान ने अपनी-अपनी राह चुनी और बदले में उन्हें कामयाब-खुशहाल जिंदगी मिली। यानी सबसे बड़ा सवाल खुशी या आत्मसंतुष्टि का है। कहीं ऐसा तो नहीं कि आपके बच्चे में एक अच्छा चित्रकार झाक रहा है और आप हैं कि उसे इंजीनियरिंग, डॉक्टर या मैनेजर बनाने पर आमादा हैं। यदि ऐसा है तो इस सोच से जितनी जल्दी बाहर निकलेंगे, आपके बच्चे के जीवन की राह उतनी आसान और सफल होगी। सबसे जरूरी है कि बच्चे की प्रवृति या झुकाव से परिचित होना। कई अभिभावक इसे समय रहते पहचान लेते हैं, कई पहचान कर भी अन्यमनस्क बने रहते हैं और कई तो जान-बूझकर उसे दबाने की कोशिश करते हैं। जाहिर है कि दूसरी और तीसरी श्रेणी के अभिभावक अपनी ही संतान के व्यक्तित्व निर्माण की स्वाभाविक प्रक्रिया में अवरोधक के तौर पर सामने आते हैं। इससे बचने की जरूरत है। पंचतंत्र में कहा भी गया है कि हमें बच्चों को वह बनने देना चाहिए, जो वह चाहता है, न कि वह, जो हम चाहते हैं। व्यक्तित्व निर्माण की स्वाभाविक प्रक्रिया भी यही है कि हम अपनी प्रवृतियों, इच्छा और अंतरतम की पुकार को सुनें, न कि बाहर के शोर-शराबे को। इसलिए अंकों के झझटों में मत पड़ें। बस, अपने जिगर के टुकड़े को अच्छा संस्कार दें, सकारात्मक माहौल दें, जिंदगी की सच्चाइयों पर उससे खुलकर बातें करें और फिर उसे खुले आसमान में खिलने के लिए छोड़ दें। तय मानें कि वह मजबूत मुकाम पर ही पहुंचेगा। अंकों की चूहा-दौड़ गुजरे जमाने की बात हो चुकी है। आप साधारण अंक लाकर भी असाधारण उपलब्धिया प्राप्त कर सकते हैं, मानदंड स्थापित कर सकते हैं और ऐसा बहुत कुछ कर सकते हैं, जिसके लिए टॉपर सूची में आना जरूरी नहीं है।
अभियान के दौरान बच्चों के साथ-साथ उनके अभिभावकों में इसी चेतना को जागृत करने का एक प्रयास किया गया। इस पर हमें जिस तरह की सकारात्मक प्रतिक्रियाएं मिलीं, उससे उम्मीद प्रबल होती दिखाई देती है।